45 करोड़ का 'समाज कल्याण' : निशक्तों के लिए ट्रायसिकल सप्लाई करने चुनी मलहम पट्टी बनाने वाली कंपनी, हाईकोर्ट की अफसरों पर सख्त टिप्पणी
45 करोड़ में 10 हजार साइकिल सप्लाई करने की थी तैयारी लेकिन हाईकोर्ट ने सप्लाई पर ही स्टे लगा दिया था.
NPG News @ रायपुर. समाज कल्याण विभाग ने नियम-शर्तों को दरकिनार कर मलहम पट्टी बनाने वाली कंपनी को 45 करोड़ रुपए का टेंडर देने की तैयारी कर ली थी. इस कंपनी को 10 हजार ट्राइसिकल बांटने का काम दिया जाना था. कंपनी को सप्लाई का ऑर्डर भी जारी होता, लेकिन मामला हाईकोर्ट चला गया. हाईकोर्ट ने पहले सप्लाई ऑर्डर पर रोक लगाई. इसके बाद टेंडर ही रद्द करने का आदेश दे दिया है. हाईकोर्ट ने विभाग के अधिकारियों की भूमिका पर सख्त टिप्पणी की है. अधिकारियों पर भेदभाव बरतने की बात कही है और इस कृत्य को कानून द्वारा अरक्षणीय बताया है. ऐसे समय में जब राज्य में कुछ महीनों बाद चुनाव होने हैं, तब अधिकारियों की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं. 10 हजार निशक्तजन के लिए बनाई गई योजना में कमीशनखोरी के लिए जान-बूझकर टेंडर में कंपनी को लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई है. हालांकि अधिकारियों का तर्क है कि सप्लाई नहीं, बल्कि रेट में एकरूपता लाने के लिए टेंडर की प्रक्रिया की गई, जिससे जिलों में अलग अलग रेट पर खरीदी न हो. हालांकि, सवाल बरकरार है कि ऐसी कंपनी का रेट क्यों फाइनल किया गया, जो शर्तों का पालन ही नहीं करता?
जो नियम शर्तें थीं, उसका पालन नहीं
समाज कल्याण विभाग ने पिछले साल 24 जून को 10 हजार ट्राइसिकल सप्लाई के लिए टेंडर जारी किया गया था. 25 अगस्त को ऑनलाइन बिड के लिए तिथि तय की गई थी. टेंडर में जो शर्तें निर्धारित थी, उनमें वार्षिक टर्नओवर एक करोड़ रुपए निर्धारित किया गया था. इसके लिए तीन साल का सीए द्वारा प्रमाणित बैलेंस शीट दिखाना था. RFE के तीन साल पूर्व कंपनी का पंजीयन होना था. सरकारी विभाग में तीन साल सप्लाई का अनुभव अनिवार्य किया गया था. यही नहीं कंपनी का राज्य में सर्विस सेंटर भी होना चाहिए था. टेंडर में तीन फर्मों ने हिस्सा लिया. इनमें Kaviraa Solutions, GHM Works Pvt Ltd और JP Drags शामिल थे.
टेंडर देने इस तरह किया गया पक्षपात
समाज कल्याण संचालनालय के जिन अधिकारियों पर टेंडर की प्रक्रिया पूरी करने की जिम्मेदारी थी, उन्होंने Kaviraa Solution को टेंडर जारी कर दिया, जबकि टर्नओवर, सरकारी विभाग में सप्लाई, तीन साल के ऑडिट रिपोर्ट जैसी शर्तों का पालन नहीं किया गया. चौंकाने वाली बात यह है कि Kaviraa Solutions ट्राइसिकल बनाने वाली कंपनी नहीं, बल्कि मलहम पट्टी (सर्जिकल आइटम) बनाने वाली कंपनी है. जीएसटी सर्टिफिकेट के आधार पर यह खुलासा हो गया. कंपनी मोटराइज्ड ट्राइसिकल बनाने वाली कंपनी नहीं है. इसके बावजूद अधिकारियों ने जान-बूझकर नियमों में हेरफेर कर ऐसी कंपनी को टेंडर जारी कर दिया. इसे आधार बनाकर J.P. Drags कंपनी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इसकी सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने नए सिरे से टेंडर करने का आदेश दिया है.
सप्लाई नहीं, इंपेनलमेंट के लिए टेंडर
इस मुद्दे पर जब समाज कल्याण विभाग के जॉइंट डायरेक्टर पंकज वर्मा से बात की गई तो उनका कहना था कि टेंडर सप्लाई के लिए नहीं, बल्कि इंपेनलमेंट के लिए था. अलग अलग जिलों में अलग अलग रेट में खरीदी की जाती थी. कहीं, 50, कहीं 60 तो कहीं 70 से 90 हजार रुपए तक में एक ट्राइसिकल की खरीदी होती थी. कई बार विधानसभा में यह मुद्दा आया था. रेट में एकरूपता लाने के लिए यह टेंडर जारी किया गया था, जिससे कि सभी जिलों में एक समान रेट पर खरीदी हो सके. जॉइंट डायरेक्टर वर्मा ने बताया कि इस मामले में एडिशनल एडवोकेट जनरल ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का ओपिनियन दिया है. विभाग से जो भी निर्णय लिया जाएगा, उस पर कार्यवाही की जाएगी.