Chhattisgarh News: राडार पर वीसी और भर्तियांः 75 लाख में प्रोफेसर, 40 लाख में रीडर और 30 लाख में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए विश्वविद्यालयों में चल रहे सौदे
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ सरकार ने महात्मा गांधी हार्टिकल्चर और वानिकी विश्वविद्यालय में चल रही सहायक प्राध्यापक भर्ती की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। सरकार के इस फैसले से प्रदेश के दूसरे विश्वविद्यालयों में भी हड़कंप मच गया है। बाकी विवि को भी जांच का डर सताने लगा है। वैसे हार्टिकल्चर विवि के कुलपति पहले भी आर्थिक मामलों को लेकर विवादों में रहे हैं। बावजूद इसके चमत्कारिक रूप से उन्हें कुलपति बना दिया।
Chhattisgarh News: रायपुर। छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवतर्न के साथ ही प्रशासन और प्रशासन का पूरा समीकरण भी बदलने लगा है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की योजनाओं और कामों की समीक्षा कर रही है। बीते 5 वर्षों में राज्य में हुईं भर्तियां सरकार के राडार में है। छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (सीजी पीएससी) में भर्ती के मामले की जांच केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई को सौंपने का फैसला हो चुका है। इधर, आज प्रदेश के कृषि मंत्री राम विचार नेताम ने महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय सांकरा (पाटन) में सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति प्रक्रिया को स्थगित रखने के निर्देश जारी कर दिए।
कृषि मंत्री के इस निर्देश ने प्रदेश के दूसरे विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का टेंशन बढ़ा दिया है। बता दें, कई विश्वविद्यालयों में भर्तियां हो रही और कुछ में प्रक्रियाधीन है। कई कुलपतियों को उन्हें यहां हुई भर्ती की फाइल खुलने का डर सताने लगा है। महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया पर लगी रोक की खबर के बाद एक विश्वविद्यालय से जुड़े सूत्र ने दावा किया कि बीते 5 सालों में राज्य के अधिकांश विश्वविद्यालयों में भर्तियों हुई हैं उनमें से ज्यादातर में नियम-कायदों को अनदेखी और बड़े पैमाने पर खेला किया गया।
विश्वविद्यालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार कुलपतियों ने इसके लिए रेट तय कर रखा है। प्रोफेसरों के लिए 60 से 75 लाख रुपये। रीडर यानी एसोसियेट पद के लिए 40 से 50 लाख और लेक्चरर यानी सहायक प्राध्यापक के लिए 25 से 30 लाख।
कृषि विभाग के सीनियर अफसरों का कहना है, महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के 35 पदों की भर्ती के लिए तैयार किए गए स्कोर कार्ड में भारी गड़बड़ी की शिकायत आई है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की गाइड लाइन के अनुसार पीएचडी एवं नेट की परीक्षा के लिए पृथक-पृथक अंक देना था, जो कि नहीं किया गया था। इस कारण बड़ी संख्या में पीएच.डी उम्मीदवार उपलब्ध होते हुए भी गैर पीएच.डी धारी अभ्यर्थियों का चयन एवं नियुक्ति की गई थी।
विवादों में रहा कुलपतियों की नियुक्ति
बता दें कि बीते 5 सालों के दौरान राज्य में जितने भी सरकारी विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति हुई है उनमें से अधिकांश विवादों में रही है। एक विश्वविद्यालय के कुलपति के बारे में चर्चा रही कि कुलपति बनने के लिए उन्होंने बाजार से दो खोखा़ रुपए कर्ज लिया। एक कुलपति की नियुक्ति में बीजेपी का भी सपोर्ट रहा और सत्तातधारी पार्टी का भी और सूटकेस का भी। एक कुलपति ने गांव की जमीन बेच दिया। मगर पेंच इसमें फंस गया कि खजाने की माली स्थिति को देखते सरकार ने नियुक्तियों पर रोक लगा दी। जब रोक हटी तो पीएससी स्कैंडल हो गया। और उसके बाद आचार संहिता। अब सरकार बदलने के क्रम में कुलपतियों ने अपना खेल शुरू किया तब तक हार्टिकल्चर और वानिकी विवि का मामला कृषि मंत्री के संज्ञान में आ गया।
प्रभारी रजिस्ट्रार
एक दशक पहले तक राज्य के विश्वविद्यालयों में यूनिवर्सिटी सेवा के अधिकारियों को रजिस्ट्रार बनाया जाता था। लेकिन उसके बाद पूर्णकालिक रजिस्ट्रार की बजाए कुलपति अपने पसंद के प्राध्यापकों को प्रभारी रजिस्ट्रार बनाने लगे। विश्वविद्यालयों में नियुक्तियों और निर्माण कार्यो में भ्रष्टाचार बढ़ने का एक बड़ा कारण प्रभारी रजिस्ट्रार हैं। प्रभारी रजिस्ट्रार कुलपति से उपकृत रहते हैं...कुलपति जब चाहे उन्हें बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं, इसलिए वे भी कुलपति के रैकेट में शामिल हो जाते हैं।
कुलपति के पावर का दुरूपयोग
देश के सिस्टम ने विश्वविद्यालयों की गरिमा और शैक्षणिक गुणवता के लिए कुलपतियों को असिमित अधिकार दिया है। विश्वविद्यालय चूकि आटोनॉमस बॉडी होती है, सो उसे ढाई लाख तक के स्केल वाले प्रोफेसरों की बिना किसी लिखित परीक्षा या प्रक्रिया के भर्ती करने का अधिकार है। विश्वविद्यालय अखबारों में इश्ताहार निकालता है। उसके बाद स्कूटनी और फिर इंटरव्यू। इंटरव्यू कमेटी के कुलपति चेयरमैन होते हैं। इंटरव्यू कमेटी में भी वे अपने लोगों को नामित करा लेते हैं। इसके बाद 100 परसेंट वे जो चाहते हैं, वो ही होता है। इसके एवज में कमेटी के मेम्बरों का आदर-सत्कार और खुशामद भरपूर किया जाता है। यही वजह है कि भारत सरकार अब विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों के लिए भी एक सर्विस कमीशन बनाने पर विचार कर रही ताकि भ्रष्ट कुलपतियों के हाथ से भर्ती के अधिकार लिए जा सकें। अब जरा सोचिए, 60 से 75 लाख में प्रोफेसर, 40 से 50 लाख में रीडर और 30 से 40 लाख में सहायक प्राध्यापक। विश्वविद्यालयों में ऐसी दर्जनों की नियुक्तियां होती हैं। इसके अलावा बिल्डिंग निर्माण और परचेजिंग। एक भ्रष्ट कुलपति अपने पांच साल के कार्यकाल में गिरे हालत में 25 से 30 करोड़ का आसामी बन जाता है। आलम यह है कि छत्तीसगढ़ के एक बेहद बदनाम कुलपति ने यहां इतना कमा लिया कि दूसरे राज्य में राजभवन से सेटिंग कर फिर से कुलपति पद हासिल कर लिया।
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