Chhattisgarh: तरकश-विरासत का सम्मान!
Chhattisgarh: तरकश-छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी, राजनीतिक और बड़ी घटनाओं पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय के. दीक्षित का पिछले 14 साल से निरंतर प्रकाशित बेहद लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश
संजय के. दीक्षित
Chhattisgarh: तरकश, 9 अप्रैल 2023
विरासत का सम्मान!
इस हफ्ते मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरगुजा के दौरे पर थे। चूकि, मंत्री टीएस सिंहदेव दिल्ली में थे, सो उनके भतीजे और जिला पंचायत के उपाध्यक्ष आदित्येश्वर शरण सिंहदेव को मंच पर बिठाया गया। सीएम के संबोधन के दौरान जब आदित्येश्वर का नाम आया, तो पूरा नाम पढ़ते हुए उन्होंने चुटकी ली...नाम बहुत बड़ा है...आदि बाबा ही ठीक है। सीएम ने आदि को अपनी बगल की कुर्सी पर बिठाकर पांच मिनट बात की। बात क्या हुई...ये किसी को नहीं पता। जाहिर है, आदित्येश्वर को मंत्री सिंहदेव का सियासी वारिस माना जाता है... सरगुजा में मंत्री सिंहदेव के राजनीतिक काम आदि संभालते हैं।
पीसीसीएफ की डीपीसी
तीन आईएफएस अधिकारियों को पीसीसीएफ बनाने के लिए डीपीसी ने हरी झंडी दे दी है। मंत्रालय में इसके लिए 5 अप्रैल को डीपीसी बैठी थी। जिन अधिकारियों को पीसीसीएफ बनाने हरी झंडी मिली है, उनमें तपेश झा, संजय ओझा और अनिल राय का नाम शामिल है। डीपीसी के बाद तीनों आईएफएस अधिकारियों के नाम वन मंत्री मोहम्मद अकबर के पास अनुमोदन के लिए भेज दिए गए हैं। वन मंत्री के बाद फाइल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पास फायनल एप्रूवल के लिए जाएगी। मुख्यमंत्री से ओके होने के बाद फिर प्रमोशन का आदेश निकल जाएगा। प्रमोशन के बाद रेगुलर पीसीसीएफ संजय शुक्ला को मिलाकर पीसीसीएफ की संख्या सात हो जाएंगी। संजय शुक्ला, अतुल शुक्ला, सुधीर अग्रवाल और आशीष भट्ट पहले से पीसीसीएफ हैं।
अगला पीसीसीएफ कौन?
पीसीसीएफ संजय शुक्ला अगले महीने 31 मई को रिटायर होने के बाद रेरा चेयरमैन की कमान संभालेंगे, ये लगभग तय प्रतीत हो रहा है। मगर उनकी जगह अगला पीसीसीएफ कौन बनेगा, ये अभी क्लियर नहीं। संजय के बाद सीनियरिटी में पहला नाम सुधीर अग्रवाल का है। सुधीर इस समय पीसीसीएफ वाईल्डलाइफ हैं। पीसीसीएफ के प्रबल दावेदारों में एक नाम श्रीनिवास राव का भी है। श्रीनिवास कैम्पा के हेड हैं। हालांकि, वे अभी पीसीसीएफ प्रमोट नहीं हुए हैं। मगर उन्हें पीसीसीएफ का ग्रेड मिल गया है। सो, जानकारों का कहना है कि तकनीकी तौर पर कोई अड़चन नहीं आएगी। एक प्राब्लम ये आएगा कि श्रीनिवास को पीसीसीएफ बनाने के लिए छह आईएफएस अधिकारियों को ओवरलुक करना होगा। छह में से आशीष भट्ट इसी जून में रिटायर हो जाएंगे। मगर सुधीर अग्रवाल, तपेश झा, संजय ओझा, अनिल राय और अनिल साहू का डेढ़ साल से लेकर दो साल की सर्विस बची हुई है। ये सभी ऑल राउंडर हैं...सरकारें कोई भी हो, पोस्टिंग इन्हें अच्छी मिलती रही हैं। हालांकि, उत्तराखंड में पिछले हफ्ते ही रेगुलर पीसीसीएफ को हटाकर जूनियर को सरकार ने कमान सौंप दी थी। इसे कैट में चैलेंज किया गया। और कैट ने सरकार का फैसला पलट दिया। लब्बोलुआब यह है कि अपवादों को छोड़ दें तो होता वही है, जो सरकारें चाहती हैं। और सरकार की तरफ से कोई संकेत नहीं हैं।
पिकनिक भी रद्द
ईडी की मैराथन कार्रवाइयों से छत्तीसगढ़ की नौकरशाही सहमी हुई है। छापों को देखते आईएएस एसोसियेशन ने पहले आईएएस कांक्लेव स्थगित किया। अब माहौल शांत होता देख आईएएस एसोसियेशन द्वारा कांक्लेव की जगह फेमिली पिकनिक का प्लान किया जा रहा था। इसकी तैयारी भी शुरू हो गई थी। मगर ताबड़तोड़ छापों की वजह से अब पिकनिक कार्यक्रम को भी रद्द कर दिया गया है।
बड़ी रजिस्ट्री नहीं
ईडी के छापों का असर अबकी जमीनों की रजिस्ट्री पर भी पड़ा है। रजिस्ट्री आफिस मार्च महीने में गुलजार रहता था...पिछले साल 31 मार्च को रात 12 बजे के बाद तारीख बदल गई मगर लाइन खतम नहीं हुई थी। मगर इस बार न लाइन थी और न रौनक। रजिस्ट्री अधिकारी बड़ी पार्टियों के इंतजार करते बैठे रहे। दरअसल, अधिकांश बड़ी रजिस्ट्री मार्च में होती है। इससे खजाने को अच्छा खासा रेवेन्यू आता है। बड़े सौदे भूमाफियाओं, बिल्डरों और नौकरशाहों के होते थे। मगर इस बार ईडी के छापों की वजह से सिस्टम सहमा हुआ है। ईडी की नजर चूकि रजिस्ट्री आफिस पर भी है। रजिस्ट्री अधिकारियों से लगातार जानकारियां मंगाई जा रही है, इसलिए कोई जोखिम नहीं लेना चाहता। हालांकि, रेवेन्यू पिछले साल से इसलिए कम नहीं हुआ क्योंकि 2020 के बाद जमीनों का मार्केट उछाल पर है। मगर ये बात जरूर है कि बड़े सौदे होते तो रेवेन्यू का ग्राफ और उपर जाता।
ताजपोशी
डीएम अवस्थी को 31 मार्च को रिटायर होते ही देर शाम पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल गई। उन्हें पीएचक्यू में ओएसडी बनाया गया है। खबर है कि ओएसडी उनकी मूल पोस्टिंग रहेगी...ईओडब्लू और एसीबी चीफ का अतिरिक्त दायित्व सौंपा जाएगा। रिटायरमेंट के साथ ही पोस्टिंग पाने वाले डीएम सूबे के तीसरे अफसर बन गए हैं। बीजेपी सरकार में विवेक ढांड को आईएएस से वीआरएस स्वीकृत करते ही रेरा चेयरमैन की कमान सौंप दी गई थी। इसी तरह मुख्य सचिव से रिटायर होने के आधे घंटे के भीतर आरपी मंडल को एनआरडीए चेयरमैन बनाने का आर्डर निकल गया था। रमन सरकार में अधिकांश नौकरशाहों को रिटायरमेंट के हफ्ते-महीना भर बाद ही पोस्टिंग मिली।
प्रमोशन पर ब्रेक
सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली में पोस्टेड आईएएस अधिकारी अमित अग्रवाल का प्रमोशन रुक गया है। 93 बैच के आईएएस अमित की 30 साल की सर्विस पूरी हो जाने पर एडिशनल चीफ सिकरेट्री का प्रोफार्मा प्रमोशन मिलना था। बता दें, प्रतिनियुक्ति पर पोस्टेड अफसरों को प्रोफार्मा प्रमोशन दिया जाता है। प्रोफार्मा प्रमोशन में पद तो वहां के हिसाब से मिलता है मगर वेतनमान का लाभ मिलने लगता है। 2007 बैच के आईएएस अधिकारियों को सिकरेट्री प्रमोट करने डीओपीटी को फाइल भेजी गई, उसमें अमित अग्रवाल का नाम नहीं था। डीओपीटी से उसके लिए क्वेरी आ गई। ब्यूरोक्रेसी में चर्चा है कि डीओपीटी की क्वेरी में अमित अग्रवाल की भूमिका थी। फायनली यह हुआ कि अमित प्रोफार्मा प्रमोशन से वंचित रह गए। अमित का हार्ड लक यह कि उनके बैच का यहां कोई दूसरा आईएएस नहीं है। दूसरे अधिकारियों के प्रमोशन से डेपुटेशन वाले अफसरों को फायदा मिल जाता है। अमित काबिल आईएएस हैं। कलेक्टरी तो महासमुंद जैसे एकाध जिले की किए हैं लेकिन, टेक्नोक्रेट हैं। आईटी में भी पकड़ है। चिप्स के फर्स्ट सीईओ अमित रहे। दिल्ली में मनमोहन सरकार हो या मोदी सरकार...उन्हें लगातार अच्छी पोस्टिंग मिली। रमन सरकार की तीसरी पारी वे छत्तीसगढ़ लौटे थे। लेकिन, उनका मन यहां रमा नहीं। साल भर में वापिस दिल्ली लौट गए। 23 साल में जोगी सरकार के तीन साल और रमन सरकार के समय एक साल...याने चारेक साल ही अमित छत्तीसगढ़ में रह पाए हैं। पिछली सरकार में प्रतिनियुक्ति से लौटने वालों के लिए नियम बनाया था कि उन्हेंं तुरंत पोस्टिंग नहीं दी जाएगी। अमिताभ जैन के साथ अमित अग्रवाल भी दो-एक महीने खाली बैठे रहे। कुल मिलाकर जोगी सरकार के बाद अमित के लिए छत्तीसगढ़ अनुकूल नहीं रहा।
गणेश शंकर की याद
बात प्रमोशन की...तो 1994 बैच के आईएएस भी रिटायर आईएएस अधिकारी गणेश शंकर मिश्रा को मिस कर रहे होंगे। गणेश शंकर के चलते डेढ़-पौने दो साल पहले उनका सचिव से प्रमुख सचिव प्रमोशन मिल गया था। वे प्रमुख सचिव बने और उसी शाम को रिटायर हो गए थे। उनके होने का फायदा बाकी अधिकारियों को मिला। बहरहाल, 1994 बैच को एसीएस बनने में आठ महीने का वक्त बच गया है। इससे पहले 91 और 92 बैच को एक से डेढ़ साल पहले एसीएस का प्रमोशन मिल गया था। लेकिन, 94 बैच में कोई झंडा उठाने वाला अफसर नहीं है। मनोज पिंगुआ आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट जरूर हैं। मगर जोड़-तोड़ वाला स्वभाव उनका नहीं है। उनके बैच की ऋचा शर्मा, निधि छिब्बर और विकास शील डेपुटेशन पर हैं। अब देखना है, इस बैच का प्रमोशन टाईम पर मिलेगा या उससे पहले?
अंत में दो सवाल आपसे
1. छत्तीसगढ़ के एक मंत्रीजी का नाम बताइये, जो कोई भी प्रदेश प्रभारी बने, उनके खास हो जाते हैं?
2. हाई प्रोफाइल रहने वाले डीएमएफ जिले के कई कलेक्टर इन दिनों खुद को बेहद लो प्रोफाइल में क्यों कर लिए हैं?