Chhattisgarh Assembly Election 2023: किस्सा कुर्सी काः फर्स्ट सीएम बनाने में टीएस सिंहदेव की भी रही भूमिका, पढ़िये आदिवासी एक्सप्रेस कैसे दौड़ाई गई दिल्ली और VC को रोकने होटल मयूरा में बनी रणनीति...
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी बने, लेकिन तगड़ी दावेदारी विद्याचरण शुक्ल की थी, जिन्होंने अलग छत्तीसगढ़ राज्य के लिए संघर्ष किया था. पढ़ें क्या है आदिवासी एक्सप्रेस का किस्सा.
Chhattisgarh Assembly Election 2023 : रायपुर. 31 अक्टूबर, 2000... वह तारीख जब छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी के नाम का ऐलान हुआ था. यह सब यूं ही नहीं हुआ, बल्कि इसके लिए लंबी प्रक्रिया हुई थी. बैठकें हुई थी. इन बैठकों का उद्देश्य था विद्याचरण शुक्ल को सीएम बनने से रोकना. इसके लिए एक तगड़ा तर्क यह दिया गया कि आदिवासी बहुल राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाया जाए. यही आदिवासी एक्सप्रेस था, जिसके तहत छत्तीसगढ़ के विधायकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भेंट की थी और बाद में जोगी का नाम फाइनल हुआ था. जोगी अकेले दावेदार नहीं थे, बल्कि आदिवासियों में दो और नेताओं के नाम थे. एक थे डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम और दूसरे थे महेंद्र कर्मा. बाद में टेकाम का नाम हट गया और कर्मा और जोगी के बीच फैसला होना था. गांधी परिवार से जोगी की करीबी काम आई और वे बाजी मार ले गए...
किस्से की शुरुआत होती है मयूरा होटल से. मयूरा होटल में भूपेश बघेल और राजेश तिवारी की मुलाकात टीएस सिंहदेव से हुई थी. तीनों की यह पहली मुलाकात थी, जो बाद में त्रिमूर्ति के रूप में चर्चित हुई थी. इस समय तक सिंहदेव कांग्रेस में किसी पद में नहीं थे. भूपेश बघेल तब दिग्विजय सिंह की टीम में मंत्री रह चुके थे और राजेश तिवारी भी बस्तर जिला पंचायत के पदाधिकारी बन चुके थे. इस मुलाकात की कड़ी थे बलराम मुखर्जी, जो यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष थे. बलराम मुखर्जी जिन्हें प्यार से उनके साथी बल्लू कहते थे, उन्होंने ही बघेल और तिवारी से मुलाकात के लिए बुलाया था. यहां आदिवासी एक्सप्रेस पर बात हुई. विधायकों को लेकर दिल्ली जाने और आदिवासी सीएम बनाने की मांग करनी थी.
रायपुर में जो बातचीत हुई थी, उसमें टेकाम और कर्मा ही दावेदार थे. बाद में 34 विधायकों को साथ लेकर जब दिल्ली जाने का वक्त आया, तब तक विधायकों से चर्चा और पसंद-नापसंद के आधार पर टेकाम का नाम हट गया और कर्मा अकेले बचे. इसके बाद सिंहदेव ने अजीत जोगी के नाम की सिफारिश की थी. इसमें यह तय हुआ था कि यदि विधायकों में से सीएम बनाएंगे तो कर्मा और गैर विधायक से सीएम बनाएंगे तो जोगी के नाम पर सबकी सहमति होगी. दिल्ली जाने का वक्त आया, तब सिंहदेव को भी साथ ले जाया गया. बस में सवार होकर आदिवासी विधायक दिल्ली पहुंचे। वहां यात्री निवास में सभी ठहरे हुए थे. यहां ही जोगी को बुलाया गया था. चार-पांच लोगों की मौजूदगी में जोगी के सामने यह प्रस्ताव रखा गया. जोगी ने सहमति दे दी थी.
और फिर इंग्लिश आड़े आया...
जब यह तय हो गया कि आदिवासी सीएम की मांग की जाएगी और विधायकों में से कर्मा व बाहर से जोगी का नाम रखेंगे, तब नंदकुमार पटेल को सामने रखकर अगले दिन सोनिया गांधी से विधायक मिलने पहुंचे. इसमें विधायकों को समय दिया गया था, लेकिन सिंहदेव को भी वे साथ ले गए. विधायकों की तरफ से नंदकुमार पटेल अपना पक्ष रख रहे थे. उस समय सोनिया गांधी को हिंदी बोलने-समझने में थोड़ी परेशानी हो रही थी, तब टीएस सिंहदेव ने अंग्रेजी में पूरी बात बताई. सोनिया गांधी ने हामी में सिर हिलाया और मीटिंग बर्खास्त हो गई. आगे फिर दिग्विजय सिंह को उनके नाम का ऐलान करने के लिए भेजा गया था.
(जैसा टीएस सिंहदेव ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में बताया)