Chhattisgarh BJP: ये हैं भाजपा के 21 प्रत्याशी: इनमें एक कांग्रेस विधायक का साढ़ू भी, फोटो के साथ जानिए क्या है उनका बैकग्राउंड
Chhattisgarh BJP: विधानसभा चुनाव 2023 के लिए भाजपा ने आज 21 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी की है।
रायपुर। भाजपा के 21 प्रत्याशियों में चार पहले विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। बाकी ज्यादातर प्रत्याशी नगरीय निकाय या पंचायत स्तर तक ही चुनाव लड़े हैं। इनमें बस्तर प्रत्याशी मनीराम कश्यप इसी सीट से कांग्रेस के मौजूदा विधायक लखेश्वर बघेल के रिश्तेदार हैं। नाम की घोषणा होने के बाद मीडिया से चर्चा करते हुए मनीराम ने खुद यह बात बताई। उन्होंने बताया कि लखेश्वर बघेल मेरे बड़े भैया हैं। उनके छोटे भाई मेरे साढ़ू भाई हैं, लेकिन रिश्तेदारी अपनी जगह है। राजनीति और चुनाव लड़ना यह अपनी जगह है।
भूलन सिंह मरावी: को भाजपा ने प्रेमनगर से प्रत्याशी बनाया है। मरावी सूरजपुर जिला में भाजपा के उपाध्यक्ष हैं। इन्हें केंद्रीय राज्य मंत्री और अंबिकापुर सांसद रेणुका सिंह का करीबी माना जाता है। मरावी पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं। प्रेमनगर सीट से 2003 व 2008 में रेणुका सिंह विधायक चुनी गई थीं। 2013 में कांग्रेस के खेलसाय सिंह ने रेणुका को हरा दिया था। 2018 में साय फिर से यह सीट जीतने में सफल रहे।
लक्ष्मी राजवाड़े: भटगांव से भाजपा ने इन्हें प्रत्याशी बनाया है। लक्ष्मी सूरजपुर जिला पंचायत सदस्य की सदस्य हैं और महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष हैं। क्षेत्र में तेजतर्रार नेत्री के रुप में इनकी पहचान है। 2003 में इस सीट से कांग्रेस के हरिदास भारद्वाज ने चुनाव जीत था। 2008 में भाजपा के रविशंकर त्रिपाठी ने जीत दर्ज की थी। उनकी असमय निधन के बाद उनकी पत्नी रजनी त्रिपाठी उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची। 2013 में कांग्रेस के पारनाथ राजवाड़े ने उन्हें हरा दिया। 2018 में पारनाथ दूसरी बार इस सीट को जीतने में सफल रहे।
शकुंतला सिंह पोर्थे: बलरामपुर भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष शकुंतला सिंह पोर्ते को पार्टी ने प्रतापुर से विधानसभा चुनाव के मैदान में उतारा है। पार्टी ने उन्हें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम सेवक पैकरा की टिकट काट कर प्रत्याशी बनाया है। प्रतापुर सीट से वर्तमान में कांग्रेस के डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम विधायक हैं। टेकाम 2008 में भाजपा के रामसेवक को हराकर विधानसभा पहुंचे थे। 2013 में पैकरा ने फिर उन्हें हरा दिया। डॉ.टेकाम अभी राज्य में कैबिनेट मंत्री हैं।
रामविचार नेताम: छत्तीसगढ़ की रमन सरकार में दो बार कैबिनेट मंत्री रहे रामविचार नेताम को पार्टी ने उनकी परंपरागत सीट रामानुजगंज से प्रत्याशी बनाया है। नेताम भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता हैं। राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। भाजपा की पहली सरकार में इन्हें गृहमंत्री बनाया गया था। 2003 में नेताम पाल सीट से चुनाव जीते थे। परिसीमन में इस सीट के समाप्त होने के बाद 2008 में उन्होंने रामानुजगंज से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के ब्रहस्पत सिंह को हराया, लेकिन 2013 के चुनाव में नेताम ब्रहस्तप सिंह से हार गए। 2018 में पार्टी ने नेताम के बदले रामकिशुन सिंह को टिकट दिया, लेकिन इस बार भी ब्रहस्तप सिंह जीत गए।
प्रबोध मिंज: अंबिकापुर नगर निगम के पूर्व महापौर और वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष हैं। मिंज राज्य पिछड़ा आयोग के सदस्य रह चुके हैं। मिंज को भाजपा ने लुंड्रा से प्रत्याशी बनाया है। 2018 में भी वे इस सीट से टिकट के दावेदार थे, लेकिन टिकट नहीं मिली थी। आदिवासी आरक्षित इस सीट पर 2003 में भाजपा के विजयनाथ ने भगवा झंडा लहराया था। 2008 में कांग्रेस के रामदेव राम ने जीत दर्ज की। तब यह सीट कांग्रेस के पास है। 2013 में कांग्रेस के चिंतमणी महराज और 2018 में डॉ. प्रीतम राम यहां से चुनाव जीते हैं।
महेश साहू: कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ खरसियां सीट से भाजपा ने इस बार महेश साहू को टिकट दिया है। 2018 के चुनाव में इस सीट से आईएएस की नौकरी छोड़कर आए ओपी चौधरी ने भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा था। महेश साहू प्रदेश साहू समाज के कार्यकारी अध्यक्ष और भाजपा रायगढ़ जिला के महामंत्री हैं। इस सीट पर खरसिया अघरिया समाज का दबदबा है। इसी वजह से पटेल परिवार लगातार यहां से जीत रहा है। आजादी के बाद से इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। 2013 और 2018 में उमेश पटेल यहां से विधायक चुने गए, जबकि उससे पहले उनके पिता नंदकुमार पटले विधायक थे।
हरिशचंद्र राठिया: रायगढ़ क्षेत्र में संघर्षशील आदिवासी नेता के रुप में पहचान रखने वाले राठिया को भाजपा ने धरमजयगढ़ सीट से प्रत्याशी बनाया है। धरमजयगढ़ सीट से भाजपा विधायक और मंत्री रहे ओमप्रकाश राठिया परिवार के करीबी माने जाते हैं। 2003 और 2008 में यह सीट भाजपा के ओमप्रकाश राठिया ने जीती थी। इसके बाद 2013 और 2018 में कांग्रेस के लालजीत सिंह राठिया यहां से जीत रहे हैं।
लखनलाल देवांगन: लखनलाल का नाम 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कोरबा से चला था, लेकिन उन्हें कटघोरा से टिकट मिला, जहां से वे चुनाव हार गए। 2013 के विधानसभा चुनाव में लखनलाल कटघोरा सीट से विधायक चुने गए थे। पार्टी ने इस बार उन्हें कोरबा से मैदान में उतारा है। कोरबा सीट पर पिछले तीन चुनावों से कांग्रेस का कब्जा है। जयसिंह अग्रवाल वहां से विधायक हैं और राज्य के कैबिनेट मंत्री हैं।
प्रणव कुमार मरपच्ची: गौरला पेंड्रा मरवाही जिला में अनुसूचित जनजाति मोर्चा जिला अध्यक्ष प्रणव कुमार मरपच्ची को पार्टी ने मरवाही सीट से प्रत्याशी बनाया है। मरवाही सीट 1998 के बाद से भाजपा जीत नहीं पाई है। 2003 में पार्टी ने इस सीट से अजीत जोगी के मुकाबले नंदकुमार साय को मैदान में उतारा था। इसके बाद से यह सीट लगातार जोगी परिवार के पास रहा। पूर्व सीएम जोगी के निधन के बाद हुए उप चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की।
सरला कोसरिया: भाजपा की प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। पार्टी ने इन्हें सरायपाली सीट से प्रत्याशी बनाया है। कोसरिया जिला पंचायत की अध्यक्ष रह चुकी हैं। राज्य बनने के बाद इस सीट से लगातार दो चुनाव कोई भी पार्टी नहीं जीत पाई है। 2003 में यहां से भाजपा के त्रिलोचन पटेल चुनाव जीते थे। 2008 में कांग्रेस के हरिदास भारद्वाज ने जीत दर्ज की। फिर 2013 में भाजपा के रामलाल चौहान जीते और 2018 में किस्मतलाल नंद यहां से विधायक चुने गए।
अलका चंद्राकर: जिला पंचायत महासमुंद की सदस्य हैं। भाजपा की प्रदेश उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी इन्हें मिल चुकी है। राजनीति में पूरे समय सक्रिय रहती हैं। पार्टी ने इन्हें खल्लारी सीट से प्रत्याशी बनाया है। 2003 में इस सीट से भाजपा के प्रीतम राम सिंह ने चुनाव जीता था, लेकिन 2008 में कांग्रेस के परेश बागबहारा ने यह सीद भाजपा ने छीन ली। 2013 में भाजपा के चुन्नी लाल साहू ने जीत दर्ज की, लेकिन 2018 में भाजपा फिर यह सीट हार गई। द्वारिकाधीश यादव अभी यहां से विधायक हैं।
इंद्रकुमार साहू: पंचायत और किसानों की राजनीति से पहचान बनाने वाले इंद्रकुमार को भाजपा ने अभनपुर से प्रत्याशी बनाया है। साहू ग्राम पंचायत बेन्द्रि के सरपंच रह चुके हैं। पार्टी ने उन्हें अपने वरिष्ठ नेता चंद्रशेखर साहू का टिकट काट कर प्रत्याशी बनाया है। इस सीट से अब तक कांग्रेस से धनेंद्र साहू और भाजपा के चंद्रशेखर साहू आमने- सामने रहे हैं। इसमें 2003 में धनेंद्र साहू जीत थे और 2008 में चंद्रशेखर ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद के दोनों चुनाव में धनेंद्र साहू चंद्रशेखर साहू को हराने में सफल रहे हैं।
रोहित साहू: जिला पंचायत गरियाबंद सदस्य हैं। विधायक प्रत्याशी रह चुके हैं। पार्टी ने इन्हें राजिम सीट से मैदान में उतारा है। पार्टी ने उन्हें पूर्व विधायक संतोष साहू का टिकट काटकर प्रत्याशी बनाया है। शुक्ल परिवार के प्रभाव वाले इस सीट पर 2018 में अमितेष शुक्ल विधायक चुने गए थे। 2013 में भाजपा के संतोष उपाध्यक्ष, 2008 में कांग्रेस के अमितेष शुक्ल और 2003 में भाजपा के चंदूलाल साहू विधायक रह चुके हैं।
श्रवण मरकाम: पूर्व विधायक श्रवण मरकाम पर भाजपा ने फिर अपना विश्वास जताया है। पार्टी ने उन्हें सिहावा सीट से फिर मैदान में उतारा है। मरकाम 2013 में इसी सीट से विधायक चुने गए थे। 2018 में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। आदिवासी आरक्षित इस सीट से 2003 में भाजपा की पिंकी ध्रुव चुनाव जीती थीं, लेकिन 2008 का चुनाव हार गईं। 2018 में पार्टी ने फिर उन्हें टिकट दिया था, लेकिन इस बार भी वे कांग्रेस की डॉ. लक्ष्मी ध्रुव से हार गईं।
देवलाल हलवा ठाकुर: भाजपा के मीडिया विभाग में प्रवक्ता की जिम्मेदारी संभाल रहे देवलाल को पार्टी ने डौंडी लोहरा सीट से प्रत्याशी बनाया है। देवलाल 2018 में इसी सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में भाग्य आजमाया था। ठाकुर 21360 वोट के साथ तीसरे स्थान पर थे। भाजपा प्रत्याशी लाल महेंद्र सिंह टेकम को 34345 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस की अनिल भेंडिया 67448 वोट के साथ विधानसभा पहुंच गई थीं। 2003 और 2008 में इस सीट पर भाजपा के दो अलग- अलग प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी। 2013 से इस सीट पर कांग्रेस की अनिला भेंडि़ंया का कब्जा है। वे अभी कैबिनेट मंत्री हैं।
विजय बघेल: दुर्ग लोकसभा सीट से भाजपा सांसद और पार्टी के विधानसभा चुनाव की घोषणा पत्र समिति के संयोजक हैं। पार्टी ने इन्हें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ पाटन सीट से मैदान में उतारा है। विजय और भूपेश चाचा- भतीजा हैं। कांग्रेस की राजनीति से निकल कर आए विजय बघेल ने 2008 में पाटन सीट से ही भूपेश बघेल को हराया था, हालांकि 2013 में फिर वे हार गए। इस सीट पर इस बार मुकाबला दिलचस्प हो सकता है।
विक्रांत सिंह: खैरागढ़ विधानसभा सीट से भाजपा ने इस युवा चेहरे को प्रत्याशी बनाया है। विक्रांत पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के भांजा हैं। राजनांदगांव जिला पंचायत के उपाध्यक्ष हैं। राजघराने के प्रभाव और लोधी बाहुल सीट से भाजपा ने उन्हें मैदान में उतारा है। विक्रांत खैरागढ़ उपचुनाव में भी टिकट के दावेदार थे। राज्य बनने के बाद भाजपा केवल एक बार 2008 में यह सीट जीत पाई। 2018 में इस सीट से जनता कांग्रेस की टिकट पर देवव्रता सिंह चुनाव जीकर आए थे। उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा कर लिया।
गीता घासी साहू: जिला पंचायत राजनांदगांव की अध्यक्ष गीता साहू को भाजपा ने खुज्जी सीट से मैदान में उतारा है। राज्य बनने के बाद भाजपा इस सीट से केवल एक बार जीत पाई है। 2003 में इस सीट से पार्टी के राजिद्रपाल सिंह भाटिया ने जीत दर्ज की थी। 2008 में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया। तब से इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। 2008 और 2013 में भोलाराम साहू और 2018 में छन्नी साहू ने कांग्रेस की टिकट पर इस सीट से जीत दर्ज की।
संजीव साहा: चौकी सीट से विधायक रहे संजीव साहा को पार्टी ने इस बार मोहला- मानपुर से टिकट दिया है। चौकी सीट 2003 के चुनाव के बाद हुए परिसीमन में समाप्त हो गई। 2008 के चुनाव से अस्तित्व में आए मोहला- मानपुर सीट पर भाजपा अभी तक जीत नहीं पाई है। तीन चुनाव से कांग्रेस लगातार जीत दर्ज कर रही है। 2008 में शिवराज सिंह उसारे, 2013 में तेज कुंवर और 2018 में इंद्ररशाह ने जीत दर्ज की है।
आसाराम नेताम: कांकेर जनपद सदस्य रह चुके आसाराम को पार्टी ने कांकेर सीट से प्रत्याशी बनाया है। कांकेर सीट 2008 के बाद से भाजपा जीत नहीं पाई है। 2003 में इस सीट से अघन सिंह चुनाव जीते थे। 2008 मे भी भाजपा की सुमित्रा जीती थीं। इसके बाद से इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। पूर्व आईएएस अफस शिशुपाल सोरी अभी यहां से विधायक हैं।
मनीराम कश्यप: भाजपा ने इन्हें बस्तर सीट से प्रत्याशी बनाया है। कश्यपम बस्तर सीट से कांग्रेस विधायक लखेश्वर बघेल के रिश्तेदार हैं। मनीराम पंच, सरपंच और जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। पार्टी ने उन्हें पूर्व विधायक डॉ. सुभाऊ कश्यप का टिकट काटकर मैदान में उतारा है। डॉ. कश्यम 2008 में विधायक चुने गए थे। उसके बाद 2013 और 2018 में उन्हें कांग्रेस के लखेश्वर बघेल के हाथों हार का सामना करना पड़ा।