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अंतागढ़ बने जिला मुख्यालय: ब्रिटिश शासन में रायपुर जिले में बस्तर और अंतागढ़ ही दो तहसीलें, गांव जिले बन गए पर मांग अधूरी...

अंतागढ़ बने जिला मुख्यालय: ब्रिटिश शासन में रायपुर जिले में बस्तर और अंतागढ़ ही दो तहसीलें, गांव जिले बन गए पर मांग अधूरी...
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By NPG News

अंतागढ़/रायपुर। भानुप्रतापपुर उपचुनाव के ऐलान के साथ ही अलग जिले की मांग फिर जोर पकड़ रही है। अंतागढ़ के लोगों का कहना है कि जैसे खैरागढ़ उपचुनाव के दौरान जिला बनाया गया था, उसी तरह भानुप्रतापपुर उपचुनाव के दौरान नए जिले का ऐलान होता है तो अंतागढ़ को जिला मुख्यालय बनाया जाए। अंतागढ़ के लोगों की शर्त है कि भानुप्रतापपुर को जिला बनाने पर वे शामिल नहीं होंगे और अंतागढ़ को अलग जिला बनाने के लिए आंदोलन शुरू करेंगे।


ब्रिटिश शासन में रायपुर जिले की तहसील

भारत की आजादी से पहले 1910 में ही अंतागढ़ को तहसील का दर्जा था। रियासत काल में अंतागढ़ का विशेष महत्व रहा है। रायपुर जिले में अंतागढ़ और बस्तर दो ही तहसीलें थीं। लोगों के मुताबिक तब नारायणपुर एक गांव था, जो अंतागढ़ तहसील के अंतर्गत आता था। एक-एक कर बस्तर, कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जिला बन गए, लेकिन अंतागढ़ को जिला बनने का मौका नहीं मिला। पिछले 15-20 साल से अंतागढ़ के लोग जिला बनाने की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।

अंतागढ़ जिला बनाने के लिए कई चरणों में आंदोलन हो चुके हैं। एक महीने तक जन आंदोलन चला। इस बीच अंतागढ़ में एडिशनल कलेक्टर और एडिशनल एसपी की पोस्टिंग तो की गई, लेकिन अब तक उनके लिए दफ्तर तो दूर स्टाफ की व्यवस्था नहीं की गई है।


जिला मुख्यालय इसलिए बना सकते हैं

लोगों के मुताबिक अंतागढ़ भौगोलिक रूप से मध्य में स्थित है। यहां से कोयलीबेड़ा 30 किलोमीटर, आमाबेड़ा 30 किलोमीटर, रावघाट 30 किलोमीटर, भानुप्रतापपुर 30 किलोमीटर और दुर्गकोंदल व पखांजूर 40-60 किलोमीटर पर हैं। कोयलीबेड़ा और रावघाट पिछड़ा आदिवासी क्षेत्र है तो आमाबेड़ा पहाड़ी पिछड़ा आदिवासी क्षेत्र है। भानुप्रतापपुर, दुर्गकोंदल और पखांजूर मैदानी क्षेत्र है। इन परिस्थितियों को देखते हुए अंतागढ़ को जिला मुख्यालय बनाया जा सकता है। लोगों के मुताबिक दुर्गकोंदल और पखांजूर के लोगों का भी समर्थन है।


अंतागढ़ सर्वाधिक राजस्व वाला क्षेत्र भी है। यहां रावघाट परियोजना, आमाबेड़ा (बाक्साइट) और मेताबोदली व गोदावरी में निजी लौह अयस्क खदानें हैं।

1906 में अस्पताल और 1913 में थाना

लोगों का एक तर्क यह भी है कि अंतागढ़ किस तरह महत्वपूर्ण था, यह इस बात से ही पता चल जाता है कि यहां 1906 में अस्पताल और 1913 में थाना बन गया था। इसके अलावा तहसील का दर्जा तो था ही। यहां आज भी ऐसे परिवार रहते हैं, जो भारत पाकिस्तान विभाजन के समय से विस्थापित होकर पहुंचे थे।

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