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बेचारे बैचलर आईएएस

बेचारे बैचलर आईएएस
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By NPG News

संजय के. दीक्षित

तरकश, 5 दिसंबर 2021

एक युवा आईएएस को सरकार ने हाल ही में हटा दिया। पता चला, वे दो महीने से दफ्तर नहीं आ रहे थे। आईएएस जैसी देश की सबसे प्रतिष्ठित सर्विस में सलेक्ट होने के बाद भी इस कदर...चिकित्साविज्ञानी मानते हैं, एक उम्र के बाद बैचलर नहीं रहना चाहिए। बैचलर रहने के कारण छत्तीसगढ़ के कुछ और नौकरशाहों की वर्किंग प्रभावित हो रही है। एक आईएएस कलेक्टर बनने से चूक गए। सूबे में कई अफसर दो-दो, तीन-तीन घरों का सुख ले रहे हैं और ये बैचलर बेचारे एक घर नहीं बसा रहे। चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन को बैचलर अफसरों के लिए कुछ करना चाहिए...काउंसलिंग का बंदोबस्त ही सही, ताकि टाईम पर वे घर-गृहस्थी बचा लें।

बेचारे तीन कलेक्टर!

बेमेतरा, कवर्धा और मुंगेली, इन तीन जिलों के अधिकारी डायरेक्ट कॉन्फ्रेंस हो या वीडियोकांफ्रेंसिंग, पारफारमेंस को लेकर घिर जाते हैं। सीएस अमिताभ जैन ने हाल ही में वीसी लिए, उसमें भी इन जिलों के कलेक्टरों को खासतौर पर निर्देश दिया गया। दरअसल, इन तीनों जिलों में डीएमएफ है नहीं, लिहाजा इन कलेक्टरों के हाथ बंधे होते हैं। अब मुंगेली कलेक्टर के पास रिसोर्सेज के नाम पर है क्या? जिन जिलों में डीएमएफ हैं, वहां संसाधनों की कोई कमी नहीं होती। वैसे, इस बार कोरिया कलेक्टर श्याम धावड़े की वीसी में तारीफ हो गई। सीएस बोले, तुम काम अच्छा करते हो मगर बोलते कम हो, इस बार तुम धड़धड़ाकर बोले। इस बार की वीसी की खास बात यह रही कि सभी कलेक्टरों को बोलने का मौका मिला।

महिला एसपी का रिकार्ड

छत्तीसगढ़ की 2008 बैच की आईपीएस पारुल माथुर बिलासपुर की एसएसपी बनते ही देश में सबसे अधिक जिलों की कप्तान रहने वाली महिला आईपीएस बन गई हैं। देश में अभी तक पांच जिलों की कप्तानी का रिकार्ड है। पारुल छठवीं बार एसपी बनीं हैं। पांच बार जिले की और एक बार लंबे समय तक रेलवे एसपी रही। बीजेपी सरकार में उनके बारे में कहा जाने लगा था कि सरकार ने रेलवे एसपी बनाकर लगता है, भूल गई। बाद में सरकार बदली तो पारुल की किस्मत भी पलटी। वे मुंगेली, जांजगीर, गरियाबंद होते हुए बिलासपुर जैसे सूबे के दूसरे बड़े जिले की कप्तान बन गईं। बीजेपी के पीरियड में उनका सबसे पहला जिला बेमेतरा रहा। लेकिन, पारिवारिक वजहों से वे लंबी छुट्टी पर चली गईं थी। फिलहाल, गौर करने वाली बात यह है कि ये चार जिले उन्होंने बिना ब्रेक किया है। इसलिए, कोई आश्चर्य नहीं कि वे एकाध और बड़ा जिला कर लें। पारुल के पिता राजीव माथुर भी आईपीएस अफसर रहे हैं। रायपुर के चर्चित आईजी भी रहे। लेकिन, काबिल होने के बाद भी पीएचक्यू में उन्हें मौका नहीं मिला तो सेंट्रल डेपुटेशन पर चले गए। बहरहाल, पारुल का जांजगीर का कार्यकाल वैसा नहीं रहा...। बिलासपुर के रूप में उन्हें सरकार ने बड़ा अवसर दिया है....उन्हें दबंग महिला एसपी के तौर पर छबि निर्मित करने के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहिए।

ग्रह-नक्षत्र का फेर

छत्तीसगढ़ में आईपीएस के दिन बदल नहीं रहे। कांस्टेबल और ड्राईवर एसपी लोगों को निबटा दे रहे हैं। बलौदा बाजार के एसपी आईके एलेसेला ने अमर्यादित बातें की....ये कोई नया नहीं था....एसपी अपने सिपाही, दरोगा से किस अंदाज में बात करते हैं...ये पुराने समय से चला आ रहा है। हम एसपी की असंसदीय भाषा से इतेफाक नहीं रखते, न रखना चाहिए, वाकई उनका बर्ताव आपत्तिजनक था। लेकिन कांस्टेबल मोबाइल से अपने साहबों को ट्रेप करने लगें तो समझ जाइये फिर पुलिसिंग का क्या होगा? रिकार्डिंग सुन आप समझ जाएंगे कि किस तरह कांस्टेबल एसपी को ट्रेप करने के लिए बहस को न केवल लंबा खींचने की कोशिश कर रहा बल्कि जुबान लड़ाकर फंसा रहा है....भला कांस्टेबल कभी एसपी को माई-बाप बोलता है। ये पुलिस के ग्रह-नक्षत्र का फेर है....नए डीजीपी अशोक जुनेजा को कुछ पूजा-पाठ करानी चाहिए।

'बी' का फेर

छत्तीसगढ़ में बी नाम से छह जिले हैं...बालोद, बेमेतरा, बलौदा बाजार, बस्तर, बिलासपुर और बलरामपुर। इन एक जिले में किसी एसपी की पोस्टिंग होती है तो फिर उसका 'बी' का एकाध सर्कल लगता ही है....। मसलन, आरिफ शेख। आरिफ सबसे पहले बालोद गए। वहां से बलौदा बाजार, बस्तर और फिर बिलासपुर। याने फोर 'बी'। हालांकि, वे बिलासपुर से रायपुर का एसएसपी बन 'बी' के चक्रव्यूह से निकल गए। जीतेंद्र मीणा भी बालोद से बस्तर पहुंच गए। जीतेंद्र का भी 'बी' का चक्कर नहीं छूटा....अपग्रेडेशन जरूर हुआ। सदानंद बलरामपुर और बालोद। इसी तरह पारुल माथुर का पहला जिला बेमेतरा रहा और अब बिलासपुर। दीपक झा आखिरी-आखिरी में अवश्य बी के चक्रव्यूह में फंस गए। बलौदा बाजार के बाद बस्तर, फिर बिलासपुर और अब बलौदा बाजार। बलौदा बाजार मतलब कुछ दिन में उसका आधा हिस्सा सारंगढ़ में चला जाएगा।

सबसे बड़ा सवाल

बलौदा बाजार एसपी क्यों नपें, बताने की जरूरत नहीं। कवर्धा की धार्मिक हिंसा में मोहित गर्ग को जाना ही था। लेकिन, ब्यूरोक्रेसी में सबसे बड़ा सवाल है...बिलासपुर एसपी दीपक झा का क्या हुआ...वे तो ठीक से अभी पिच पर जम भी नहीं पाए थे। इसकी असली वजह आदेश निकालने वाले गृह विभाग के लोग बता पाएंगे। मगर छन-छनकर जो खबरे आ रही हैं, पिछले दिनों बिलासपुर के कोतवाली थाने में घेराव और नारेबाजी को ढंग से हैंडिल नहीं किया गया...थाने में सरकार के खिलाफ नारे लगते रहे...इसे अच्छे वे में नहीं लिया गया।

अब नक्सल नहीं!

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री जब भी कभी दिल्ली मीडिया से मुख़ातिब होते थे तो फोकस हमेशा नक्सल समस्या पर ही होता था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं था। मुख्यमंत्री मीडिया से जुड़े तीन कार्यक्रमों में गये और उनसे नक्सल समस्या को लेकर कोई प्रश्न नहीं पूछा गया। अलबत्ता, राष्ट्रीय मंच पर छत्तीसगढ़ मॉडल की चर्चा हुई, किसानों के ऋण माफ़ी की मांग हुई और गोबर ख़रीदने की गोधन योजना का विस्तार से ज़िक्र हुआ। जिस तरह से मुख्यमंत्री ने ममता बैनर्जी के ताजा कांग्रेस विरोधी रुख़ पर प्रश्न उठाये...प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद ममता के बदले सूर पर अटैक किया....अखिलेश यादव की कांग्रेस पर की गयी टिप्पणी का जिस बेबाकी से प्रतिकार किया, वह उनका सियासी कांफिडेंस बताता है।

नेताओं को झटका

बीजेपी के कोर ग्रुप समेत संगठन के पदों पर ठीक-ठाक दायित्व न मिलने से भाजपा के कई नेता खफा बताए जा रहे हैं। एक पूर्व मंत्री सूची जारी होने के बाद दिल्ली में हैं। हालांकि, झटका तो अमर अग्रवाल और अजय चंद्राकर को भी लगा होगा। लेकिन, उन्हें कम-से-कम नगरीय और पंचायतों में कोआर्डिनेशन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अमर पार्षदों के बीच जाकर समन्वय के साथ आंदोलनों की रूप-रेखा तैयार करवाएंगे तो अजय पंचायत प्रतिनिधियों को कोआर्डिनेट करेंगे। किन्तु कुछ नेताओं को तो कुछ भी नहीं मिला। ऐसे में, उनका दुखी होना लाजिमी है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस जिले में पुलिस को बदनाम करने फर्जी गोली कांड हुआ और विवशता में पुलिस उसे जाहिर भी नहीं कर पाई?

2. पारुल माथुर को छोटे जिला से बड़ा जम्प मिला तो क्या अब बालोद के एसपी सदानंद और कोरिया एसपी संतोष सिंह को भी उम्मीद रखनी चाहिए?

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