Chhattisgarh Assembly Election 2023 नोटा का वोट घटा : पहली बार मतदाताओं में खूब दबाया नोटा, क्या दूसरी बार में मिला कोई विकल्प? जानें यहां
Chhattisgarh Assembly Election 2023 : रायपुर. नोटा (Nota) यानी इनमें से कोई नहीं (None of the above) का विकल्प. जो प्रत्याशी आपके सामने हैं, उनमें से कोई भी आपको पसंद नहीं है तो आप नोटा दबा सकते हैं. छत्तीसगढ़ में 2013 के चुनाव में पहली बार मतदाताओं को नोटा यानी का विकल्प मिला था. इसमें मतदाताओं में इसका खूब इस्तेमाल किया था. 90 में से 34 सीटों पर नोटा तीसरे नंबर पर था. हालांकि 2018 में आंकड़े बदल गए. मतदाताओं ने सिर्फ 15 सीटों पर ही नोटा को तीसरे नंबर पर रखा. क्या नोटा के प्रति लोगों का रुझान घट गया या नोटा से बेहतर कोई विकल्प लोगों के पास था? आइए पहले आंकड़ों पर गौर करें...
2013 में उत्सुकता या गुस्सा
देश में 2013 में चार राज्यों में नोटा का ऑप्शन दिया गया था. छत्तीसगढ़ इनमें से एक था. इस समय तक भाजपा की सरकार को दस साल हो गए थे. नोटा को लेकर मीडिया में काफी खबरें आ रही थीं, इसलिए लोगों में भी इसका रुझान देखने को मिला. 2013 में चार लाख 1058 वोट पड़े थे. भाजपा और कांग्रेस के बाद बसपा को 4.27 प्रतिशत वोट पड़े थे. वहीं, नोटा पर 3.07 प्रतिशत वोट पड़े थे. इस साल 34 सीटों पर नोटा तीसरे नंबर पर रहा. 33 सीटों पर तीसरे नंबर पर रहा.
2018 में क्या स्थिति रही
2018 में नोटा पर पड़े वोटों की संख्या 2.82 लाख रही. यानी 2013 के मुकाबले काफी वोट घट गए. इस चुनाव में भाजपा की सरकार को 15 साल हो चुके थे. सरकार के खिलाफ नाराजगी भी देखी जा रही थी. इस साल सिर्फ 15 सीटों पर ही नोटा तीसरे नंबर पर रहा. 29 सीटें ऐसी थीं, जहां नोटा चौथे नंबर पर था. हालांकि 2018 के चुनाव में नोटा 15वें नंबर तक पहुंच गया.
पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर डॉ. अजय चंद्राकर के मुताबिक 2013 में पहली बार नोटा जैसा विकल्प मिलने के कारण स्वाभाविक रूप से वोटर्स में जिज्ञासा थी. इसी कौतुहलवश उन्होंने किसी दल के प्रत्याशी के बजाय किसी को भी नहीं चुनने का विकल्प या नोटा को चुना. यही वजह है कि उस दौरान लोगों ने तीसरे या चौथे नंबर पर कांग्रेस या भाजपा के बाद नोटा पर वोट डाले थे.
इसके विपरीत 2018 में सत्ता परिवर्तन की लहर थी. सरकार के खिलाफ लोगों की नाराजगी कहें या घोषणा पत्र का असर, लोगों ने कांग्रेस का विकल्प चुना. कांग्रेस के विधायकों को जो वोट मिले, उससे साफ है कि लोगों का रुझान कांग्रेस की ओर था. 2018 के चुनाव में एक और बात देखी गई. नोटा के बजाय लोगों ने जोगी कांग्रेस और बसपा गठबंधन को चुना. बड़ी संख्या में ऐसी सीटें हैं, जहां जोगी कांग्रेस और बसपा तीसरे नंबर पर रही.
क्या 2023 में भी नोटा का विकल्प लोग चुन सकते हैं? इस सवाल पर प्रोफेसर डॉ. चंद्राकर का कहना है कि अभी से यह कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे हो सकते हैं, जिनमें दोनों दलों से निराश लोग नोटा का विकल्प चुन सकते हैं. जैसे- बेरोजगारी भत्ता।
2013 के आंकड़े
नोटा का स्थान – विधानसभा की संख्या
3 – 34
4 – 33
5 – 12
6 – 6
7 – 4
10 – 1
2014 के आंकड़े
नोटा का स्थान – विधानसभा की संख्या
3 – 15
4 – 29
5 – 16
6 – 15
7 – 4
8 – 2
9 – 3
10 – 2
11 – 2
12 – 0
13 – 1
14 – 0
15 – 1
क्या है नोटा
बता दें कि भारत में नोटा पहली बार सुप्रीम कोर्ट के 2013 में दिये गए एक आदेश के बाद शुरू हुआ. पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ वर्सेस भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मतदाताओं को मतदान के लिए नोटा का भी विकल्प उपलब्ध कराया जाए. इस आदेश के बाद भारत नकारात्मक मतदान का विकल्प उपलब्ध कराने वाला विश्व का 14वां देश बन गया. नोटा के तहत ईवीएम मशीन में नोटा (NONE OF THE ABOVE-NOTA) के लिए गुलाबी बटन होता है. यदि राजनीतिक दल गलत उम्मीदवार देती हैं तो नोटा का बटन दबाकर उनके प्रति मतदाता अपना विरोध दर्ज करा सकते हैं.
Chhattisgarh Assembly Election 2018 Flash Back