छत्तीसगढ़ भाजपा में अब संघ का वर्चस्व: शिवप्रकाश, माथुर और जामवाल की तिकड़ी क्या शीर्षासन कर रही बीजेपी को सत्ता में वापसी करा पाएगी?

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छत्तीसगढ़ भाजपा बदल रही है। बीते 19 वर्षों से पार्टी का अक्स बने नेताओं को किनारे किया जा रहा है। कभी धुरी रहे दिग्गज विदा किए जा रहे हैं और हाशिए पर चल रहे योग्य, युवा और कर्मठ कार्यकर्ताओं के हाथ पार्टी की कमान सौंपी जा रही है। यह बदलाव बीते करीब दो दशक की तस्वीर को बदल देने और जड़ता को तोड़ने के लिए नजर आ रहा है।
बदलाव की शुरूआत प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष से हुई। लगातार वही वही चेहरे देखकर कार्यकर्ताओं में निराशा थी। उस पर कांग्रेस सरकार का नेतृत्व कर रहे भूपेश बघेल की आक्रामकता के सामने बीते करीब साढ़े तीन साल से भाजपा असहाय ही नजर आई है। भूपेश बघेल ने अपनी राजनीतिक चतुराई से प्रदेश में कोई बड़ा मुद्दा बनने ही नहीं दिया। भाजपा के दिग्गज केवल बयान ही जारी करते रहे और ट्वीटर और फेसबुक के माध्यम से सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते नजर आए।
भाजपा में यह बदलाव केवल प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष तक ही सीमित नहीं रहे। पार्टी ने दग्गुबती पुरंदेश्वरी की जगह ओमप्रकाश माथुर को प्रदेश प्रभारी बनाया है। भाजपा का राष्ट्रीय संगठन संघ के सक्रिय नेताओं को भाजपा संगठन की कमान सौंप रहा है। राजस्थान के रहने वाले ओम माथुर खांटी संघी नेता हैं और जनसंघ के जमाने के हैं। उन्हें प्रधानमंत्री का करीब भी माना जाता है।
छत्तीसगढ़ भाजपा में अब संघ की पृष्ठभूमि वाले नेताओं का दबदबा हो गया है। राष्ट्रीय सह-संगठन महामंत्री शिवप्रकाश और क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल सीधे संघ से जुड़े हैं।
बड़े बदलाव की नौबत क्यों?
ऐसा नहीं है भारतीय जनता पार्टी में इतना बड़ा बदलाव अनायास हुआ है। 15 साल तक सत्ता में रहने के दौरान कई बड़े नेताओं के स्वभाव से ही संघर्ष समाप्त हो गया। आपसी गुटबाजी चरम पर पहुंच गई और हाल यह हो गया कि संगठन में एक ही गुट के लोग हमेशा काबिज होते रहे। प्रदेशाध्यक्ष हों या नेता प्रतिपक्ष, कभी धरमलाल कौशिक तो कभी विष्णुदेव साय। संगठन की कमान बीते दो दशक से पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के हाथों में ही रही है। संगठन के अहम पदों पर बैठे नेता भूपेश सरकार के खिलाफ प्रदेश में न कोई बड़ा मु्द्दा खड़ा पाए न कार्यकर्ताओं में जोश जगा पाए। विधानसभा और विधानसभा से बाहर भूपेश सरकार के कठघरे में खड़ा करने में नाकाम ही रहे।
संघ वालों ने भी खाई मलाई
भाजपा में कार्यकर्ता ही कर्ताधर्ता है। कार्यकर्ता मुखर होकर कहने लगे थे कि भाजपा संगठन के साथ साथ जो लोग संघ से भाजपा में आए उन्होंने भी मलाई खाने से परहेज नहीं किया। मलाईदार पदों पर अपने चहेतों को बिठाया और मनमाने टिकट बांटे। उसका खामियाजा भाजपा को बीते चुनाव में उठाना पड़ा। ऐसा खामियाजा कि 15 वर्ष तक सत्ता में काबिज भाजपा सरकार 14 सीटों पर सिमट गई है। शीर्ष संगठन ने अब ऐसे सभी लोगों को किनारे कर दिया है। कमान नए हाथों में सौंपी है। इस उम्मीद के साथ कि बदलाव बेहतर भविष्य की नींव रखेगा।
थोक में कटेंगे टिकट
कहते हैं कि अतीत खुद को दोहराता है। 2003 में जब जोगी सरकार थी उस वक्त भी भाजपा संकट में थी। पूर्व मुख्यमंत्री ने भाजपा का संगठन ही तोड़ दिया था। उस वक्त भी डा. रमन सिंह को केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दिलवाकर छत्तीसगढ़ प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था। संघर्ष कर भाजपा ने जोरदार वापसी की थी। वैसा ही माहौल इस वक्त है। माना जा रहा है कि भाजपा संगठन में बदलाव का यह दौर टिकट वितरण तक जारी रहेगा। नए लोगों को टिकट दिए जाएंगे और बीते चुनाव में हारे हुए नेताओं को किनारे किया जाएगा।
बदलेगी भाजपा की वानर सेना
भारतीय जनता युवा मोर्चा को भारतीय जनता पार्टी की वानर सेना कहा जाता है। विपक्ष पर चढ़ाई करने का काम भाजयुमो का ही है। बीते तीन साल में भाजयुमो अपना प्रभाव नहीं दिखा पाई। भाजयुमो में नियुक्तियों को लेकर भी सवाल उठे हैं। जब बदलाव का तूफान भाजयुमो तक पहुंचा तब 24 अगस्त को बड़ा आंदोलन किया गया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष भी बदल दिए गए। जाहिर है कि युवा मोर्चा अध्यक्ष के बदलने के बाद युवा संगठन में नए चेहरे शामिल होंगे जो आने वाले समय में भाजपा की ताकत को और बढ़ाएंगे। इससे पता चलता है कि आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा आलाकमान और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कोई कमी नहीं रखना चाहता।
नया सरदार नया अंदाज
अरुण साव के प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने पुराने चेहरों को विदा कर दिया। प्रदेश कार्यकारिणी में 50 फीसदी नए चेहरे शामिल किए गए। ज्यादा पदों पर युवाओं को तरजीह दी गई। इस पूरे बदलाव को कार्यकर्ताओं ने बेहद सकारात्मक रूप में लिया है। कहीं से भी कोई विरोध की आवाज सुनाई नहीं दी है। हालांकि यह भाजपा की खूबी भी है कि सरदार बदल जाए तो भी कोई आवाज नहीं उठती। कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहे हैं, उससे लगता है कि भाजपाई प्रसन्न हैं। उन्हें लगता है कि पिछला चुनाव हारने की एक वजह सत्ता और संगठन में ठहराव था। वह सिलसिला चुनाव हारने के बाद भी नहीं टूटा।
