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कांग्रेस में कद्दावर हुए भूपेश: ईडी के खिलाफ सत्याग्रह के केंद्र में भी भूपेश बघेल, राष्ट्रपति पद के लिए भी छत्तीसगढ़ में कैंपेन

मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभालने के बाद से ही भूपेश बघेल केंद्र सरकार, भाजपा व आरएसएस के खिलाफ मुखर रहे हैं।

कांग्रेस में कद्दावर हुए भूपेश: ईडी के खिलाफ सत्याग्रह के केंद्र में भी भूपेश बघेल, राष्ट्रपति पद के लिए भी छत्तीसगढ़ में कैंपेन
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By NPG News

रायपुर। कांग्रेस सांसद व पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को ईडी के नोटिस के बाद नई दिल्ली में जो विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं, उसमें सीएम भूपेश बघेल कद्दावर नेता के रूप में उभरे हैं। केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर होकर बयानबाजी हो या भाजपा और आरएसएस की दोहरी नीतियों के विरोध में भूपेश आगे रहे हैं। यही वजह है कि राष्ट्रीय राजनैतिक परिदृश्य में उनकी छवि चर्चा में है। यहां तक की संयुक्त विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने भी चुनाव प्रचार के लिए शुरुआती राज्यों में छत्तीसगढ़ का चयन किया है। आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के 71 विधायक हैं। छत्तीसगढ़ को पहले कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था, लेकिन भाजपा के 15 साल के शासन में यह माना जाने लगा था कि कांग्रेस का गढ़ ढह गया है। भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस ने रिकॉर्ड 68 सीटों पर जीत दर्ज की। इसके बाद चार उपचुनाव हुए और चारों में भी कांग्रेस ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की है।

छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद जब भूपेश बघेल ने सीएम के रूप में जिम्मेदारी संभाली, उसके बाद से ही लगातार उनका केंद्र सरकार के साथ-साथ भाजपा व आरएसएस के खिलाफ आक्रामक रुख रहा। किसानों को 2500 रुपए समर्थन मूल्य देने से लेकर खाद, धान खरीदी के लिए बारदाने की कमी जैसे राज्य के मुद्दे हों या ईडी, इन्कम टैक्स और सीबीआई की छापेमारी पर भी उन्होंने मुखर होकर अपनी बात रखी। कांग्रेस में ऐसे समय में जब शीर्ष नेतृत्व में उथल-पुथल मची है। पुराने वरिष्ठ नेता अपनी ही पार्टी के खिलाफ बोलने लगे हैं या नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं, तब भूपेश बघेल पार्टी के हर टास्क को पूरा करने में लगे हैं। यही वजह है कि पार्टी ने उन्हें असम से लेकर उत्तरप्रदेश तक चुनाव की जिम्मेदारियों में आजमाया।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और सांसद राहुल गांधी को जब ईडी ने नोटिस दिया, तब पार्टी ने बड़े स्तर पर विरोध की रणनीति बनाई। ऐसे समय में सीएम बघेल दिल्ली रवाना हुए। हर बड़ी रणनीति का हिस्सा बने। यही वजह थी कि दिल्ली पुलिस ने बाकी नेताओं के बजाय अपना ध्यान बघेल पर केंद्रित किया। ईडी दफ्तर से पहले डिटेन करने का मामला हो या पुलिस थाने तक पहुंचने से पहले रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने ताकत झोंक दी। आखिरकार सीएम को यह कहना पड़ा कि वे एक नक्सल प्रभावित राज्य से आते हैं। उनकी सुरक्षा को ताक पर रखकर दिल्ली पुलिस जान-बूझकर कार्यवाही कर रही है, जो गलत है।

कांग्रेस नेताओं की मानें तो शीर्ष स्तर पर आक्रामक नेताओं की कमी सामने आ रही है। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत से लेकर बाकी नेता काफी वरिष्ठ हो गए हैं। इसके विपरीत भूपेश जमीन से जुड़े हुए हैं। वे संघर्ष कर इस स्थिति में पहुंचे हैं, इसलिए वे संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटते। चाहे लखनऊ एयरपोर्ट पर जमीन पर बैठना हो या दिल्ली में पुलिस की कार्यवाही के विरोध में सड़क पर बैठकर विरोध जताना हो, वे हर परिस्थिति के लिए तैयार हैं। कांग्रेस की विचारधारा को लेकर तटस्थ हैं, इसलिए भाजपा और आरएसएस की दोहरी नीतियों का मुखर होकर विरोध करते हैं।

कुछ समय पहले ही बात करें तो राज्य में ढाई-ढाई साल के कथित फॉर्मूले को लेकर जो राजनीतिक उठापटक सामने आई थी...एक समय तो उनकी कुर्सी हिलती प्रतीत होने लगी थी। इन सबके बावजूद, धैर्य न खोते हुए भूपेश ने राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने अपनी मजबूत छवि बनाई है। यही वजह है कि पिछले कुछ दिनों में दिल्ली में जो विरोध-प्रदर्शन हुए हैं, उसके केंद्र में भूपेश बघेल ही रहे हैं। बुधवार को जब राष्ट्रीय नेताओं की मौजूदगी में उन्होंने केंद्र सरकार को निशाने पर लिया, तब वहां मौजूद नेता-कार्यकर्ताओं में यह तुलना होने लगी कि इस आक्रामकता से पार्टी का स्टैंड रखने वाले चेहरे को आगे लाने की जरूरत है।

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