OBC करेंगे BJP का बेड़ापार! आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में भाजपा का दांव ओबीसी पर... क्या बदल रहा राजनीतिक गणित
भाजपा ने साहू समाज से अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी है, जबकि नेता प्रतिपक्ष के रूप में धरमलाल कौशिक कुर्मी समाज के नेता हैं।
रायपुर। क्या आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में भाजपा ओबीसी पर दांव खेलना चाहती है? इस सवाल का जवाब तलाशेंगे तो एक और सवाल आता है कि क्या सच में छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है या ओबीसी की संख्या ज्यादा है। यह सवाल ही पहले सवाल का जवाब है। दरअसल, छत्तीसगढ़ को आदिवासी बहुल राज्य कहा जाता है, लेकिन जनसंख्या की दृष्टि से देखा जाए तो यहां 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी ओबीसी है। विधानसभा की जो सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं, वहां भी आदिवासी समाज के साथ-साथ ओबीसी वोटर हैं। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल जब सीएम बने, तब ओबीसी वर्ग का रुझान कांग्रेस की ओर बढ़ा। इसी के काट के तौर पर भाजपा ने कुर्मी नेता के मुकाबले साहू समाज से अरुण साव के रूप में प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी है। कुर्मी समाज से पहले ही धरमलाल कौशिक नेता प्रतिपक्ष हैं। नेता प्रतिपक्ष को बदलने की जो बातें आ रही हैं, उसमें भी तगड़े दावेदार नारायण चंदेल ही हैं। चंदेल कुर्मी समाज के ही नेता हैं। आदिवासी नेता के बजाय ओबीसी अध्यक्ष बनाने को लेकर भाजपा के नेताओं का यह भी तर्क है कि भाजपा ने देश के सर्वोच्च पद पर जनजाति समाज से द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया है, इसलिए ऐसी कोई बात नहीं है कि वे आदिवासियों से दूर हो रहे हैं।
ये बातें इसलिए हो रही हैं, क्योंकि भाजपा ने आदिवासी समाज के नेता विष्णुदेव साय के स्थान पर साहू समाज से अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। साव बिलासपुर के सांसद भी हैं। साहू प्रदेश अध्यक्ष और कुर्मी नेता प्रतिपक्ष के जरिए भाजपा ओबीसी के दो बड़े वर्ग को साधना चाहती है। छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या के 50 प्रतिशत से ज्यादा ओबीसी हैं। इनमें सबसे बड़ा समाज साहू समाज है। समाज से जुड़े पदाधिकारियों का कहना है कि यहां कुल ओबीसी आबादी में से 20 प्रतिशत साहू हैं। आबादी के लिहाज से देखें तो 55 लाख जनसंख्या है। इनमें 35 लाख से ज्यादा वोटर हैं। इनमें भी युवा वोटरों की संख्या 10-12 लाख के आसपास है। विधानसभा की 20 सीटें ऐसी हैं, जहां सीधे साहू हार-जीत तय करते हैं। इनमें राजनांदगांव, बालोद, गुंडरदेही, अभनपुर, राजिम, दुर्ग ग्रामीण, कुरूद, धमतरी जैसी सीटें शामिल हैं। अभनपुर ऐसी सीट है, जहां पिछले 45 साल से साहू समाज से विधायक चुने जाते हैं।
प्रदेश में कुर्मी समाज की बात करें तो 25 लाख के आसपास आबादी है। इनकी जनसंख्या का अनुपात के 8 प्रतिशत से आसपास है। पाटन, बलौदाबाजार, धरसीवां, दुर्ग, भिलाई, बेमेतरा, आरंग और रायपुर ग्रामीण समेत 15 सीटों पर समाज का सीधा दखल है। पाटन ऐसी सीट है, जहां 25-30 सालों से कुर्मी समाज से ही विधायक चुने जाते हैं। भूपेश बघेल पहले पीसीसी अध्यक्ष, फिर सीएम बने, तब कुर्मी समाज का झुकाव कांग्रेस की ओर बढ़ा है। यही वजह है कि भाजपा ने साहू समाज को साधने की पहल की है। इससे पहले ताराचंद साहू भाजपा के अध्यक्ष रह चुके हैं। वे छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भाजपा के पहले अध्यक्ष थे।
अब बाकी समाज की बात करें तो यहां साहू और कुर्मी के बाद कलार, यादव, मरार आदि का प्रभाव है। धीवर, निर्मलकर, सेन आदि भी हैं, लेकिन उनकी संख्या सभी सीटों पर बंटी हुई है। यादव समाज से राकेश यादव प्रदेश मंत्री हैं। मधुसूदन यादव राजनांदगांव के जिलाध्यक्ष हैं। मरार समाज से पूर्व आईएएस ओपी चौधरी प्रदेश मंत्री हैं। लखनलाल देवांगन प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। मोतीलाल साहू भी प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। इसके अलावा श्यामबिहारी जायसवाल किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष हैं। सेन समाज से गौरीशंकर श्रीवास को पार्टी अलग-अलग जिम्मेदारियाें में आगे ला रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रदेश संगठन महामंत्री पवन साय भी ओबीसी हैं।
क्या आदिवासियों से दूर जा रही भाजपा
ओबीसी को महत्व देने की स्थिति में यह सवाल आता है, लेकिन भाजपा के नेताओं का कहना है कि आदिवासी समाज से भाजपा दूर नहीं जा रही है। यहां से रेणुका सिंह जनजातीय विभाग में केंद्रीय राज्यमंत्री हैं। नंदकुमार साय पहले जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। रामविचार नेताम राज्यसभा सांसद, आदिवासी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। अरुण साव की नई टीम बनेगी तो उसमें भी आदिवासियों को महत्व दिया जाएगा। कुछ बड़े पदों पर बस्तर से सरगुजा और जशपुर तक को लोगों को शामिल करने की तैयारी है।
पहले आदिवासी पास थे, फिर दूर हो गए
छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से 29 एसटी और 10 एससी के लिए आरक्षित हैं। 2003 के विधानसभा चुनाव में 75 प्रतिशत आरक्षित सीटें भाजपा ने जीतीं। इसके बाद 2008 में 67 और 2013 में 36 प्रतिशत सीटें जीतीं। 2013 में एससी के लिए आरक्षित 10 में से 9 सीटें भाजपा ने जीती थीं। पहली बार जब भाजपा की सरकार बनी, तब यह माना गया कि बस्तर की आदिवासी सीटों से भाजपा आई, लेकिन चुनाव दर चुनाव आदिवासी भाजपा से दूर हो गए। फिलहाल बस्तर और सरगुजा में भाजपा के पास एक भी सीटें नहीं हैं।