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Bilaspur News: नगरीय निकाय चुनाव: 39 साल के इतिहास में ऐसा सियासी चमत्कार पहली बार हुआ, अब इस चमत्कार की कल्पना करना ही बेमानी

Bilaspur News: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर नगर निगम चुनाव के दौरान कई दिलचस्प वाकया तो आते ही रहता है, वर्ष 2019 में हुए नगरीय चुनाव में सियासी चमत्कार हो गया। 39 साल के चुनावी इतिहास में यह पहली बार हुआ जब महापौर और सभापति निर्विरोध चुने गए। ना चुनाव और ना ही चुनावी जोर-आजमाइश। विधानसभा चुनाव में एक हार ने नगरीय निकाय चुनाव का सियासी परिदृश्य ही बदल कर रख दिया था। सियासी चमत्कार के बीच रामशरण यादव महापौर की कुर्सी पर बिना किसी चुनौती के काबिज हो गए। मेयर ही नहीं सभापति की कुर्सी भी शेख नजरुद्दीन को उसी अंदाज में मिल गई।

Bilaspur News: नगरीय निकाय चुनाव: 39 साल के इतिहास में ऐसा सियासी चमत्कार पहली बार हुआ, अब इस चमत्कार की कल्पना करना ही बेमानी
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur News: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर नगर निगम चुनाव के दौरान कई दिलचस्प वाकया तो आते ही रहता है, वर्ष 2019 में हुए नगरीय चुनाव में सियासी चमत्कार हो गया। 39 साल के चुनावी इतिहास में यह पहली बार हुआ जब महापौर और सभापति निर्विरोध चुने गए। ना चुनाव और ना ही चुनावी जोर-आजमाइश। विधानसभा चुनाव में एक हार ने नगरीय निकाय चुनाव का सियासी परिदृश्य ही बदल कर रख दिया था। सियासी चमत्कार के बीच रामशरण यादव महापौर की कुर्सी पर बिना किसी चुनौती के काबिज हो गए। मेयर ही नहीं सभापति की कुर्सी भी शेख नजरुद्दीन को उसी अंदाज में मिल गई।

नगर निगम के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो 39 साल पहले जो चमत्कार हुआ था उसका अंदाजा ना तो सत्ताधारी दल और ना ही विपक्षी दल के रणनीतिकारों और मेयर का चुनाव लड़ने के लिए भाग्य आजमाने वाले दावेदारों ने ही सोचा था। 70 सीटों वाले नगर निगम में तब भाजपा के 32 पार्षद चुनाव जीतकर आए थे। 38 पार्षद कांग्रेस के थे। संख्याबल पर नजर डालें तो मामूली अंतर। यह अंतर मामूली इसलिए भी कि बीते 15 वर्षों से भाजपा सत्ता में काबिज रही है। नगर विधायक भी लगातार जीत दर्ज करते आ रहे थे। 2018 के विधानसभा चुनाव में राज्य की सत्ता के साथ ही बिलासपुर विधानसभा सीट से भाजपा बाहर हो गई। लंबे राजनीतिक पारी और लगातार सत्ता में बने रहने के बाद भी ऐसा क्या हुआ था कि भाजपा ने महापौर और सभापति दोनों चुनाव में राजनीतिक रूप से हथियार डाल दिया था। चुनाव लड़ना तो दूर तब भाजपा पार्षद दलों की महापौर और सभापति चुनाव के संबंध में उम्मीदवारी चयन के लिए बैठक भी नहीं हुई थी। पार्षद चुनाव के बाद एक तरह से शहर की भाजपाई राजनीति थम सी गई थी। मेयर चुनाव को लेकर तब पार्षदों में उत्साह तो था पर ऊपर के इशारे का इंतजार और ना ने उनको भी निराश कर दिया।

क्यों और किस बात को लेकर डरी भाजपा

राजनीतक रूप से भाजपा के इस सरेंडर को लेकर तब भाजपाई पार्षदों के अलावा कार्यकर्ताओं और शहरवासियों के बीच एक ही चर्चा चल पड़ी थी कि आखिरकार भाजपा किस बात से डर गई और ऐनवक्त पर चुनाव मैदान से हटने का निर्णय ले लिया। निगम के पूरे पांच साल के कार्यकाल के दौरान यह बात उठते रही है। विधानसभा चुनाव में भाजपा की राज्य की सत्ता पर दोबारा वापसी के बाद यह चर्चा एक बार फिर छिड़ गई है।

पहला चुनाव जिसमें मतदान की नहीं बनी स्थिति

राज्य की सत्ता मेें जब कांग्रेस काबिज हुई तब मेयर चुनाव को लेकर बड़ा बदलाव कर दिया। पार्षदों के जरिए मेयर चुना गया।

इसका सीधा फायदा कांग्रेस को हुआ । तब भाजपा कैंप में महापौर व सभापति के लिए चुनाव लड़ने या ना लड़ने को लेकर अटकलें लगाई जा रही थी। भाजपा के दिग्गजों और शहरवासियों की अटकलें सच साबित हुई। भाजपा चुनाव मैदान से अपने आप बाहर हो गई। राजधानी रायपुर से आए इस निर्णय ने बिलासपुर नगर निगम महापौर व सभापति चुनाव में इतिहास रच दिया। निगम के इतिहास में यह पहली बार राजनीतिक चमत्कार हुआ, जब महापौर व सभापति दोनों निर्विरोध चुन लिए गए। महापौर के पद पर रामशरण यादव व सभापति के पद पर शेख नजीरुद्दीन की ताजपोशी हो गई थी।

कब-कब कौन बने महापौर

वर्ष 1983 में वार्ड पार्षद का चुनाव हुआ । सितंबर 83 में पार्षदों ने अशोक राव को मेयर के पद पर चुना ।

सितंबर 1984 को अशोक राव ने मेयर पद से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद बलराम सिंह,श्रीकुमार अग्रवाल मेयर बने । इनका कार्यकाल एक-एक वर्ष का था जो चार सितंबर 1987 तक चला ।

वर्ष 1987 में राज्य शासन ने निगम में प्रशासक तैनात कर दिया । जो वर्ष 1995 तक जारी रहा।

वर्ष 1995 में राजेश पांडेय महापौर बने । पार्षदों के जरिए चुनाव हुआ था। उस समय कार्यकाल ढाई वर्ष का था। जिसे राज्य शासन ने बढ़ाते हुए पांच वर्ष कर दिया था।

वर्ष 1999-2000 में चुनाव हुआ । तब प्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर का चुनाव हुआ। इसमें भाजपा के उमाशंकर जायसवाल मेयर बने ।

वर्ष 2005 के चुनाव में भाजपा के अशोक पिंगले मेयर बने । कार्यकाल के बीच में उनका निधन हो गया। तब सभापति विनोद सोनी को एक्टिंग महापौर बनाया गया था।

वर्ष 2009 के चुनाव में कांग्रेस की वाणी राव महापौर बनीं।

वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा के किशोर राय मेयर बने।

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