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साइबर क्राइम की सूली पर झूलती महिलाएं... क्या हैं कानूनी प्रावधान, महिलाओं को जागरुक करने बड़े काम की है ये NPG की खबर

साइबर क्राइम की सूली पर झूलती महिलाएं... क्या हैं कानूनी प्रावधान, महिलाओं को जागरुक करने बड़े काम की है ये NPG की खबर
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Cyber Crime 

By NPG News

दिव्या सिंह

मोहाली की चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के होस्टल की छात्राओं के नहाने के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किए जाने की खबर सुर्खियों में है।खुद का वीडियो होने की आशंका से छात्राएं अवाक हैं, उनके परिजन सदमे में हैं। कुछ छात्राओं द्वारा आत्महत्या का प्रयास किए जाने की भी खबर है। इसी परिप्रेक्ष्य में देखते हैं कि महिलाओं के खिलाफ किस-किस तरह के साइबर अपराध हो रहे हैं,कानूनी प्रावधान क्या हैं और जागरुकता के बल पर इनसे कैसे मुकाबला किया जा सकता है।

इन चार तरीकों से परेशान की जाती हैं महिलाएं

साइबर बुलिंग - साइबर बुलिंग का मतलब होता है, गंदी भाषा, तस्वीरों और धमकियों से इंटरनेट पर तंग करना। साइबर बुलिंग को साइबर हरासमेंट भी कहते हैं। अपराधी पहले महिलाओं या लड़कियों से दोस्ती गांठते हैं और फिर उन्हें अपना शिकार बनाते हैं। विश्वास में लेकर और लालच के चलते नजदीकियां बढ़ाने के बाद महिला या लड़की के निजी फोटो हासिल कर लेेते हैं। इसके बाद पीड़िता से मनचाहे काम करवाने के लिए ब्लैकमेल करते हैं। साइबर बुलिंग का दुष्परिणाम है कि कई मामलों में युवा लड़कियों से रेप हुए हैं, उनका यौन उत्पीड़न हुआ है, वहीं अधिक उम्र वाली महिलाओं को पैसों के लिए ब्लैकमेल किया गया है।

साइबर पॉर्नोग्राफी-इसके तहत महिलाओं के अश्लील फोटो या वीडियो हासिल कर उन्हें ऑनलाइन पोस्ट कर दिया जाता है। अधिकांश मामलों में अपराधी फोटो के साथ छेड़छाड़ करते हैं और बदनाम करने, परेशान और ब्लैकमेल करने के लिए उनका इस्तेमाल करता है। इस तरह के अपराधों में आईटी एक्ट की धारा 67 और 67ए के तहत केस चलता है।

साइबर स्टाकिंग - यानी साइबर वर्ल्ड में पीछा करना या पीछे से हमला करना। बार-बार टेक्स्ट मैसेज भेजना, मिस्ड कॉल करना, फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजना, स्टेटस अपडेट पर नजर रखना और इंटरनेट मॉनिटरिंग इसी अपराध की श्रेणी में आते हैं। आईपीसी की धारा 354डी के तहत यह दंडनीय अपराध है।

साइबर स्पाइंग - यह आईटी एक्ट की धारा 66ई के तहत यह दंडनीय अपराध है। इसमें चैंजिंग रूम, लेडिज वॉशरूम, होटल रूम्स और बाथरूम्स आदि स्थानों पर रिकॉर्डिंग डिवाइस लगाए जाते हैं।

*आंकड़े बताते हैं कि भारत में 10 से 14 साल तक की 32 फीसदी और 15 से 16 साल की 34 फीसदी लड़कियां इंटरनेट पर साइबर हमले का शिकार होती हैं।वहीं 17 से 18 साल की लड़कियों में यह आंकड़ा 21 फीसदी होता है। राष्ट्रीय महिला आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 के पहले आठ महीनों में ही महिलाओं के खिलाफ क्राइम के केसेज़ में 46 फीसदी इजाफा हुआ है।

*किस तरह महिलाओं को तोड़ते हैं साइबर अपराध

पहले ही महिलाएं राह चलते छेड़खानी से लेकर बलात्कार तक की शिकार होती रही हैं, अब साइबर अपराधों ने उनके लिए राह और मुश्किल कर दी है। एक तो इस तरह के वीडियो का पल भर में तेजी से प्रसार हो जाता है। इसकी शर्मिदगी उन्हें तोड़ डालती है। सोशल साइट्स पर बार - बार परेशान किए जाने की वजह से उसका आत्मसम्मान कम हो जाता है,उनके भीतर नकारात्मक भावनाएं घर कर जाती हैं। बदनामी के डर से वे गुमसुम रहने लगती हैं। परिजनो से भी खुलकर अपनी समस्या साझा नहीं करतीं और कई बार इस हद तक डिप्रेशन में चली जाती हैं कि आत्महत्या का मार्ग चुन लेती हैं। महिलाओं में जागरुकता और हिम्मत की अब भी बेहद कमी है। इन स्थितियों में उनकी सहूलियत के लिए और अपराधियों को सजा देने के लिए कैसे कानूनी प्रावधान हैं, ये भी उन्हें पता नहीं होता।

*2013 में आईपीसी में किया गया संशोधन

जब मोबाइल या कंप्यूटर पर इंटरनेट के जरिए अश्लील हमला किया जाता है, जिससे महिला की गरिमा को ठेस पहुंची हो तो उसे महिला के खिलाफ साइबर अपराध माना जाता है। 2013 के पहले महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराधों से निपटने के लिए कोई कानून नहीं था, मगर 2013 में आपराधिक संशोधन अधिनियम के जरिये भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) , 1860 की धारा 354 ए से लेकर धारा 354 डी जोड़ा गया।

ये है कुछ मुख्य धाराएं-

धारा 354 ए: तीन साल तक सख्त कारावास

यौनेच्छा की मांग करना या महिला की इच्छा के खिलाफ पोर्नोग्राफी दिखाना, या अभद्र टिप्पणी करना, ऐसे सभी मामले यौन उत्पीड़न की श्रेणी में माने जाएंगे। ऐसे मामलों में तीन साल तक का कड़ा कारावास, जुर्माना या फिर दोनों हो सकता है।

धारा 354 बी: गैर जमानती अपराध

इस धारा के तहत किसी महिला को जबरन कपड़े उतारने पर मजबूर करना जैसे अपराध आते हैं। राज कुंद्रा मामले में लड़कियों के साथ ऐसा ही मामला बना है। ऐसे मामलों में कम से कम तीन साल और अधिक से अधिक सात साल की सजा का प्रावधान है। साथ ही यह गैर जमानती अपराध भी है।

धारा 354 सी: सात साल तक की सजा

महिला की निजी गतिविधियों की बिना सहमति के फोटो लेना और उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के मामले में आईपीसी की धारा-354 सी लगती है। दोषी को एक साल से तीन साल तक कैद का प्रावधान है। दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 3 साल से 7 साल तक कैद की सजा हो सकती है और यह गैर जमानती अपराध होगा।

धारा 354 डी: साइबर स्टॉकिंग

लड़की या महिला का पीछा करना और कॉन्टैक्ट करने का प्रयास यानी स्टॉकिंग के मामले में आईपीसी की धारा-354 डी के तहत केस दर्ज होगा। इसमें व्हाटसएप, फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया पर साइबर स्टॉकिंग भी शामिल है। इस मामले में दोषी को तीन साल तक कैद हो सकती है।

काउंसलर डॉ. फौजिया खान कहती हैं कि साइबर अपराध अब काफी बढ़ते जा रहे हैं। खासकर लड़कियों को सोशल मीडिया पर अकाउंट बनाते समय प्रोटेक्शन का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यदि कोई घटना हो जाए तो उसे छुपाए नहीं। अपने माता-पिता, बड़े भाई -बहनों, शिक्षकों, करीबी दोस्तों किसी के साथ उसे साझा करें। उसका हिम्मत के साथ मुकाबला करें। समस्या बढ़ने पर पुलिस में केस रजिस्टर कराएं, साइबर सेल की मदद लें, कोर्ट जाएं। ध्यान रखें, मुंह न छुपाएं। अपराध और अपराधी को सामने लाएं।

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