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Chhattisgarh Assembly Election 2023: 5 सीटों पर सिमट जाती भाजपा : त्रिकोणीय संघर्ष में 10 सीटों पर जीती भाजपा, जोगी कांग्रेस की मौजूदगी से हुआ फायदा

2018 में भाजपा 5 सीटों पर सिमट जाती? क्या जोगी कांग्रेस की वजह से भाजपा को इतनी सीटें मिल पाईं. जोगी कांग्रेस नहीं होती तो क्या कांग्रेस 80 से भी ज्यादा सीटें जीत जाती? ऐसे कई सवाल हैं, जो दिसंबर 2018 से आज तक चले आ रहे हैं. आज हम इसी मुद्दे पर बात करने वाले हैं.

Chhattisgarh Assembly Election 2023: 5 सीटों पर सिमट जाती भाजपा : त्रिकोणीय संघर्ष में 10 सीटों पर जीती भाजपा, जोगी कांग्रेस की मौजूदगी से हुआ फायदा
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By NPG News

Chhattisgarh Assembly Election 2023

मनोज व्यास @ NPG.News

रायपुर. क्या जोगी कांग्रेस और बसपा का गठबंधन नहीं होता तो 2018 में भाजपा 5 सीटों पर सिमट जाती? क्या जोगी कांग्रेस की वजह से भाजपा को इतनी सीटें मिल पाईं. जोगी कांग्रेस नहीं होती तो क्या कांग्रेस 80 से भी ज्यादा सीटें जीत जाती? ऐसे कई सवाल हैं, जो दिसंबर 2018 से आज तक चले आ रहे हैं. आज हम इसी मुद्दे पर बात करने वाले हैं. कांग्रेस तो पहले ही जोगी कांग्रेस को भाजपा की बी टीम कहती रही, लेकिन क्या बी टीम ने भाजपा की लाज बचाई या भाजपा की मुश्किलें बढ़ाई. पहले उन 15 सीटों का समीकरण देखें, जो भाजपा ने जीती...

रामपुर : छत्तीसगढ़ की विधानसभा सीटों की जब एक से गिनती शुरू होती है तो 20वें नंबर की सीट है रामपुर. 2018 में इसी नंबर से भाजपा का खाता खुला था. एक से 19 तक सभी सीटों में कांग्रेस जीती थी. पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर यहां से भाजपा के उम्मीदवार थे. पिछली बार वे श्याम लाल कंवर से हारे थे. इस बार श्याम लाल कंवर तीसरे स्थान पर चले गए. दूसरे स्थान पर जोगी कांग्रेस के उम्मीदवार फूल सिंह राठिया थे. ननकीराम कंवर को 65048 वोट मिले थे. राठिया को 46873 और श्यामलाल कंवर को 44261 वोट मिले थे.

मुंगेली : यह 27वें नंबर की सीट है. इस बीच क्रमश: कोरबा, कटघोरा, पाली तानाखार, मरवाही, कोटा और लोरमी सीटें आती हैं. ये सभी 6 सीटें कांग्रेस नहीं जीती, बल्कि मरवाही, कोटा और लोरमी में जोगी कांग्रेस के प्रत्याशियों की जीत हुई थी. मुंगेली में पूर्व खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहले 60469 वोटों के साथ पहले नंबर पर थे. दूसरे नंबर पर कांग्रेस के राकेश पात्रे और तीसरे नंबर पर जोगी कांग्रेस के चंद्रभान बारमते थे. बारमते कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं. पात्रे को 51982 और बारमते को 32257 वोट मिले थे.

बिल्हा : पूर्व विधानसभा स्पीकर धरमलाल कौशिक के चिर परिचित प्रतिद्वंद्वी सियाराम कौशिक इस बार जोगी कांग्रेस के उम्मीदवार थे. कांग्रेस से राजेंद्र शुक्ला था. धरमलाल को 84431 वोट मिले, वहीं शुक्ला को 57907 और सियाराम को 29613 वोट मिले थे.

बेलतरा : बद्रीधर दीवान के स्थान पर भाजपा ने रजनीश सिंह को उतारा तो कांग्रेस ने राजेंद्र साहू (डब्बू) को. अनिल टाह इस बार जोगी कांग्रेस से उम्मीदवार थे. रजनीश सिंह कांग्रेस के 43342 वोटों के मुकाबले 49601 वोट से जीते. टाह के पास 38308 वोट थे.

मस्तूरी : अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा के डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी का मुकाबला कांग्रेस से नहीं, बल्कि बसपा से था. बांधी को 67950 वोट मिले. बसपा के जयेंद्र सिंह पाटले को 53843 और कांग्रेस के दिलीप लहरिया को 53843 वोट.

अकलतरा : भाजपा से सौरभ सिंह यहां चुनाव जीते. इस सीट पर पहले उनके पिता स्व. धीरेंद्र सिंह और चचेरे भाई राकेश सिंह विधायक रह चुके हैं. सौरभ सिंह बसपा के टिकट पर पहली बार विधायक बने थे. 2018 में उन्हें बसपा की प्रत्याशी ऋचा जोगी ने ही चुनौती दी. सौरभ सिंह बेहद मुकाबले में ऋचा जोगी से 1854 वोटों से जीते थे. उन्हें 60502 वोट मिले. ऋचा को 58648 और कांग्रेस के चुन्नीलाल साहू 27667 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर थे. यहां बता दें कि ऋचा जोगी पूर्व सीएम स्व. अजीत जोगी की बहू हैं. स्व. जोगी व डॉ. रेणु जोगी ने जोगी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन ऋचा बसपा की टिकट से चुनाव मैदान में उतरी थीं.

जांजगीर चांपा : भाजपा के नारायण चंदेल के सामने चिर परिचित प्रतिद्वंद्वी मोतीलाल देवांगन थे. चंदेल को 54040 वोट मिले. देवांगन को 49852 वोट मिले, वहीं बसपा के उम्मीदवार ब्यासनारायण कश्यप को 33505 वोट मिले. ब्यासनारायण कश्यप भाजपा के बागी थे.

भाटापारा : यहां भाजपा के शिवरतन शर्मा और कांग्रेस के सुनील माहेश्वरी के बीच कड़ा मुकाबला था. शिवरतन को 63399 वोट मिले थे. जिला पंचायत के सदस्य रहे माहेश्वरी को 51490 वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर कांग्रेस के पूर्व विधायक चैतराम साहू थे, जो जोगी कांग्रेस से चुनाव मैदान में उतरे थे. उन्हें 45907 वोट मिले थे.

रायपुर दक्षिण : छत्तीसगढ़ की 90 सीटों में से यह 51वें नंबर की विधानसभा सीट है. यहां से बृजमोहन अग्रवाल जीते. हालांकि इस बार जीत वैसी नहीं थी, जैसी हर बार होती थी. जीत का आंकड़ा घट गया. उनके प्रतिद्वंद्वी थे कांग्रेस के कन्हैया अग्रवाल. यहां दोनों के बीच सीधा मुकाबला था. बृजमोहन को 77589 और कन्हैया को 60093 वोट मिले थे.

बिंद्रानवागढ़ : भाजपा से एक बार विधायक रह चुके डमरूधर पुजारी यहां से फिर जीते. उनके मुकाबले कांग्रेस के संजय नेताम थे. तीसरे नंबर पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के ओंकार शाह थे. चर्चित सुपेबेड़ा क्षेत्र इसी सीट के अंतर्गत आता है, जिसे लेकर पिछली सरकार से लेकर अब तक सवालों के घेरे में है. यहां पुजारी को 79619 वोट, कांग्रेस के नेताम को 69189 और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के शाह को 19022 वोट मिले थे.

कुरूद : तेजतर्रार नेता अजय चंद्राकर के लिए 2018 की जीत आसान नहीं होती, लेकिन कांग्रेस के बागी नीलम चंद्राकर ने उनकी मुश्किलें आसान कर दी. चंद्राकर को 72922 वोट मिले. निर्दलीय नीलम को 60605 और कांग्रेस की लक्ष्मीकांता साहू 26483 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहीं.

धमतरी : भाजपा की इकलौती महिला विधायक रंजना साहू इसी सीट से जीती. यहां भाजपा सबसे कम 464 वोटों से जीती थी. 90 सीटों में भी यह सबसे छोटी जीत थी. रंजना को 63198 वोट मिले. तत्कालीन विधायक रहे गुरुमुख सिंह होरा को 62734 वोट मिले और निर्दलीय आनंद पवार 29163 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे.

वैशालीनगर : यहां से भाजपा के विद्यारतन भसीन जीते. कांग्रेस के पूर्व विधायक बदरुद्दीन कुरैशी हारे. भसीन को 72920 और कुरैशी को 54840 वोट मिले. तीसरे नंबर पर 10696 वोटों के साथ जोगी कांग्रेस के मनोज कुमार थे.

राजनांदगांव : 15 साल के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह यहां चुनाव मैदान में थे, इसलिए यह सबसे हाई प्रोफाइल सीट थी. यही वजह है कि यहां सबकी निगाहें थीं. कांग्रेस की भी. रमन के मुकाबले कांग्रेस ने पूर्व पीएम भारत रत्न स्व. अटलबिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को उतारा था. भाजपा से सांसद-विधायक और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जैसी जिम्मेदारियां संभालने के बाद शुक्ला कांग्रेस में शामिल हो गई थीं. यहां कांटे की टक्कर थी, क्योंकि भाजपा के तत्कालीन सीएम की प्रतिष्ठा दांव पर थी और कांग्रेस जीत का रिकॉर्ड बनाने के ताकत लगा रही थी. यहां से लगभग 17 हजार वोटों से रमन सिंह जीते. उन्हें 80589 वोट मिले और करुणा शुक्ला को 63656 वोट मिले थे.

दंतेवाड़ा : यह दक्षिण की इकलौती सीट थी, जहां भाजपा के भीमा मंडावी ने जीत दर्ज की थी. भीमा को 37990 वोट मिले थे और देवती कर्मा को 35818 वोट मिले थे. हालांकि 6 महीने के भीतर ही लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मंडावी की नक्सलियों ने हत्या कर दी. इसके बाद हुए उपचुनाव में देवती कर्मा जीतीं.

हार-जीत पर जानें एक्सपर्ट कमेंट...

पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर डॉ. अजय चंद्राकर के मुताबिक बसपा का तो अपना वोट शेयर है, लेकिन जोगी कांग्रेस के वोट कांग्रेस के ही वोट थे. पूर्व सीएम स्व. अजीत जोगी या उनके साथ गए कांग्रेस के नेताओं ने कांग्रेस के लिए चुनौती पेश की थी. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा को जो 15 सीटें मिलीं, वह जोगी कांग्रेस के कारण ही मिली थीं. जोगी कांग्रेस नहीं होती तो कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिलतीं. कुछ सीटों पर भाजपा और कांग्रेस को अपनों से भी नुकसान हुआ. कांग्रेस का वोट कटना भाजपा के लिए लाभदायक हो गया.

हालांकि 2018 में कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार के लिए जिम्मेदार कुछ और पहलुओं पर भी गौर करना होगा. 15 साल की सरकार की स्थिति में एंटी इन्कमबेंसी स्वाभाविक थी. चुनावी घोषणा पत्र का भी असर चुनाव में दिखा था.

Chhattisgarh Assembly Election 2018 Flashback

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