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छठ महापर्व: जानिए क्यों करते हैं 4 दिवसीय छठ, इससे जुड़ी मान्यताएं और इसके प्रभाव

छठ महापर्व: जानिए क्यों करते हैं 4 दिवसीय छठ, इससे जुड़ी मान्यताएं और इसके प्रभाव
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By NPG News

रायपुर। सूर्य की उपासना का महापर्व है छठ। छठ एक ऐसा महापर्व है जिसे लगातार चार दिनों तक पूरी आस्था और विश्वास के साथ मनाया जाता है। साथ ही छठ पर्व में कठोर नियमों का पालन भी किया जाता है। इसी कड़ी में जानिए छठ से जुड़ी कुछ मान्यताएं और इस व्रत के लाभ।

छठ व्रत के संबंध में ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत के साथ कई मान्यताएं हैं। इन मान्यताओं में से एक है कि इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को बेहद लाभकारी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जिन्हें संतान नहीं हो रहा है उन्हें यह व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है। इसके अलावे जिन्हें संतान है वे भी संतान की लम्बी आयु के लिए इस व्रत को रखते हैं। ज्योतिष के अनुसार जिनकी कुंडली में सूर्य अच्छी स्थिति में नहीं है उन्हें इस व्रत को करने से अत्यधिक लाभ होता है।

छठ पूजा तिथि

छठ पूजा चार दिनों का अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण महापर्व होता है इसका आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है और समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है इस लंबे अंतराल में व्रतधारी पानी भी ग्रहण नहीं करते। बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाकों में छठ पर्व पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है छठ त्योहार के समय बाजारों में जमकर खरीदारी होती है लोग इसके लिए खासकर फल, गन्ना, डाली और सूप आदि जमकर खरीदते हैं

छठ पूजा व्रत आरंभ

नहाय खाय – 28 अक्टूबर 2022

खरना - 29 अक्टूबर 2022

संध्या अर्घ्य- 30 अक्टूबर 2022

सूर्योदय अर्घ्य –31 अक्टूबर 2022

छठ का प्रभाव

छठ व्रत रखने वाले व्रतियों का मानना है कि इस व्रत को रखने से कुष्ठ जैसे असाध्य रोग का समाधान होता है। साथ पाचन तंत्र की समस्या से परेशान लोगों को लाभ मिलता है। मान्यता के अनुसार जिनको भी संतान की ओर से किसी तरह की समस्या है तो यह व्रत उनके लिए लाभदायक होता है। ऐसी मान्यता है कि घर का कोई एक सदस्य भी यह व्रत रखता है। लेकिन पूरे परिवार को छठ पर्व में तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। इसके अलावे स्वच्छता और सात्विकता का ध्यान रखना चाहिए।

भविष्य पुराण में बताया गया है कि इस व्रत के दिन जो भी भक्त सूर्य देव की पूजा करता है और सप्तमी के उदयगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करता है उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं और मृत्यु के बाद सूर्य लोक में वर्षों तक सुख एवं भोग की प्राप्ति होती है।सूर्य को अर्घ्य देने के कुछ नियम हैं। पुण्य लाभ चाहने वालों को इन नियमों का पालन करते हुए अर्घ्य देना चाहिए। भविष्य पुराण कहता है कि जो मनुष्य भगवान सूर्य को पुष्प और फल से युक्त अर्घ्य प्रदान करता है वह सभी लोकों में पूजित होता है। इन्हें मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। यश लाभ मिलता है।

सूर्य देव को अष्टांग अर्घ्य अत्यंत प्रिय है। जो इस प्रकार अर्घ्य देता है उसे हजार वर्ष तक सूर्य लोक में स्थान प्राप्त होता है। अष्टांग अर्घ्य में जल, दूध, कुशा का अग्र भाग, घी, दही, मधु, लाल कनेर फूल तथा लाल चंदन से अर्घ्य द‌िया जाता है।सूर्य को अर्घ्य देने के लिए आम जन मिट्टी के बरतन एवं बांस के डाले का प्रयोग करते हैं। इनसे अर्घ्य देने पर सामान्य अर्घ्य से सौ गुना पुण्य प्राप्त होता है। मिट्टी और बांस से सौ गुणा अधिक फल ताम्र पात्र से अर्घ्य देने पर प्राप्त होता है। ताम्र के स्थान पर कमल एवं पलाश के पत्तों का भी प्रयोग किया जा सकता है।तांबे से लाख गुणा चांदी के पात्र से अर्घ्य देने पर पुण्य मिलता है। इसी प्रकार सोने के बर्तन से अर्घ्य देने पर करोड़ ग़ुणा पुण्य की प्राप्ति होती है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति सूर्य देव को तालपत्र का पंखा समर्पित करता है वह दस हजार वर्ष तक सूर्य लोक में रहने का अधिकारी बन जाता है।

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