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फेडरेशन के खिलाफ नारे: अनिश्चितकालीन हड़ताल नाटकीय ढंग से खत्म होने पर कर्मचारियों के मन में फेडरेशन के नेताओं के प्रति नाराजगी

34 प्रतिशत डीए और सातवें वेतनमान पर गृह भाड़ा भत्ते के लिए पहली बार 105 संगठन एक मंच पर आए, लेकिन हड़ताल खत्म होने की सूचना राजनीतिक मंच पर, इसलिए असंतोष।

फेडरेशन के खिलाफ नारे: अनिश्चितकालीन हड़ताल नाटकीय ढंग से खत्म होने पर कर्मचारियों के मन में फेडरेशन के नेताओं के प्रति नाराजगी
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By NPG News

रायपुर। छत्तीसगढ़ के करीब पांच लाख कर्मचारी-अधिकारियों के 105 संगठन महंगाई और गृह भाड़ा भत्ते की मांग पर एक मंच पर आए लेकिन अनिश्चितकालीन हड़ताल खत्म होने की घोषणा राजनीतिक मंच पर हुई। बस यही एक ऐसी वजह है, जिसने अलग-अलग जिलों में धरनास्थल पर बैठे कर्मचारियों के मन में गम और गुस्सा भर दिया। कई जिलों में छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन और उनके कर्ता-धर्ताओं के खिलाफ नारेबाजी हुई है। इनमें अलग-अलग संगठन के लोग जो फेडरेशन के साथ आए थे, उनके सदस्य थे। कर्मचारियों के हर सोशल मीडिया ग्रुप में आंदोलन समाप्ति के तरीके पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। हालांकि कर्मचारी नेता अपने स्तर पर अपने साथियों को समझाइश देने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह साफ हो गया है कि आने वाले दिनों में यदि सरकार की ओर से कर्मचारियों के हित में कोई कार्यवाही या गतिविधि दिखाई नहीं देगी तो फेडरेशन पर सवाल खड़े होंगे।

केंद्र सरकार के समान और केंद्र सरकार द्वारा देय तिथि से 34 प्रतिशत महंगाई भत्ते की मांग और सातवें वेतनमान के मुताबिक गृह भाड़ा भत्ते की मांग को लेकर छत्तीसगढ़ के कर्मचारी संगठन एकजुट हो गए। पहले 60-70, फिर 80 और देखते ही देखते आंकड़ा 105 तक पहुंच गया। पहली बार न्यायिक कर्मचारी भी हड़ताल में शामिल होने पहुंचे। यानी शैक्षणिक, कार्यालयीन, न्यायिक सारी व्यवस्था ठप पड़ गई। पहले एक दिन, फिर पांच दिन और 12 दिन तक सारे दफ्तरों में कामकाज नहीं हो सका। 80 प्रतिशत से ज्यादा कर्मचारी इस आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। कुछ शिक्षक संगठन और बाद में लिपिकों का एक संगठन आंदोलन से अलग हो गया। जाहिर है कि सरकारी कामकाज बंद होंगे तो शासन के काम तो प्रभावित होंगे ही, लोगों के काम भी प्रभावित होंगे और दोनों का असर राज्य सरकार पर पड़ना था। असर पड़ा भी। इसलिए सरकार की ओर से आंदोलन को समाप्त करने की कोशिशें शुरू की गईं।

नीति शास्त्र में साम दाम दंड और भेद सारी नीतियां सरकार ने एक-एक कर अपनाई। पहले समझाइश दी गई। डीए में 6 प्रतिशत की वृद्धि की गई। कार्रवाई का डर दिखाया गया। इन सबके बाद भी कर्मचारियों का आंदोलन पूरी मजबूती से डटा रहा, जबकि अनिश्चितकालीन आंदोलन की शुरुआत में ही शिक्षकों का एक बड़ा वर्ग आंदोलन से अलग हो चुका था। गुरुवार को जब जेएन पांडेय स्कूल में बैठक चल रही थी, तब भी सारे कर्मचारी नेताओं का जोर हड़ताल जारी रखने पर था। इससे पहले फेडरेशन की ओर से यह तर्क रखा गया था कि सीएम भूपेश बघेल की अपील को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया जाए। आंदोलन में शामिल कर्मचारी नेता किसी भी स्थिति में झुकने के लिए तैयार नहीं थे। दूसरी ओर सरकार भी झुकने की स्थिति में नहीं थी। दोनों ओर से बीच का रास्ता अपनाने का ही विकल्प था। बीच का रास्ता अपनाने का विकल्प इसलिए क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो आंदोलन के समय के साथ-साथ क्या हासिल होगा, उसकी अनिश्चितता बढ़ती जाती।

कर्मचारी नेताओं का प्रेशर था कि सरकार सारी मांगों को मान ले। हालाकि, ऐसा पहले भी हो चुका है, जब कई आंदोलन बिना किसी निष्कर्ष के खत्म हुए। संख्या के हिसाब से देखें तो कर्मचारी इतनी पर्याप्त संख्या में थे कि सरकार को पहले की तरह सस्पेंशन या ब्रेक इन सर्विस जैसे सारे आदेशों को वापस लेकर कर्मचारियों को सारी सुविधाएं देनी होती। इसके बावजूद फेडरेशन के प्रांतीय संयोजक कमल वर्मा और कोर ग्रुप ने कृषि मंत्री रविंद्र चौबे के साथ बातचीत कर तीन शर्तों, जिनमें दिवाली या राज्य स्थापना दिवस पर 3 प्रतिशत डीए और देने, 6 प्रतिशत का एरियर्स जीपीएफ खाते में जमा करने और गृह भाड़ा भत्ते के लिए समिति गठन करने पर हड़ताल खत्म करने का फैसला लिया।

कर्मचारी नेताओं का कहना है कि यह फेडरेशन की उपलब्धि है कि 105 संगठनों को पहली बार एकजुट किया। इतनी बड़ी संख्या में कर्मचारियों का नेतृत्व करने की स्थिति में दोहरा दबाव रहता है। शासन की ओर से भी आंदोलन को लेकर दबाव रहता है, दूसरा कर्मचारियों के हिताें को लेकर भी नैतिक दबाव होता है। यही वजह है कि ज्यादातर कर्मचारी संगठन धैर्य रखकर परिणाम की प्रतीक्षा करने की सलाह दे रहे हैं। हालांकि कुछ कर्मचारी नेता यह भी चाहते हैं कि तात्कालिक रूप से ऐसे परिणाम या कार्यवाही दिखनी चाहिए जिससे कर्मचारियों के मन में इस बात का संतोष हो कि उनके संघर्ष के फलस्वरूप परिणाम की ओर अग्रसर हो रहे हैं। ऐसा नहीं होने की स्थिति में आने वाले दिनों में अलग-अलग संगठन के स्तर पर आंदोलन दिखाई देंगे। इससे सरकार की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। वैसे भी अभी पांच लाख नियमित कर्मचारियों की हड़ताल खत्म हुई है। इससे ज्यादा संख्या में अनियमित, संविदा और दैनिक भोगी कर्मचारी हैं, जो हड़ताल पर हैं या जाने की तैयारी में हैं।

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