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फर्स्ट कलेक्टर, फर्स्ट डीएफओ

फर्स्ट कलेक्टर, फर्स्ट डीएफओ
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By NPG News

संजय के. दीक्षित

तरकश, 19 अगस्त 2022


समें फोटो ही खबर है...चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन और पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी राजधानी में नव निर्मित श्रीकृष्ण कुंज के मुख्य द्वार के सामने खड़े दिखाई दे रहे हैं। दोनों की जोड़ी पुरानी है। राज्य बनने के बाद नवबंर 2000 में अमिताभ को अजीत जोगी सरकार ने रायपुर का कलेक्टर बनाया था और राकेश को डीएफओ। तब दोनों ने वीआईपी रोड पर राजीव स्मृति वन बनवाया था। उस समय रायपुर में कुछ था नहीं...कोई गेस्ट आए तो लोग राजीव स्मृति घूमाने ले जाते थे। संयोग से अमिताभ अब चीफ सिकरेट्री हैं और राकेश पीसीसीएफ। यानी एक सूबे का प्रशासनिक मुखिया तो दूसरा वन विभाग का। ऐसे में, देखना चाहिए कि दोनों षीर्श अधिकारियों की जोड़ी ने श्रीकृष्ण कुंज में क्या कमाल किया है।

गौरव को एनओसी

प्रिंसिपल सिकरेट्री गौरव द्विवेदी को सेंट्रल डेपुटेशन के लिए राज्य सरकार ने एनओसी दे दिया है। गौरव चूकि पहले भी सेंट्रल डेपुटेशन कर चुके हैं इसलिए उन्हें भारत सरकार की पोस्टिंग में दिक्कत नहीं जाएगी। सुनने में आ रहा...किसी भी दिन उनका आदेश आ सकता है। बता दें, गौरव से पहले उनकी पत्नी डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी को भारत सरकार में पोस्टिंग मिल गई है। कृषि विभाग की एक बोर्ड की वे एमडी बनाई गईं हैं। फिलवक्त मनिंदर यहां सिकरेट्री हेल्थ हैं और जल्द ही रिलीव होने वाली हैं।

हार्ड लक!

प्रिंसिपल सिकरेट्री गौरव द्विवेदी और उनकी पत्नी डॉ0 मनिंदर कौर द्विवेदी...95 बैच के अफसर हैं। दोनों केंद्र में एडिशनल सिकरेट्री के लिए इम्पेनल हो चुके हैं। जाहिर है, डेपुटेशन पर जाने पर केंद्र में उन्हें इसी पोस्ट के समकक्ष पोस्टिंग मिलेगी। द्विवेदी दंपति वैसे काम में कमजोर नहीं माने जाते, मगर छत्तीसगढ़ में करीब डेढ़ दशक से उनका ग्रह-योग ठीक नहीं बैठ रहा है। रमन सरकार के दौरान भी उन्हें छत्तीसगढ़ छोड़कर डेपुटेशन पर जाना पड़ा था। हालांकि, तब स्थिति ये थी कि सरकार डेपुटेशन के लिए एनओसी नहीं दे रही थी। काफी जोर-आजमाइश के बाद सरकार से उन्हें दिल्ली जाने की हरी झंडी मिली। इस बार कम-से-कम एनओसी मिल गया है।

10 फीसदी डेपुटेशन

डीओपीटी के नियमों के अनुसार कुल कैडर के 40 फीसदी ब्यूरोक्रेट्स डेपुटेशन पर जा सकते हैं। इस दृष्टि से छत्तीसगढ़ के आईएएस डेपुटेशन में काफी पीछे हैं। छत्तीसगढ़ में आईएएस में 163 का कैडर है। इनमें सिर्फ 18 अफसर केंद्र में हैं। गौरव द्विवेदी, मनिंदर कौर और नीरज बंसोड़ अभी जाने वाले हैं। इन तीनों को मिला दें, तब भी यह फिगर 21 पहुंचता है। याने 13 प्रतिशत। वैसे, पहले तो स्थिति और खराब थी। बहुत हुए तो एक या दो। अभी तो अफसर प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं और उन्हें पोस्टिंग भी अच्छी मिल रही है। भारत सरकार में छत्तीसगढ़ के आईएएस अफसरों की कमी की एक वजह केंद्र में मंत्रियों का नहीं होना भी है। छत्तीसगढ़ को मुश्किल से एक राज्य मंत्री से ज्यादा कुछ नहीं मिलता। वो भी नुमाइशी वाले और कुछ होते नहीं। समझा जा सकता है...रेणुका सिंह की कितनी चलती होगी...वे यहां से अफसरों को दिल्ली ले जाएंगी। दूसरे राज्यों के केंद्रीय मंत्रियों की संख्या अधिक होती है। उनके साथ उनके राज्य के अफसर भी दिल्ली चले जाते हैं।

प्रसन्ना और कैसर की जोड़ी?

हेल्थ सिकरेट्री मनिंदर कौर द्विवेदी और हेल्थ डायरेक्टर नीरज बंसोड़ डेपुटेशन पर जा रहे हैं। उनकी रिलीविंग की फाइल चल गई है। सवाल है उनकी जगह पर नया स्वास्थ्य सचिव और संचालक कौन होगा? सरकार के पास सीनियर लेवल पर अफसर हैं नहीं। आलोक शुक्ला तीन बार हेल्थ सिकरेट्री रह चुके हैं। ऐसे में, प्रसन्ना आर. मतलब बड़े प्रसन्ना को हेल्थ विभाग की कमान सौंपने की चर्चा है। वहीं मनरेगा आयुक्त अब्दुल कैसर हक का नाम हेल्थ डायरेक्टर के लिए सुना जा रहा है। प्रसन्ना पहले डायरेक्टर हेल्थ रह चुके हैं। कुछ दिनों तक सिकरेट्री भी रहे, जब एसीएस रेणु पिल्ले हेल्थ संभाल रही थीं। प्रसन्ना को हेल्थ की अच्छी समझ है तो कैसर भी काम करने वाले अधिकारी माने जाते हैं। हालांकि, हेल्थ में एक प्रसन्ना और हैं। सी.आर. प्रसन्ना याने छोटे प्रसन्ना। अगर कैसर हक डायरेक्टर हेल्थ बनें तो हो सकता है कि सरकार छोटे प्रसन्ना को मनरेगा कमिश्नर की जिम्मेदारी सौंप दें। हालांकि, अभी अटकलों के लेवल में है यह। सरकार उधेड़बून में है...किसी भी नाम पर मुहर लग सकता है। पता चला है, आजकल में सचिव और डायरेक्टर लेवल पर एक लिस्ट निकलेगी। हो सकता है कि सिकरेट्री पंचायत भी बदल जाएं। बड़े प्रसन्ना की जगह पर षहला निगार को पंचायत की जिम्मेदारी सरकार सौंप दे। यह स्पश्ट कर दें, बड़े प्रसन्ना 2004 बैच के आईएएस हैं और छोटे प्रसन्ना 2006 बैच के।

रमन का कद!

बीजेपी ने छत्तीसगढ़ प्रदेष अध्यक्ष विष्णुदेव साय को हटा दिया तो उसके बाद नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को। जाहिर है, दोनों पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह के समर्थक माने जाते थे और यह भी सही है कि दोनों की नियुक्ति में रमन सिंह की भूमिका रही। चूकि दोनों अब पूर्व हो गए हैं, ऐसे में जाहिर है भाजपा के अंदरखाने में रमन सिंह के कद पर सवाल उठने लगे हैं। नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति के दिन भी बीजेपी मुख्यालय में ये चर्चा तेज रही कि रमन सिंह को राज्यपाल बनाया जा रहा है। ये ठीक है कि रमन सिंह के दोनों समर्थक शीर्ष पद से हटाए जा चुके हैं लेकिन इससे उनका कद कम हो गया...इसमें पूरी सच्चाई नहीं है। सूबे के बड़े भाजपा नेताओं को पता है कि पार्टी नेतृत्व का छत्तीसगढ़ में भरोसेमंद कोई चेहरा है तो वे रमन हैं। इसीलिए, कोई नेता लक्ष्मण रेखा से इधर-उधर होने की कोशिश नहीं कर रहा। आखिर, राजनीति में कोई भी चीज नामुमकिन नहीं होती। क्या पता, प्रबल भाग्यशाली रमन के दिन फिर...फिर जाए।

ओबीसी कार्ड कंप्लीट

आदिवासी वर्ग से द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने के बाद भाजपा को छत्तीसगढ़ के आदिवासी अध्यक्ष विष्णुदेव साय को हटाने में कोई जोखिम नहीं लगा। उनकी जगह पर अरुण साव को बिठाया गया। और इसके बाद बीजेपी ने नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को हटाकर कुर्मी समाज के ही नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष का दायित्व सौंप दिया। जाहिर है, छत्तीसगढ़ में बीजेपी का ओबीसी कार्ड कंप्लीट हो गया है। अब जो नियुक्तियां होंगी, उसमें जनरल क्लास और दलितों को प्राथमिकता दी जाएगी। प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के बाद सूबे में ग्लेरमस पद कोई बचा है तो वह है चुनाव अभियान समिति के प्रमुख का। सुना है, किसी सामान्य वर्ग से आने वाले नेता को यह जिम्मेदारी दी जाएगी। बीजेपी में अभी काफी नियुक्तियां होनी है। बीजेपी अध्यक्ष और भाजयुमो अध्यक्ष दोनों साहू हो गए हैं। ऐसे में, भाजयुमो के प्रमुख बदले जाएंगे तो नारायण चंदेल के नेता प्रतिपक्ष बनने से महामंत्री का एक पद भी खाली हुआ है, इन पर जल्द ही नियुक्ति होगी।

स्पीकर और नेता प्रतिपक्ष

छत्तीसगढ़ की सियासत में न केवल बिलासपुर का कद बढ़ा है बल्कि जांजगीर को भी अहमियत मिली है। कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता और स्पीकर चरणदास महंत जांजगीर से आते हैं और उन्हीं के जिले से अब नारायण चंदेल नेता प्रतिपक्ष बन गए हैं। इससे पहले ये कभी नहीं हुआ कि एक ही जिले से स्पीकर और नेता प्रतिपक्ष बना हो। यही नहीं, विधानसभा के सचिव दिनेश शर्मा भी जांजगीर जिले से हैं। उधर, बिलासपुर से अरुण साव को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। जाहिर है, इससे बिलासपुर का वजन भी बढ़ा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नेता प्रतिपक्ष के लिए मजबूत दावेदारी होने के बाद भी अजय चंद्राकर को पार्टी ने ये जवाबदेही क्यों नहीं दी?

2. भूपेश बघेल जैसे सियासी योद्धा के सामने बीजेपी के अरुण साव और नारायण चंदेल की जोड़ी कितनी कारगर होगी?

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