Chhattisgarh Assembly Election 2023 जोगी अब किसके साथ : अमित जोगी की चिट्ठी के बाद कार्यकर्ता असमंजस में, आप से नहीं बनी बात तो केसीआर से आस
अमित जोगी कई क्षेत्रीय दलों के प्रमुखों से मिल चुके हैं. वे सभी दलों को एक मंच पर लाना चाहते हैं. दूसरी ओर कांग्रेस भी क्षेत्रीय दलों को एक करने में जुटी हुई है.
Chhattisgarh Assembly Election 2023
रायपुर. छत्तीसगढ़ की राजनीति में बड़ी धमक दिखाने वाली पार्टी जोगी कांग्रेस गठबंधन या विलय के लिए साथी की तलाश में है. ऐसे समय में प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी की चिट्ठी ने कार्यकर्ताओं के मन में असमंजस की स्थिति खड़ी कर दी है. फिलहाल जोगी परिवार से जुड़े पुराने वफादार कार्यकर्ता भी अब अपने भविष्य को लेकर सशंकित हैं, क्योंकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस, भाजपा या बसपा के अलावा किसी दूसरे दल की यहां मौजूदगी नहीं है. आम आदमी पार्टी की दो राज्यों में सरकार के अलावा कई राज्यों में अब संगठन है, लेकिन वहां भी चर्चा किसी नतीजे पर नहीं पहुंचने के संकेत मिल रहे हैं.
प्रदेश की राजनीति में 2018 का चुनाव बड़ा टर्निंग पॉइंट था, क्योंकि 15 साल की सरकार के खिलाफ बड़ी एंटी इन्कमबेंसी का माहौल बन चुका था. दूसरी ओर कांग्रेस का ही एक गुट पूर्व सीएम अजीत जोगी के साथ अलग हो रहा था. छत्तीसगढ़ के पहले सीएम जोगी के साथ बड़ी संख्या में कांग्रेस के कार्यकर्ता जुटे. बड़े चेहरे भी जुड़े. इन चेहरों के बूते जोगी कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में अपनी बड़ी मौजूदगी भी दिखाई. कांग्रेस या भाजपा के अलावा पहली बार किसी दूसरे दल ने पांच सीटें जीती थीं. वर्तमान स्थिति देखें तो पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रेणु जोगी के अलावा पार्टी के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है. विधायक धर्मजीत सिंह और प्रमोद शर्मा अपने लिए दूसरा ठिकाना तलाश रहे हैं या समय का इंतजार कर रहे हैं.
ऐसे समय में अमित जोगी, जो कि अभी जोगी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका निभा रहे हैं, ने एक चिट्ठी सोशल मीडिया में पोस्ट कर जोगी कांग्रेस के भविष्य को लेकर नई बहस छेड़ दी है. जोगी परिवार को जानने-समझने वालों का कहना है कि अमित जोगी ने अपनी चिट्ठी में यह स्पष्ट कर दिया है कि कार्यकर्ताओं से पहले वे अपने राजनीतिक भविष्य के लिए चिंतित हैं. वे खुद अपने लिए जमीन तलाश रहे हैं, जिससे कि एक सुरक्षित या मजबूत हाथ थामकर भविष्य के लिए बेहतर विकल्प तैयार कर सकें. पूर्व सीएम जोगी जब जीवित थे, तब भी अमित क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश में जुटे रहते थे. वे बसपा सुप्रीमो मायावती, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, रामदास अठावले, शरद पवार आदि से मिलते-जुलते रहते थे. हालांकि पुख्ता तौर पर किसी के साथ बात नहीं बनी. अब चूंकि चुनाव का समय आ चुका है, इसलिए वे जोगी कांग्रेस के साथ गठबंधन या विलय की कोशिश में जुटे हुए हैं.
रेणु जोगी कांग्रेस में जाने के पक्ष में
डॉ. रेणु जोगी कांग्रेस जाने के पक्ष में हैं. विधानसभा सत्र के दौरान भी वे कई बार अपनी इच्छा जाहिर कर चुकी हैं. इसके अलावा यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के जरिए भी कांग्रेस वापसी की कोशिश कर चुकी हैं. वहीं, जोगी कांग्रेस का बड़ा चेहरा रहे धर्मजीत सिंह भाजपा के पक्ष में थे. मरवाही उपचुनाव के दौरान जब देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा ने कांग्रेस का पक्ष लिया था, तब यह चर्चा थी कि धर्मजीत सिंह भाजपा में आ सकते हैं. हालांकि दलबदल करने की स्थिति में सदस्यता चली जाती. जानकार यहां तक बताते हैं कि धर्मजीत सिंह की भाजपा में बात हो चुकी है और चुनाव से पहले उनका प्रवेश तय है. वैसे विधानसभा स्पीकर डॉ. चरणदास महंत के करीबी होने के नाते वे कांग्रेस के लिए भी कोशिश कर रहे हैं.
चुनावी संसाधन जुटाने की बड़ी चुनौती
पूर्व सीएम जोगी के रहते जोगी कांग्रेस के पास चुनावी संसाधन जैसी कोई चुनौती नहीं थी, लेकिन वर्तमान स्थिति में सबसे बड़ा संकट संसाधन, खासकर वित्तीय संसाधन का है. पार्टी की गतिविधियां चलाने के लिए बड़े फंड की जरूरत पड़ती है, जबकि जोगी कांग्रेस की मीटिंग्स में यह बात बनी रहती थी कि फंड कहां से आएगा? यही वजह है कि इन पांच सालों में जोगी कांग्रेस ने सीमित संसाधनों में ही अपनी गतिविधियां चलाई. कुछेक मौकों को छोड़ दें तो जोगी कांग्रेस की मैदानी गतिविधि नहीं के बराबर रही. गठबंधन या नए दल की तलाश के पीछे कारण भी यही है कि बिना इसके चुनाव में हिस्सेदारी कर पाना आसान नहीं होगा.
बाहरी दल का साथ किस काम आएगा?
छत्तीसगढ़ में 2003 के बाद अब तक हुए चार चुनावों पर गौर करें तो हर चुनाव में सपा, बसपा, शिवसेना, राकांपा, जेडीयू, एनसीपी, सीपीआई जैसे दलों के प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरते हैं, लेकिन परफॉर्मेंस की बात करें तो अधिकांश दलों के प्रत्याशी जमानत भी नहीं बचा पाते. गैर हिंदी भाषी खासकर तेलंगाना या आंध्रप्रदेश से जुड़े दल छत्तीसगढ़ में कोई रुचि नहीं दिखाते, क्योंकि वे भी जानते हैं कि उन्हें यहां कोई लाभ मिलने वाला नहीं है. जोगी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के मन में भी यही सवाल है कि केसीआर की पार्टी से गठबंधन करने से यहां क्या लाभ मिलेगा? कार्यकर्ताओं का भविष्य क्या रहेगा?