Begin typing your search above and press return to search.

धर्मांतरण के खिलाफ भागवत वचन: RSS प्रमुख बोले- जनजातीय गौरव हमारा मूल, धर्म-संस्कृति और गौरव पक्का रखना है

डॉ. मोहन भागवत ने भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। स्व. दिलीप सिंह जूदेव की प्रतिमा का माल्यार्पण किया।

धर्मांतरण के खिलाफ भागवत वचन: RSS प्रमुख बोले- जनजातीय गौरव हमारा मूल, धर्म-संस्कृति और गौरव पक्का रखना है
X
डॉ. मोहन भागवत
By NPG News

जशपुर। छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण के हॉट स्पॉट कहे जाने वाले जशपुर में आरएसएस के सर संघ चालक डॉ. मोहन भागवत ने बड़ी संख्या में जुटे आदिवासियों से कहा कि वे अपने धर्म, संस्कृति और गौरव के साथ खड़े रहें। भगवान बिरसा मुंडा और स्व. दिलीप सिंह जूदेव के जीवन से भी हमें यही सीख मिलती है। हम जो भी हैं, सारी दुनिया पर भारी हैं। हमारे पास अपना गौरव है। भगवान बिरसा मुंडा और दिलीप सिंह जूदेव जैसे आदर्श हैं। हम जैसे हैं, वैसा जिएंगे और अपना स्थान दुनिया में प्राप्त कर लेंगे। संघ प्रमुख ने धर्मांतरण या ईसाई मिशनरी जैसे किसी शब्द का उपयोग किए बिना लोगों से आग्रह किया कि वे अपने गौरव के साथ बने रहें यानी किसी लालच में आकर धर्मांतरण न करें। आगे पढ़ें, संघ प्रमुख का पूरा भाषण...


''मेरे लिए बड़ा सौभाग्य का अवसर है कि आप लोगों के दर्शन हो जाते हैं। आजकल तो मैं नागपुर में हूं, लेकिन मैं जहां का रहने वाला जहां का हूं, वो वनवासी जिला है, चंद्रपुर। बचपन में तो बहुत ज्यादा शहर और वनवासी, ग्रामीण यह भेद नहीं था। आना-जाना चलता था। इसलिए जब आम लोगों के बीच आता हूं तो मैं अपने घर आया हूं ऐसा लगता है। बचपन के सुमधुर जीवन में फिर लौट आया हूं ऐसा लगता है। संयोग की बात यह है कि आने का जो योग बना, वह विचार करके तय नहीं हुआ, ऐसे ही तय हो गया। आज जनजातीय गौरव दिवस भगवान बिरसा का जन्मदिन है। स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव जी की प्रतिमा का अनावरण दोनों बातें इस संयोग से जुड़ गईं।

स्व. दिलीप सिंह जूदेव की आदमकद प्रतिमा, जिसका अनावरण किया गया।

मैं दिलीप सिंह जूदेव से चार-पांच बार मिला। कार्यक्रमों में रहा। वे वीर प्रकृति के व्यक्ति, निर्भय और संपत्ति-सत्ता सब कुछ रहने के बाद भी विनम्र रहने वाले, जनजातीय समाज के गौरव के लिए सदा खड़े रहने वाले व्यक्ति थे, ऐसा मैंने देखा है। इस काम को वे बड़ा पवित्र मानते थे। जीवन में जो कुछ बने उसका उपयोग किया। ऐसा कुछ नहीं बनते तो भी इसके लिए परिश्रम करते रहते, क्योंकि अपने देश, संस्कृति और देशवासियों के प्रति उनके मन में बहुत प्रेम था। भगवान बिरसा मुंडा को भी इसी प्रेम ने हम सबके लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।

प्रतिमा के अनावरण अवसर पर पूर्व सांसद रणविजय सिंह जूदेव, प्रबल प्रताप जूदेव, संयोगिता युद्धवीर जूदेव आदि मौजूद थे।

जनजातीय गौरव क्या है? अपने पूर्वजों की परंपरा अपना गौरव है, क्योंकि वे बता दिए कि हमको कैसे जीना है। हमको विरासत, वीरता, पवित्रता, आत्मीयता की हम लड़ सकते हैं, ऐसी हिम्मत दे दी। गौरव स्वधर्म है। धर्म के मामले में जनजातीय गौरव भारत का धर्म गौरव है। भारत का धर्म कहां से आया। इतने सारे देवी-देवता के बाद भी सबका व्यवहार एक सा रहता है। परहित सरिस धर्म नहीं भाई। ये धर्म कहां से आया। ये धर्म खेतों और जंगलों से उपजा है। भारत के सभी धर्म भारत को यहां के कृषकों और वनवासियों ने दिए हैं। उस धर्म का गौरव जनजातीय गौरव दोनों का गौरव है, इसलिए भारत का गौरव है।

धर्म के चार पैर में से एक पैर है, तपश्चर्या। आप जिस प्रकार सत्य के पीछे चलते हैं। जनजातीय समाज की प्रसिद्धि है। जनजातीय समाज में झूठ, अप्रमाणिकता नहीं होती। आज भी ग्रामीण इलाके और जंगलों में कोई रास्ता भटक जाए तो जब तक उसे जंगल में मनुष्य या गांव मिलेंगे तो वह भूखा-प्यासा नहीं रहेगा। ये करुणा कहां से आई, किसने दी, इसी जनजातीय समाज ने दी। हमारा धर्म सबमें पवित्रता देखता है, क्योंकि स्वयं का अंत:करण पवित्र है। नदी, नाले, पक्षी सबमें पवित्रता देखता है, इसलिए वह पर्यावरण का मित्र है। पर्यावरण का विकास करता है। अपनी उन्नति के लिए पर्यावरण को खराब नहीं करता। पर्यावरण में देवी-देवता मानने वाले जनजातीय बंधु ने ही सिखाया। जनजातीय धर्म संपूर्ण भारत का गौरव है।


जनजातीय समाज की सुरक्षा, गौरव की वृद्धि के लिए उनके साथ खड़ा होना चाहिए, जैसे दिलीप सिंह जूदेव खड़े रहते थे। उनके जीवन से यह संदेश लेना है। एक बार इस गौरव को समझ गए तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। गौरव को समझें। हमारे पास ये गौरव है, उसकी सारी दुनिया को जरूरत है। भारत वर्ष को ये गौरव को धारण कर खड़ा होना है। हम अपने संस्कारों को, रीति-रिवाजों, देवी देवता, पूर्वज उनके पराक्रम को न भूलें। भूल जाएंगे तो बड़े-बड़े पराक्रमी निठल्ले हो जाते हैं।

सीताजी को खोजने के लिए वानर वीर दक्षिण में गए थे। हनुमान जी, जामवंत, अंगद, नल नील, एक से बढ़कर एक वीर थे, लेकिन समुद्र तक सीताजी नहीं मिली। समुद्र में आगे क्या है, कौन देखेगा। वापस भी नहीं जा सकते तो तय किया कि यहीं बैठेंगे। अनशन करेंगे। राम नाम लेते मर जाएंगे। राम का जप करने लगे। संपाती नाम के गिद्ध थे। उनके पंख जल गए थे। संपाती और उनके छोटे भाई जटायु ने सोचा कि सूरज तक जाएंगे उड़ते-उड़ते। दोनों सूरज की तरफ गए। जैसे ही पास गए जलने लगे। संपाती ने छोटे भाई जटायु को बचाने के लिए आगोश में ले लिया। संपाती के पंख जलने लगे तो वे गिरने लगे। जटायु के पंख सही-सलामत थे तो उड़ गए, लेकिन संपाती संपाती सागर किनारे दक्षिण में गिर गया। उन्होंने देखा कि यहां कुछ वानर बैठे हैं। खा कुछ नहीं रहे हैं। मरेंगे तो उनको खाऊंगा तो भूख शांत होगी। मरने की राह देखने गए।

पास गए तो राम कथा सुनी। उसमें जटायु का नाम सुना। आप जटायु का नाम क्यों ले रहे हैं, वह तो मेरा भाई है। वानरों ने समाचार सुनाया कि सीता को बचाते समय रावण से युद्ध करते-करते शहीद हो गए। संपाती ने छोटे भाई का श्राद्ध किया। वानरों से कहा कि आपने मेरे भाई की खबर दी। मैं श्राद्ध कर सका। अब आप लोग बताइए कि मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं। उड़ नहीं सकता, लेकिन मेरी नजर कहीं भी जा सकती है। बड़ी तेज नजर है। जामवंत जी ने बताया कि सीताजी को खोजने के लिए निकले। रावण नाम का राक्षस इसी दिशा में गया है। संपाती ने अपनी नजर से समुद्र के पार देखकर लंका की खबर दी। सीताजी की खबर पाकर सभी वानर खुश हो गए। अब समस्या थी कि लंका कौन जाएगा।

पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, भाजपा अध्यक्ष अरुण साव, पूर्व विधानसभा स्पीकर धरमलाल कौशिक, बृजमोहन अग्रवाल, भूपेंद्र सवन्नी सहित बड़ी संख्या में भाजपा नेता भी शामिल हुए।

अंगद जी ने कहा कि वे खुद जाएंगे, लेकिन जामवंत ने उन्हें मना कर दिया। राजा को आगे नहीं किया जाता। जामवंत ने कहा कि मैं जा सकता था लेकिन बूढ़ा हो गया हूं। नल ने कहा कि जा सकता हूं, लेकिन वापस नहीं आ सकता। नील ने कहा कि उन्हें हॉल्ट चाहिए। इस बीच हनुमान जी सिर नीचे कर बैठे थे। जामवंत जी ने कहा कि राम का काम है, तुम क्यों बैठे हो। हनुमान जी बोले, आप सीनियर लोग हैं, आप नहीं कर सकते तो मैं कैसे कर सकता हुं। जामवंत को लगा कि इसने अपने गौरव को भुला दिया है। जामवंत जी ने कथा सुनाई कि वे कैसे बचपन में ताकतवर थे। सूर्य को देखा तो फल समझकर खाने चले गए थे। सूर्य को पकड़कर निगलने लगे। देवों की सेनाएं आईं। सबसे युद्ध किया और हराया। इसके बाद इंद्र आए और वज्र चलाया तो मूर्छित हो गए। बेटे को मूर्छित देखकर वायु देव गुस्सा हो गए। उन्होंने चलना बंद कर दिया तो सबकी हवा बंद हो गई। वायु देव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी को होश में लाया गया। सब देवों ने अपनी अपनी ताकत दी। इस ताकत के कारण जब उत्पात मचाने लगे तो संतों ने कहा कि जब तक राम का काम नहीं आता तुम भूल जाओ। हनुमान जी को अपना परिचय याद आया। एक ही छलांग में आसमान में उड़ने लगे रास्ते की अड़चनों मैनाक, सुरसा को पार कर लंका में पहुंच गए। वहां सीताजी से मिले। रावण के बेटे का मार दिया। लंका का दहन कर दिया और राक्षकों और रावण के मन में धाक बैठाकर लौटे।

हमारा भी गौरव है। जनजातीय गौरव हमारे गौरव का मूल है। जनजातीय जीवन पद्धति हमारी भारतीय जीवन पद्धति का मूल है। जनजातीय सारे रीति रिवाज हमारे अनेक रीति रिवाजों का मूल है। भारत वर्ष मूल कृषि और वनों में है। वहां से उपजी हुई यह संस्कृति है। उस संस्कृति की दुनिया को आवश्यकता है। यह भगवान का काम है। भगवान का काम उपस्थित हुआ है। हमको जागना है। अपने गौरव का रक्षण करना है। उस गौरव पर पक्का रहना है। अपने देश धर्म संस्कृति और समाज का गौरव पक्का रखना है, रहना है। मूल है, उससे कटना नहीं है। हमको हमारे भोलेपन का लाभ लेकर ठगने वाले दुनिया में भले ही होंगे, लेकिन हम मजबूत हैं तो क्या बात है।

हम जो भी हैं सारी दुनिया पर भारी हैं। हमारे पास अपना गौरव है। दिलीप सिंह जैसी निर्भयता हमारे पास है। दिलीप सिंह और बिरसा मुंडा जैसे आदर्श हैं। हम जैसे हैं, वैसा जिएंगे और अपना स्थान दुनिया में प्राप्त कर लेंगे। यह संयोग भाषण आपके लिए नहीं मेरे लिए भी है। इतनी बड़ी संख्या में पारंपरिक वेशभूषा में पारंपरिक वेषभूखा में देखा। सारी बातें मेरे मन में आई। जो निष्कर्ष मुझे मिला। आपके चिंतन के लिए आपके सामने रख दिया है। आप के विचार के अनुसार अपने लोगों के साथ अपने धर्म संस्कृति समाज और देश के लिए स्वाभिमानी निर्भय होकर चलते रहें।''

Next Story