Chhattisgarh: नेताओं और नौकरशाहों के चलते बिल्डरों के मकान 40 फीसदी महंगे, जानिये मेट्रो सिटी से कैसे महंगा है छत्तीसगढ़ का रियल इस्टेट
Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अक्सर ऐसा कहा जाता है कि यहां जमीनों के रेट और मकान दिल्ली और मुंबई के बराबर या उससे अधिक है। इसके बावजूद जबकि, रायपुऱ का ग्रोथ पिछले एक दशक में ठहर गया है। रायपुर का फैलाव भी अब पहले जैसा नहीं। मगर बिल्डरों रेट कम नहीं होता। कोविड के दौर में बिक्री जब ठप हो गई थी, तब भी बिल्डरों ने अपना रेट कम नहीं किया।
Chhattisgarh: रायपुर। एक नवंबर 2000 से पहले रायपुर एक संभागीय मुख्यालय था। जहां सबसे बड़े आफिसर के तौर पर कमिश्नर बैठते थे। उस समय स्टील का कारोबार अच्छा फैल गया था मगर खुदरा से कपड़े, फनीर्चर या फिर रियल इस्टेट की स्थिति बाकी जिलों के जैसी ही थी। छत्तीसगढ़ राज्य और रायपुर के राजधानी बनते ही रायपुर के रियल इस्टेट में आग लग गई। वहीं बिल्डरों के कारोबार में बूम आ गया। छोटे-छोटे बिल्डर 2005 आते-आते अरबों में अपना सम्राज्य स्थापित कर लिया।
मंत्रियों और नौकरशाहों का इंवेस्टमेंट
रायपुर राजधानी बनते ही मंत्री से लेकर बोर्ड, आयोगों का गठन तो हुआ ही भोपाल से बड़ी संख्या में आईएएस, आईपीएस रायपुर आए। चूकि छत्तीसगढ़ नया प्रदेश था, सो संभावनाए असीमित थी। मंत्रियों से लेकर नौकरशाहों ने बहती गंगा में जमकर डूबकी लगाई। सबसे पहले नेताओं और नौकरशाहों ने रायपुर के चारों तरफ के लगभग 60-70 किलोमीटर एरिया के सारे जमीन खरीद लिए। जब जमीनों में इंवेस्टमेंट हो गया तो फिर बिल्डरों के प्रोजेक्टों में निवेश प्रारंभ हुआ। साल 2010 आते-आते रायपुर के बिल्डरों ने ऐसा ग्रोथ किया कि बाहर के लोग आवाक थे। लोगों को आश्चर्य हो रहा था कि रायपुर में इतना पैसा कहां से बरस रहा जबकि, मकान बिकने का औसत ग्रोथ अपेक्षाकृत कम है तो फिर मकान और फ्लैट बनाने की होड़ कैसे मच गई है?
मेट्रो सिटी टाईप रेट क्यों?
हालांकि, कुछ बिल्डर अच्छे भी हैं, जो इस तरह की काली कमाई से परहेज क रते हैं। उनमें से एक प्रतिष्ठित बिल्डर ने एनपीजी न्यूज को आसमानी छूते रेट के बारे में जो बताया, वह चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रोजेक्ट में बिल्डरों को अपना कुछ नहीं होता। जमीन भी नेताओं, मंत्रियों और नौकरशाहों के पैसे से खरीदी होती है और उसके बाद कालोनियां और अपार्टमेंट भी उन्हीं के इंवेस्टमेंट से। अपना कुछ लगा नहीं, सो बैंक का ब्याज या नुकसान की कोई चिंता नहीं। दिखाने के लिए बिल्डर बैंक से लोन लेते हैं और तुरंत ही उसे चूकता कर देते हैं। याने सिर्फ कागजों में शो करने के लिए लोन।
कोविड में भी रेट नहीं गिरा
चूकि रायपुर और उसके आसपास के अधिकांश हाउसिंग प्रोजेक्टों में नेताओं और नौकरशाहों का पैसा लगा है, सो कोविड में रियल इस्टेट धड़ाम से जमीन पर आ गया था, तब भी आपको जानकार ताज्जुब हुआ कि अधिकांश बिल्डर अपने पुराने रेट पर अडिग रहे। नहीं बिकेगा सही मगर रेट कम नहीं करेंग। अब आप खेला समझ गए होंगे।
करोड़ों में दो नंबर की राशि
छत्तीसगढ़ का सलाना बजट 5 हजार करोड़ से चालू हुआ था और एक लाख करोड़ से उपर पहुंच गया है। चाहे बीजेपी का टाईम हो या कांग्रेस का, कई मंत्री 30 से 40 परसेंट कमीशन लेते थे। इसके अलावा नौकरशाहों का अपना हिस्सा। इतने बड़े बजट में हर साल कमीशन की राशि निकालेंगे तो हजार करोड़ से उपर जाएगा। और पूरा कैश में आना है। मुठ्ठी भर बड़े लोग इस पैसे को बड़े उद्योगों में या फिर गुड़गांव जैसे जगहों पर इंवेस्ट कर देते हैं। लेकिन, बाकी पैसे यही लगते हैं।
40 परसेंट तक महंगे
जानकारों का आंकलन है कि रायपुर जैसे देश के शहरों में यहां से 30 से 40 परसेंट कम रेट में प्रायवेट बिल्डर के मकान मिल जाते हैं। मगर रायपुर में दिल्ली, मुंबई, पुणे, बंगलुरू टाईप घरों और फ्लैट के रेट हैं। सिर्फ इसलिए कि अधिकांश बिल्डरों को रेट के मामलों में समझौता करने की कोई मजबूरी नहीं। क्योंकि, पैसा उनका लगा नहीं।
सरकार का संरक्षण
रायपुर के बिल्डरों को सरकार का भी संरक्षण मिल रहा है। पिछली सरकार ने पांच साल से गाइडलाइन रेट नहीं बढ़ाया। उपर से 30 परसेंट की छूट दे दी। रायपुर के कथित आउटर अब पॉश कालोनियों में बदल गया है। मगर गाइडलाइन रेट आज भी हजार से बारह सौ हैं। और बेचते हैं चार से पांच हजार रुपए के रेट में।