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बड़ी खबर: मनरेगा हड़ताल बनी छत्तीसगढ़ की राजनीतिक उठापटक की वजह, एपीओ की बहाली पर अड़ गए सिंहदेव, तो सरकार ने उठाए ये कदम

बड़ी खबर: मनरेगा हड़ताल बनी छत्तीसगढ़ की राजनीतिक उठापटक की वजह, एपीओ की बहाली पर अड़ गए सिंहदेव, तो सरकार ने उठाए ये कदम
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By NPG News

रायपुर। जुलाई का महीना छत्तीसगढ़ की राजनीति के लिए आफत का महीना होता जा रहा है। पिछले साल के बृहस्पत सिंह के हाई वोल्टेज ड्रामा के बाद अब इस जुलाई में नए राजनैतिक ड्रामा का आगाज़ हुआ। सीनियर मंत्री टीएस सिंहदेव की चिट्ठी ने फिर से प्रदेश में एक राजनैतिक हलचल पैदा कर दी है। पैलेस समर्थक बताते हैं कि चिट्ठी में लिखे अनेक मुद्दे तो पहले से चलते आ रहे हैं लेकिन नरेगा कर्मियों की हड़ताल, हड़ताल समाप्ति और सेवा बहाली के मुद्दे पर मतभेद ने चिंगारी का काम किया।

इस मामले को गहराई से समझने के लिए मनरेगा की हड़ताल पर एक नज़र डालना जरूरी है।

• हड़ताल प्रारंभ – 4 अप्रैल, 2022

• कुल कर्मचारी – 12,731

• पंचायत मंत्री से हुई चर्चा विफल

• मुख्यमंत्री द्वारा कमिटी गठन का आश्वासन दिया गया पर हड़ताल समाप्त नहीं

• मंत्री कवासी लखमा द्वारा हडताली कर्मचारियों से भेंट –8 जून, 2022

• हड़ताल समाप्ति - 13 जून, 2022

• हड़ताल अवधि – 71 दिवस

इस पूरी घटनाक्रम के जानकर बताते हैं कि हड़ताल से लगभग 1250 करोड़ रु की मजदूरी का भुगतान लंबित रहा। हड़ताल को ख़तम करने के सरकार के अनेक प्रयासों के बाद जब सफलता नहीं मिली तो नरेगा के 21 संविदा में कार्यरत एपीओ कीसेवाएं समाप्त कर दी गयीं |

मंत्री कवासी लखमा के प्रयास से जब हड़ताल में बैठे कर्मचारियों ने हड़ताल समाप्त करने का फैसला लिया तो शर्त यह थी की इन 21 एपीओ की सेवाएं बहाल की जाएंगी |

नरेगा ग्रामीण अर्थव्यवस्था से सीधे जुदा होने के कारण विभागीय अधिकारियों ने बहाली का प्रताव बना कर भेजा तो विभागीय मंत्री टीएस सिंहदेव बर्खास्तगी को बरकरार रखने पर अड़ गए। बहाली नहीं होने पर हड़ताल फिर से शुरू होने की संभावना को देखते हुए अधिकारियों ने प्रक्रिया अनुसार समन्वय में अनुमोदन ले कर बहाली आदेश जारी किये जो कि विभागीय मंत्री को नागवार गुज़रा।

इससे पहले जितनी भी हडतालों में कर्मचारी नेताओं पर कार्यवाही की गई है, चाहे वह शिक्षाकर्मी हों, चाहे सफाई कर्मचारी, सभी को आश्वासन पश्चात बहाल किया गया है। अमूमन यही देखने में आया है कि हड़ताल अवधि को अवकाश अवधि भी माना जाता रहा है। ऐसे में टीएस सिंहदेव का बर्खास्तगी को लेकर अड़ना कहीं न कहीं ये दर्शाता है कि नरेगा हड़ताल तो हाथी के दांत हैं, असली मसला कुछ और है।

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