Daksheshwar Mahadev Mandir : इस मंदिर में साक्षात शिव करते हैं निवास, मां सती के त्याग का मिलता है यहां प्रमाण, सावन में जरूर करें दर्शन

रायपुर Daksheshwar Mahadev Mandir सावन मास को सनातन धर्म में सभी मासों में पवित्र मास मानते है। इस माह में शिव-पार्वती की पूजन का विधान है। वैसे तो इनका पूजन हर मास में होता है, लेकिन सावन में पूजा करने से विशेष फल मिलता है। सावन में मंदिरों के दर्शन का भी विधान है। इन्ही में एक है दक्षेश्वर महादेव मंदिर। जिसकी महिमा अपरंपार है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव की सनत कुमार ने पूजा कि और पूछा कि- आपका प्रिय मास सावन क्यों है तो भगवान शिव ने कहा कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। इसका प्रमाण देवधाम में मिलता है।
कहते है। जब अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के रुप में हिमाचल और रानी मैना के घर में जन्म लिया, तब बड़ी होने पर पार्वती ने शिव को पति रुप में पाने के लिए सावन माह में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव को भी ये मास प्रिय हो गया।
इसका प्रमाण उत्तराखंड के हरिद्वार के कनखल में देवी सती और महादेव का मंदिर है,जिसे दक्ष मंदिर नाम से जाना जाता है। यहां सावन माह में पूजा का अलग ही महत्व है।
दक्षेश्वर महादेव मंदिर की कथा
दक्षेश्वर महादेव मंदिर कनखल हरिद्वार उत्तराखण्ड में स्थित है कनखल दक्षेश्वर महादेव मंदिर देश के प्राचीन मंदिरों में से एक है। ये भगवान शिव को समर्पित हैं। ये मंदिर शिव भक्तों के लिए भक्ति और आस्था की एक पवित्र जगह है। भगवान शिव का ये मंदिर सती के पिता राजा दक्ष प्रजापित के नाम पर है। इस मंदिर को रानी दनकौर ने1810 ई में बनवाया था।
सती ने त्यागे थे प्राण
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष प्रजापति भगवान ब्रह्मा जी के पुत्र थे और सती के पिता थे। सती भगवान शिव की प्रथम पत्नी थी। राजा दक्ष ने इस जगह एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवी-देवताओं, ऋषियों और संतो को आमंत्रित किया। इस यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था। इस घटना से सती ने अपमानित महसूस किया, क्योंकि सती को लगा राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया है।
सती ने यज्ञ की अग्नि में कूद कर अपने प्राण त्याग दिये। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और भगवान शिव ने अपने अर्ध-देवता वीरभद्र, भद्रकाली और शिव गणों को कनखल युद्ध के लिए भेजा। वीरभद्र ने राजा दक्ष का सिर काट दिया। सभी देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को जीवन दान दिया और उस पर बकरे का सिर लगा दिया।
राजा दक्ष को अपनी गलतियों को एहसास हुआ और भगवान शिव से क्षमा मांगी। तब भगवान शिव ने माफी देते हुए कहा कि भगवान शिव कनखल में निवास करेंगे। जिस यज्ञ कुण्ड में सती ने प्राण त्यागे वहां दक्षेश्वर महादेव मंदिर बनाया गया था। ऐसा माना जाता है कि आज भी यज्ञ कुण्ड मंदिर में अपने स्थान पर है। मंदिर के पास गंगा के किनारे पर दक्षा घाट है, जहां शिव भक्त गंगा में स्नान कर भगवान शिव के दर्शन कर आंनद को प्राप्त करते है।
ऐसी मान्यताएं है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यहाँ भगवान् शिव के दर्शन करतेहै उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। इसके पीछे का कारण यह है कि यहाँ भगवान् शिव सावन में साक्षात् रूप से विराजमान रहते है। हर रोग-दोष से मुक्ति , संतान सुख और वैवाहिक जीवन की सुख-शांति के लिए यहां आकर श्रद्धालु अपनी इच्छा महादेव के सामने रखतें हैं और जल चढ़ाते है।