Chhattisgarh Assembly Election 2023 CG में मुकाबला कांग्रेस-भाजपा में ही : चार चुनाव में दो सीट से आगे नहीं बढ़ पाई बसपा, एक के बाद एनसीपी गायब, जोगी कांग्रेस भी बिखरी
Chhattisgarh Assembly Election 2023
रायपुर. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जितने चुनाव हुए उसमें कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुख्य मुकाबला रहा. थर्ड फ्रंट या तीसरी ताकत का प्रदर्शन कमजोर रहा. बसपा दो सीटों से आगे नहीं बढ़ पाई तो एनसीपी एक ही सीट जीती और गायब हो गई. जोगी कांग्रेस ने 5 सीटें जीतकर जरूर उम्मीद जगाई थी, लेकिन चुनाव आने से पहले ही बिखर गई है. दिल्ली और पंजाब के मुख्यमंत्री के आने के बाद छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी को लेकर कई दावे किए जा रहे हैं, लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अभी आने वाले दो-तीन चुनावों तक मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही होगा.
पहले बात 2003 की
मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ में 2003 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ. उस दौरान एनसीपी की सबसे ज्यादा चर्चा थी. पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने एनसीपी जॉइन किया था और 89 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. तत्कालीन सीएम अजीत जोगी और शुक्ल कट्टर प्रतिद्वंद्वी थे. जोगी के कारण ही शुक्ल कांग्रेस से अलग हुए थे और पूरे छत्तीसगढ़ में एनसीपी का गठन किया था.
हालांकि जब चुनाव परिणाम आए, तब सिर्फ चंद्रपुर सीट से नोबेल कुमार वर्मा जीत पाए. बाकी 84 सीटों पर एनसीपी के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी. इस चुनाव में बसपा को दो सीटें मिलीं. मालखरौदा से लालसाय खूंटे और सारंगढ़ से कामदा जोल्हे की जीत हुई थी. वर्तमान में कामदा भाजपा में शामिल हो चुकी हैं. भाजपा ने 50 सीटें जीतकर सरकार बनाई. कांग्रेस 37 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही.
2008 में सिर्फ तीन
5 साल बाद जब चुनाव हुए तब राजनीतिक परिदृश्य बदल चुका था. विद्याचरण शुक्ल की तब तक कांग्रेस में वापसी हो चुकी थी. इस बार एनसीपी का नामलेवा नहीं था. तीन सीटों पर एनसीपी के प्रत्याशी उतरे. इनमें नोवेल कुमार वर्मा भी शामिल थे, लेकिन इस बार वे हार गए. दो और प्रत्याशी थी, जिनमें एक अपनी जमानत नहीं बचा पाए.
इस चुनाव में दूसरी बार 50 सीटों के साथ भाजपा की सरकार में वापसी हुई. कांग्रेस की एक सीट बढ़ गई और 38 सीटें मिलीं. हालांकि कांग्रेस के एक उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई. बसपा को दो सीटें मिलीं. इनमें पामगढ़ से दूजराम बौद्ध और अकलतरा से सौरभ सिंह जीते थे. वर्तमान में सौरभ अकलतरा सीट से बीजेपी के विधायक हैं.
2013 में एक निर्दलीय
राज्य में भाजपा की सरकार को दस साल हो चुके थे और यह तीसरा चुनाव था. इस बार एंटी इन्कमबेंसी जैसी स्थिति बन रही थी. हालांकि भाजपा की सिर्फ एक सीट घटी और 49 सीटों के साथ भाजपा सरकार में आई. कांग्रेस से 2008 के मुकाबले एक सीट और बढ़ गई. यानी 39 सीटें कांग्रेस ने जीतीं. इस बार बसपा सिर्फ एक सीट जीत पाई. जैजैपुर से केशव चंद्रा जीते. महासमुंद से एक निर्दलीय का खाता खुला. डॉ. विमल चोपड़ा ने भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ा और वे जीते. फिलहाल वे भाजपा के चिकित्सा प्रकोष्ठ के संयोजक हैं.
2018 में विस्फोटक नतीजे
15 साल की भाजपा की सरकार के लिए यह काफी विस्फोटक चुनाव था. बड़े-बड़े दिग्गज ढह गए. 15 साल की सत्ता के बाद भाजपा सिर्फ 15 सीटें जीत पाई. कांग्रेस ने एकतरफा 68 सीटों पर जीत दर्ज की. फिलहाल 71 सीटें हैं. मरवाही, खैरागढ़ और दंतेवाड़ा उपचुनाव में कांग्रेस जीती. बस्तर और भानुप्रतापपुर में भी उपचुनाव हुए थे, लेकिन ये दोनों कांग्रेस की ही सीटें थीं. बस्तर से दीपक बैज विधायक बने थे. बाद में सांसद चुने गए. भानुप्रतापपुर सीट विधानसभा के डिप्टी स्पीकर मनोज मंडावी के निधन के बाद खाली हुई. अभी उनकी पत्नी सावित्री मंडावी विधायक हैं.
यह चुनाव छत्तीसगढ़ के चुनावी इतिहास में दर्ज हो गया, क्योंकि इतनी बड़ी जीत और बड़ी मार्जिन से जीत अब तक नहीं हुई थी. कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले पूर्व सीएम अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस और बसपा गठबंधन ने 7 सीटें जीतीं. इनमें 5 सीटें जोगी कांग्रेस की थीं. हालांकि पूर्व सीएम जोगी के निधन के बाद मरवाही और देवव्रत सिंह के निधन के बाद खैरागढ़ सीट हाथ से निकल गई. लोरमी विधायक धर्मजीत सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया. डॉ. रेणु जोगी और प्रमोद शर्मा जोगी कांग्रेस के विधायक हैं, लेकिन शर्मा के भी गाहे-बगाहे कांग्रेस या भाजपा जॉइन करने की बात आती रहती है. जोगी कांग्रेस दो सीटों पर दूसरे और 29 सीटों पर तीसरे नंबर पर रही थी.
अब बात वर्तमान स्थिति की...
सोशल साइंस के प्रोफेसर डॉ. अजय चंद्राकर मानते हैं कि आने वाले दो-तीन चुनावों में भी मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के ही बीच होने वाला है. आज के दौर पर बात करने से पहले वे मध्यप्रदेश से चले आ रहे ट्रेंड का रेफरेंस देते हैं. डॉ. चंद्राकर के मुताबिक मध्यप्रदेश के समय से ही कांग्रेस और जनसंघ और फिर कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला चला आ रहा है. इस बीच समय-समय पर कुछ दलों के भी विधायक जीत कर आए लेकिन स्थाई तौर पर कांग्रेस-भाजपा को छोड़कर कोई दल अपनी जगह नहीं बना पाया.
बसपा के संस्थापक काशीराम का छत्तीसगढ़ आना-जाना लगा रहता था. इसका प्रभाव भी दिखता है, लेकिन यह भी देखा गया है कि बसपा के लोग दूसरे दलों में शामिल होते रहे हैं. कद्दावर नेता होने के कारण विद्याचरण शुक्ल के नाम पर एनसीपी की चर्चा हुई, लेकिन परिणाम आशातीत नहीं रहे. जनता कांग्रेस की स्थिति सभी देख रहे हैं.
जहां तक आम आदमी पार्टी की बात है तो इसे लेकर दो तरह के विचार हैं. एक पक्ष इन्हें फाइटर मानता है, लेकिन आलोचक बी टीम के रूप में देखते हैं. क्रमश: पहले और दूसरे लेयर के नेता छोड़ते गए. तीसरे लेयर में जो नेता जुड़ रहे हैं, वे राजनीतिक महत्वाकांक्षा लिए हुए हैं. छत्तीसगढ़ में अभी तक आम आदमी पार्टी ने मजबूत स्थिति का अहसास नहीं कराया है.
कुल मिलाकर यह स्थिति बनती है कि आने वाले समय में ही कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुलाबला होगा.
Chhattisgarh Assembly Election 2018 Flashback