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बीजेपी के अष्टावक्र

बीजेपी के अष्टावक्र
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By NPG News

संजय के. दीक्षित

तरकश, 5 जून 2022

राजधानी रायपुर में हुई बीजेपी कार्यसमिति की बैठक में एक ऐसा प्रसंग आया, जब माहौल थोड़ा तल्ख हो गया। दरअसल, बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव पेश करने के बाद नेताओं से सुझाव मांगा गया। इस दौरान पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने कहा कि सरकार के प्रति भाषा काफी नरम है, और कड़ी होनी चाहिए थी। इस पर शिवरतन शर्मा ने कहा, आपसे बेहतर कौन कर सकता है....आप ही ठीक कर दीजिए। चंद्राकर का चेहरा थोड़ा लाल हुआ...बोले, राजा जनक की सभा में एक से बढ़कर एक लोग बैठे हैं, मैं कौन होता हूं। चंद्राकर की बात पर राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश मुस्कुराए...बोले, राजा जनक की सभा में अष्टावक्र भी होते थे...आप अष्टावक्र हैं। चंद्राकर बोले, मैं नहीं...आपके बगल में अष्टावक्र बैठे हैं...नेता प्रतिपक्षजी...काफी विद्वान हैं। चंद्राकर की तल्खी पर धरमलाल कौशिक थोड़ा असहज हुए। फिर बोले, आप कह रहे हो तो हां...मैं मान लेता हूं...मैं अष्टावक्र हूं। बात बिगड़ती देख शिवप्रकाश ने यह कहते हुए स्थिति संभाली कि आप सभी विद्वान लोग हैं, चलिये आगे की चर्चा शुरू की जाए। इस प्रसंग की बीजेपी के गलियारों में काफी चर्चा रही। वजह यह कि राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश और प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी जैसी नेताओं की मौजूदगी में जो हुआ।

कौन थे अष्टावक?

अष्टावक्र कहोड़ ऋषि के पुत्र थे। धर्मग्रंथों में लिखा है...उद्दालक ऋषि अपने शिष्य कहोड़ की प्रतिभा से प्रभावित होकर अपनी पुत्री सुजाता का विवाह कहोड़ से कर दिया। सुजाता के गर्भ ठहरने के बाद ऋषि कहोड़ सुजाता को प्रतिदिन वेदपाठ सुनाते थे। तभी सुजाता के गर्भ से बालक बोला- 'पिताजी! आप गलत पाठ कर रहे हैं। इस पर कहोड़ को क्रोध आ गया, बोले...तू अभी से अपने पिता को अपमानित कर रहा है। उन्होंने शाप दिया...तू आठ स्थानों से टेढ़ा होकर पैदा होगा। कुछ साल बाद कहोड़ ऋषि राजा जनक के दरबार में एक महान विद्वान बंदी से शास्त्रार्थ में हारने के करीब पहुंच गए। यह बात 12 बरस के अष्टावक्र तक पहुंची। वह दौड़ते-भागते जनक की सभा में पहुंचे और अपनी विद्वता से सभी को कायल कर दिया। राजा जनक खुद बालक अष्टावक्र के ज्ञान से प्रभावित होकर उन्हें अपना गुरू बना लिया।

सिंगल आर्डर

गरियाबंद कलेक्टर नम्रता गांधी को सरकार ने हटा दिया। फिलहाल उन्हें मंत्रालय में पोस्टिंग दी गई है। सुना है, व्यक्तिगत कारणों से वे अवकाश पर जा रही हैं। मगर खुद ब्यूरोक्रेसी के लोगों का मानना है, सिर्फ यही एक वजह नहीं हो सकती। नम्रता को हटाने की चर्चा दो महीने पहले भी चली थी। एक तो वहां पोस्ट करते समय जीएडी को यह ध्यान नहीं रहा कि गरियाबंद उनका ससुराल जिला है। राजिम में उनकी शादी हुई है। गृह जिला में वैसे भी पोस्टिंग होती नहीं। इसके अलावा दूसरी वजह....वे सुनती थोड़ी कम हैं। आज के दौर में कहें तो प्रैक्टिकल नहीं हैं। ऐसे में, गरियाबंद इलाके के सत्ताधारी पार्टी के नेता उनसे कैसे खुश रहते।

छप्पड़ फाड़ के

सीनियरिटी में पहले नम्बर के आईपीएस संजय पिल्ले भले ही डीजीपी नहीं बन पाए। लेकिन, इसके लिए वे किस्मत को दोष नहीं दे सकते। डीजी पुलिस को छोड़ दें तो उनसे ऐसी कोई पोस्टिंग नहीं छूटी, जो एक आईपीएस अधिकारी की हसरत होती है। और अब तो उपर वाले ने उन्हें ऐसा छप्पड़ फाड़कर दिया कि पूछिए मत! उनका बेटा अक्षय आईएएस बन गया है। सवाल है, आखिर कितने आईएएस, आईपीएस का बेटा आईएएस बनता है। संजय की किस्मत से लोगों को ईर्ष्या हो सकती है। इसलिए कि, बच्चे अगर काबिल नहीं हुए तो सारा धन-दौलत बेकार है। पिल्ले का अगले साल जुलाई में रिटायरमेंट हैं और उनकी पत्नी रेणु का 2028 में। यानी संजय को खुद के रिटायरमेंट के पांच साल बाद तक गाड़ी, बंगला की सुविधा बरकरार रहती। अब तो उनका बेटा भी आईएएस...। याने संजय पिल्ले को अब परमानेंट सरकारी सुविधाओं का लाभ मिलता रहेगा।

देश में रिकार्ड

संजय पिल्ले के परिवार में एक रिकार्ड बना है...वह है लगातार तीसरी पीढ़ी में आईएएस बनने का। 91 बैच की आईएएस रेणु पिल्ले के पिता केआरके गुनेला आंध्र कैडर के 63 बैच के आईएएस थे। और गुनेला के नाती अक्षय बनेंगे आईएएस। आईएएस का बेटा या बेटी आईएएस, बहुत कम ही होते हैं। प्रदेश में एकाध ही ऐसा होता होगा। छत्तीसगढ़ में एसीएस टू सीएम सुब्रत साहू के पिता उड़ीसा के चीफ सिकरेट्री रहे। कार्तिकेय गोयल के पिता भी आईएएस रहे हैं और अभी तेलांगना के मुख्यमंत्री के एडवाइजर की भूमिका निभा रहे हैं। मगर तीसरी पीढ़ी में आईएएस...देश में शायद यह पहली बार हुआ होगा।

डेपुटेशन की चर्चा

2006 बैच के आईएएस अंकित आनंद को मुख्यमंत्री सचिवालय का अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया है। याने सिकरेट्री पावर के साथ ही बिजली कंपनियों के चेयरमैन वे बने रहेंगे। विभागीय जिम्मेदारी की दृष्टि से देखें तो अंकित काफी वजनदार हो गए हैं। इससे पहले उर्जा सिकरेट्री और बिजली कंपनियों के चेयरमैन के साथ ही सिकरेट्री टू सीएम का दायित्व किसी के पास नहीं रहा। अजय सिंह बिजली बोर्ड के चेयरमैन के साथ सिकरेट्री पावर थे मगर सीएम सचिवालय में नहीं। बैजेंद्र कुमार सिकरेट्री पावर के साथ एसीएस टू सीएम थे मगर बिजली कंपनियों के चेयरमैन नहीं...शिवराज सिंह तब चेयरमैन थे। अंकित के पास ये तीनों अहम जिम्मेदारी हांगी। बहरहाल, इसमें खबर यह है कि अंकित की पोस्टिंग के साथ ही ब्यूरोक्रेसी में सीएम सचिवालय के किसी अफसर के डेपुटेशन पर जाने की अटकलें शुरू हो गई है। वह इसलिए कि इससे पहले सीएम सचिवालय में कभी पांच सिकरेट्री रहे नहीं। अभी सुब्रत साहू, सिद्धार्थ परदेशी, डीडी सिंह, एस भारतीदासन के बाद अब अंकित।

छत्तीसगढ़ का दबदबा?

चंद्रशेखर गंगराड़े के रिटायरमेंट के बाद दिनेश शर्मा ने विधानसभा सचिव का पदभार संभाल लिया है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद 22 साल में यह पहला मौका होगा, जब कोई छत्तीसगढ़ियां अफसर इस पद पर बैठा है। वरना, अभी तक होता वही था, जो भोपाली अधिकारी चाहते थे। बैक डोर नियुक्ति हो या प्रमोशन, लोकल अधिकारियों, कर्मचारियों की कोई सुनवाई नहीं थी। राजनैतिक प्रभाव के कारण नियम विरुद्ध नियुक्ति, पदोन्नति एवं व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों में बार-बार संशोधन कर उन्हें गैर वाजिब लाभ पहुंचाया गया। अब दिनेश शर्मा के विस सचिव बनने पर विस अधिकारियों, कर्मचारियों को अब ठीक-ठाक होने की उम्मीद जगी है।

आखिरी बात हौले से

राज्य सभा प्रत्याशियों को विधायकों से परिचय कराने सीएम हाउस में बैठक हुई। इसमें एक भी विधायक के चेहरे पर खुशी का भाव नहीं था...सबके चेहरे उतरे हुए। उधर, राजीव शुक्ला और रंजीत रंजन भी हैरान...स्तब्ध। बताते हैं, वे इसलिए आवाक थे कि उन्होंने अपने राज्य यूपी, बिहार में 30 साल में कांग्रेस की इतनी संख्या में कभी विधायक नहीं देखें।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या रायपुर के किसी प्रभावशाली नेता का कद कटिंग करने सियासी झटका मिल सकता है?

2. किस मंत्री ने अपना कमीशन बढ़ाकर 35 फीसदी कर दिया है?

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