Chhattisgarh Loksabha Chunav 2024: CG दशकों से जीत का इंतजार: 2 पर 35 और 9 पर 47 साल पहले मिली थी जीत, केवल फूल और पंजा को पहचानते हैं लोग, जमानत बचाने लायक भी नहीं छोड़ती जनता
Chhattisgarh Loksabha Chunav 2024: छत्तीसगढ़ का सियासी मिजाज देश के दूसरे राज्यों की तुलना में बहुत अलग है। यहां के लोग आम चुनाव में फूल (कमल) और हाथ (पंजा) के आलाव किसी को नहीं पहचानते। बीते कई दशकों ने राज्य की 11 सीटों पर इन्हीं दोनों दलों के प्रत्याशी चुनाव जीत रहे हैं। बाकी दलों के प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाते हैं।
Chhattisgarh Loksabha Chunav 2024: रायपुर। अविभाजित मध्य प्रदेश के दौर में छत्तीगसढ़ कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ था। प्रदेश की लोकसभा की सभी 11 सीटों पर कांग्रेस एक तरफा जीत दर्ज करती थी। 1989 में पहली बार बीजेपी ने 6 सीटों पर जीत दर्ज कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसके बाद से प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही सीधी टक्कर होती है। बाकी निर्दलीय ही नहीं दूसर पार्टियों के प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाते हैं। राज्य की 9 सीटों पर 47 साल से इन्हीं दोनों पार्टियों का कब्जा है। केवल 2 सीटों पर 1989 में दूसरी पार्टियों ने जीत दर्ज की थी।
1977 कांग्रेस को मिली थी करारी हार...
छत्तीसगढ़ की लोकसभा सीटों पर एकतरफा जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस को 1977 में पहली बार करारी हार मिली थी। 77 के आम चुनाव में राज्य की सभी सीटों पर भारतीय लोक दल (बीएलडी) के प्रत्याशी जीते थे। इसके बाद 1980 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने फिर से अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया।
इन 2 सीटों पर तीसरी पार्टी को मिली थी जीत
राज्य की 2 सीटें ऐसी हैं जहां 1989 में बीजेपी और कांग्रेस के अलावा किसी दूसरी पार्टी के प्रत्याशी सांसद चुने गए थे। ये दो सीटें दुर्ग और रायपुर हैं। इन दोनों सीटों पर जनता दल (जेडी) के प्रत्याशी जीते थे। दुर्ग से पुरुषोत्तम लाल कौशिक और महासमुंद से विद्याचरण शुक्ल जेडी की टिकट पर सांसद चुने गए थे। कौशिक 1977 में बीएलडी की टिकट पर रायपुर संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे।
सभी की होती है जमातन जब्त
लोकसभा चुनाव को लेकर छत्तीगसढ़ के संदर्भ में यह बात भी दिलचस्प है कि यहां की किसी भी सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के अतिरिक्त किसी दूसरी पार्टी के प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाते हैं। सभी 11 सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के ही प्रत्याशी पहले और दूसरे स्थान पर रहते हैं। दूसरी पार्टियों के प्रत्याशियों के साथ ही निर्दलीय भी इतना वोट नहीं हासिल कर पाते हैं कि उनकी जमानत बच सके।
बीते 2 आम चुनावों की स्थिति
वर्ष | 2019 | 2019 | 2014 | 2014 |
संसदीय सीट | चुनाव लड़े | जमानत जब्त | चुनाव लड़े | जमानत जब्त |
सरगुजा | 10 | 08 | 14 | 12 |
रायगढ़ | 14 | 12 | 12 | 10 |
जांजगीर-चांपा | 15 | 13 | 15 | 13 |
कोरबा | 13 | 11 | 24 | 22 |
बिलासपुर | 25 | 23 | 26 | 24 |
राजनांदगांव | 14 | 12 | 13 | 11 |
दुर्ग | 21 | 19 | 26 | 24 |
रायपुर | 25 | 23 | 26 | 24 |
महासमुंद | 13 | 11 | 27 | 25 |
बस्तर | 07 | 05 | 08 | 06 |
कांकेर | 09 | 07 | 10 | 08 |
1989 में पहली बार खुला भाजपा का खाता
छत्तीसगढ़ में 1989 के आम चुनाव में पहली बार भाजपा का खाता खुला। हालांकि जन संघ की टिकट पर 1967 में एक जीत पार्टी को मिल चुकी थी, लेकिन बीजेपी के अस्तित्व में आने के बाद 1989 में बीजेपी का पहली बार छत्तीसगढ़ में खाता खुला। इस चुनाव में बीजेपी 6 सीट जीतने में सफल रही। इनमें सरगुजा से लरंग साय, रायगढ़ से नंद कुमार साय, जांजगीर से दिलीप सिंह जूदेव, बिलासपुर से रेश्म लाल जांगड़े, रायपुर से रमेश बैस और राजनांदगांव से धर्मपाल गुप्ता शामिल थे। दुर्ग और महासमुंद की जीत जनता दल के खाते में गई। महासमुंद से विद्याचरण शुक्ल और दुर्ग से पुरुषोत्तम लाल कौशिक जीते। कांग्रेस की टिकट पर सारंगढ़ से प्रकाश भारद्वाज, कांकेर से अरविंद नेताम और बस्तर से मनकु राम सोढ़ी जीते थे।
1991 में कांग्रेस ने की सभी 11 सीटों पर वापसी
1989 में 6 सीटों पर जीतने वाली बीजेपी इसके बाद 1991 में हुए आम चुनाव में यहां अपना खाता भी नहीं खोल पाई। कांग्रेस ने पूरी ताकत के साथ वापसी की और छत्तीसगढ़ के हिस्से की सभी 11 सीटों पर एकतरफा जीत दर्ज की। 1989 में जनता दल से चुनाव लड़ने वाले दिग्गज नेता वीसी शुक्ला भी कांग्रेस में लौट आए थे। वीसी 1991 में रायपुर सीट जीतने में सफल रहे। इसी चुनाव में दुर्ग सीट से चंदूलाल चंद्राकर और महासमुंद से संत पवन दीवान ने जीत दर्ज की।
1996 से फिर बदला माहौल, पहले 6, फिर 7 और 8 से 10 तक पहुंची बीजेपी
1996 के आम चुनाव से प्रदेश में बीजेपी के पक्ष में फिर माहौल बना। इस बार फिर बीजेपी 6 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही। 1998 के चुनाव में बीजेपी के सीटों की संख्या बढ़कर 7 हो गई। इसके ठीक एक वर्ष बाद 1999 में बीजेपी फिर एक सीट बढ़ाने में सफल रही और यहां की 11 में से 8 सीटों पर भगवा का परचम लहरा गया। इसी चुनाव से प्रदेश की जनता ने गेयर बदला और इसके बाद के लगातार 3 चुनावों में बीजेपी 10 सीट जीती और कांग्रेस एक सीट पर सिमट गई। 2019 के चुनाव में कांग्रेस 2 सीट तक पहुंची।