भारत के शंकराचार्य: क्या है शंकराचार्य पद की परंपरा, किसे चुना जाता है शंकराचार्य, पढ़िए NPG की विस्तृत रिपोर्ट, जिसे आप जानना चाहते हैं

NPG DESK I शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का लंबी बीमारी के बाद माइनर हार्ट अटैक से निधन हो गया। वे 98 वर्ष के थे। उन्होंने कल मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली। "शंकराचार्य" वस्तुतः हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है जो बौद्ध धर्म में दलाईलामा एवं ईसाई धर्म में पोप के समकक्ष है। देश में चार मठों के चार शंकराचार्य होते हैं।
जानिए शंकराचार्य पद की परंपरा, किसको मिलता है पद, कितने कठोर हैं नियम
इस पद की शुरुआत आदि शंकराचार्य से मानी जाती है।आदि शंकराचार्य एक हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरु थे, जिन्हें हिंदुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में एक के तौर पर जाना जाता है। इन्होंने ही सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में देश के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए। इन मठों की स्थापना करके आदि शंकराचार्य ने उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया।
आदि शंकराचार्य का परिचय
आदि शंकराचार्य (जन्म नाम: शंकर, जन्म: 788 ई. - मृत्यु: 820 ई.) अद्वैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और हिन्दू धर्म प्रचारक थे।हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार इनको भगवान शंकर का अवतार माना जाता है।इन्होंने लगभग पूरे भारत की यात्रा की।इनके जीवन का अधिकांश भाग उत्तर भारत में बीता।आदि शंकराचार्य का जीवनकाल केवल 32 साल का रहा। इस छोटी सी उम्र में उन्होंने वर्ण, आश्रम और तीर्थ की सनातन परंपराओं को स्थापित कर वैदिक धर्म की पुनर्स्थापना की। वे इतने प्रकांड विद्वान थे कि केवल आठ वर्ष की आयु में ही उन्होंने चार वेदों, सभी शास्त्रों का ज्ञान अर्जित कर लिया था। सोलह वर्ष की आयु में भाष्य रचना और बत्तीस की आयु में महाप्रयाण पर चले गए। चार पीठों की स्थापना करना इनका मुख्य रूप से उल्लेखनीय काम था। उन्होंने कई ग्रंथ लिखे किन्तु उनका दर्शन उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और गीता पर लिखे उनके भाष्यों में मिलता है।
क्या है शंकराचार्य बनने की योग्यता देश की चारों पीठों पर शंकराचार्य की नियुक्ति के लिए ये योग्यता जरूरी है- त्यागी ब्राम्हण हो, ब्रह्मचारी हो, डंडी सन्यासी हो, संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत और पुराणों का ज्ञाता हो, राजनीतिक न हो।
मठ का मतलब क्या है
मठ का अर्थ ऐसे संस्थानों से है जहां इसके गुरु अपने शिष्यों को शिक्षा, उपदेश आदि देने का काम करते हैं। इन्हें पीठ भी कहा जाता है।ये गुरु प्रायः धर्म गुरु होते है। दी गई शिक्षा मुख्यतः आध्यात्मिक होती है। एक मठ में इन कार्यो के अलावा सामाजिक सेवा, साहित्य आदि से संबंधित काम होते हैं। मठ एक ऐसा शब्द है जिसके बहुधार्मिक अर्थ हैं। बौद्ध मठों को विहार कहते हैं ईसाई धर्म में इन्हें मॉनेट्री, प्रायरी, चार्टरहाउस, एब्बे इत्यादि नामों से जाना जाता है।
कौन संन्यासी किस मठ का देश भर में संन्यासी किसी न किसी मठ से जुड़े होते हैं। संन्यास लेने के बाद दीक्षित नाम के बाद एक विशेषण लगा दिया जाता है जिससे यह संकेत मिलता है कि यह संन्यासी किस मठ से है। वेद की किस परम्परा का वाहक है। सभी मठ अलग-अलग वेद के प्रचारक होते हैं।हरेक मठ का अपना महावाक्य भी होता है।
कहां हैं शंकराचार्यों के चार मठ चार मठ देश के चार कोनों में हैं जो निम्न हैं- श्रृंगेरी मठ
ये दक्षिण भारत में चिकमंगलूर में स्थित है।श्रृंगेरी मठ के अन्तर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती तथा पुरी संप्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य सुरेश्वरजी थे, जिनका पूर्व में नाम मण्डन मिश्र था। मठ का महावाक्य- 'अहं ब्रह्मास्मि' है वेद है 'यजुर्वेद' और मौजूदा शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्णतीर्थ (36वें मठाधीश)हैं।
गोवर्धन मठ ये भारत के पूर्वी भाग में ओडिशा राज्य के जगन्नाथ पुरी में स्थित है। गोवर्धन मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'आरण्य' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आदि शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपाद हुए।मठ का महावाक्य 'प्रज्ञानं ब्रह्म' है।
मठ का वेद 'ऋग्वेद' है और मौजूदा शंकराचार्य - निश्चलानंद सरस्वती (145 वें मठाधीश) हैं।
शारदा मठ शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है।शारदा मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' सम्प्रदाय नाम का विशेषण लगाया जाता है।शारदा मठ के प्रथम मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे. वो शंकराचार्य के प्रमुख चार शिष्यों में एक थे।
मठ का महावाक्य 'तत्त्वमसि' है। वेद 'सामवेद' है और इसी के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती (79 वें मठाधीश)थे।
ज्योतिर्मठ उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है ज्योतिर्मठ. यहां दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' एवं 'सागर' संप्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है।ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य तोटक बनाए गए थे। मठ का महावाक्य - 'अयमात्मा ब्रह्म' है। वेद अथर्ववेद है और
मौजूदा शंकराचार्य हैं स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती (44 वें मठाधीश) हालांकि यहां शंकराचार्य पद को लेकर विवाद भी हुआ।
इसके अलावा कांची कामकोटि मठ कांचीपुरम में स्थापित एक हिंदू मठ है। यह पांच पंचभूतस्थलों में एक है।यहां के मठाधीश्वर को शंकराचार्य कहते हैं। इसे भी आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था। आज ये दक्षिण भारत के महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में एक है।इसके शंकराचार्य अब तक श्रीजयेंद्र सरस्वती थे।अब उनके निधन के बाद विजेंद्र सरस्वती इसके 70वें शंकराचार्य होंगे।
कठिन तपस्या और त्याग के मार्ग पर चलकर निरंतर ज्ञानार्जन, परमार्थ और सनातन धर्म की प्रतिष्ठा में रत रहना शंकराचार्य का मूल कर्तव्य है। कार्य निर्वहन के दौरान कुछ विवाद भी शंकराचार्यों के साथ जुड़ते रहे हैं। लेकिन अनुयायियों के ह्रदय में उनका स्थान जस का तस है। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जाना सनातन धर्मावलंबियों के लिए अपूरणीय क्षति है।
