Begin typing your search above and press return to search.

छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में निःसंतान महिलाओं की मनोकामना होती है पूरी... पेड़ की जड़ से निकली जलधारा ...

छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में निःसंतान महिलाओं की मनोकामना होती है पूरी... पेड़ की जड़ से निकली जलधारा ...
X
By Sandeep Kumar

गरियाबंद। गरियाबंद जिले के सोरिद खुर्द (छुरा-फिंगेश्वर रोड) स्थित रमई पाठ में त्रेतायुग की अनेक निशानियां मौजूद हैं। खैर और कर्रा के पेड़ों से तैयार यहां के घने जंगल में मौजूद पहाडियां और उनसे गिरते झरने आज भी लोगों को यहां रम (रुक) जाने के लिए विवश करता है। झरन, गरगच और देवताधर पहाड़ी की विशेषाताएं आज भी क्षेत्र के घरों में माता सीता और प्रभु राम के प्रति उनकी भक्ति की कथा का गवाह रूप है। वाल्मिकी रामायण में उल्लेखित सीता वनगमन के जंगल और पहाड़ियों पर मौजूद शिलालेख सोरिद खुर्द के रमई पाठ को रामराज्य के काल से जोड़ते हैं।

किवदंती के अनुसार अयोध्या से परित्यज होने के बाद सीता माता को लक्ष्मण जी सोरिद खुर्द के जंगल में छोड़ गए थे। यहां की तीनों पहाड़ियों से घिरे एक पाठ (पठारी) क्षेत्र में माता सीता का मन रम गया और इसे रमई पाठ की पहचान मिली। कहा जाता है कि गर्भवती मां सीता यहां कुछ दिन रहे और यहीं पर माता ने पाषाण शीला से प्रभु श्रीराम की प्रतिमा तैयार करवाई और नित्य उनकी पूजा करने लगी। घरों में दादा-दादी की रामकथा में यह उल्लेख होता है कि माता की रक्षा और सेवा के लिए हनुमान जी यहां स्त्री रूप में आए। उनकी रक्षा के लिए हनुमान उपस्थित हुए थे, वह पाताल लोक की देवी के रूप में यहां पर आकर माता की देखरेख किया था, इसलिए करीब 6 फीट ऊंची हनुमान की प्रतिमा है।

यहां मौजूद श्रीराम, भगवान विष्णु, हनुमानजी, गरुड़ जी और शिव जी की पाषाण प्रतिमाएं माता सीता की भक्ति रूप को दर्शाती हैं। बताया जाता है कि छठवीं शताब्दी में यहां बिखरी प्रतिमाओं और शिलालेखों को एकत्र कर व्यवस्थित किया गया। साधु-संत, ऋषि-मुनि और तपस्वियों की जुबानी सुनी सीताराम की कथा यहां के लोगों को रमई पाठ के प्रति धार्मिक और आस्था का केंद्र बनाने में मददगार रही हैं। यहां मौजूद प्रतिमाओं की आयु अभी तक पुराविद भी नहीं बता सके हैं। यहां एक पेड़ की जड़ के पास से निकली जलधारा आज भी अपने अविरल स्वरूप के कारण जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है। लोग इसे सीता कुंड की छोटी गंगा कहते हैं।

रमई माता मंदिर मुख्यतः निःसंतान महिलाओं की मनोकामना पूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। इस कारण गादी माई के नाम से भी इस स्थान की पहचान है। संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालुजन यहां लोहे का बना झूला या संकल अर्पित करते हैं।

’नवरात्र के मौके पर विशेष पूजा’

माता के मंदिर के समीप प्राचीन हनुमान जी की प्रतिमा श्याम रंग की शिला पर है उसके आगे भैरव बाबा की प्रतिमा है। रमई पाठ को तपस्या स्थली के रूप में भी पूजा जाता है। यहां पर चैत्र-क्वांर नवरात्रि में माता को प्रसन्न करने के लिए भक्तों के द्वारा मनोकामना ज्योति जलाई जाती है। भंडारे का आयोजन किया जाता है। रमई पाठ पर माता के सम्मान में प्रतिवर्ष मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें भारी संख्या में लोग शामिल होते है।

’कैसे पहुंचे रमई पाठ’

यह मंदिर राजिम से 30 कि.मी की दूरी पर फिंगेश्वर से होते हुए छुरा मार्ग पर सोरिद ग्राम से 1 किमी की दूरी पर स्थित है। यह स्थान महासमुन्द से भी नजदीक है, महासमुन्द से राजिम फिंगेश्वर छुरा मोड़ मार्ग होते हुए माता के दरबार में पहुंचा जा सकता है। अब यह स्थान पर्यटन स्थान के रूप में उभरता नजर आ रहा है।

Sandeep Kumar

संदीप कुमार कडुकार: रायपुर के छत्तीसगढ़ कॉलेज से बीकॉम और पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी से MA पॉलिटिकल साइंस में पीजी करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं। पिछले 10 सालों से विभिन्न रीजनल चैनल में काम करने के बाद पिछले सात सालों से NPG.NEWS में रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

Read MoreRead Less

Next Story