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अपनों की हत्याओं का भयावह दौर: क्यों लोग अपनों की जान लेने से नहीं हिचक रहे, मनोवैज्ञानिक क्या कहते हैं...एक पड़ताल

अपनों की हत्याओं का भयावह दौर: क्यों लोग अपनों की जान लेने से नहीं हिचक रहे, मनोवैज्ञानिक क्या कहते हैं...एक पड़ताल
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By NPG News

NPG न्यूज

कैसी भयावह खबरों का दौर आया है। अब किडनैपर, चाकूबाज़ नहीं, बल्कि अपने ही अपनों को मार रहे हैं, और वो भी बहुत वीभत्स तरीके से। प्रश्न यही उठता है कि ऐसा सब क्यों हो रहा है? समाज किस दिशा में जा रहा है? गुस्से पर काबू क्यों खत्म हो रहा है? क्यों अपनों को मारते वक्त लोगों के हाथ नहीं कांप रहे? साथ बिताए अच्छे पल मन-मस्तिष्क से डिलीट कैसे हो जा रहे हैं? क्या अपनों की जान लेना महज़ कंप्यूटर पर एक कंमाड देने जितना आसान है? हाल के दिनों में सामने आए केस लोगों में दहशत और घृणा भर रहे हैं। बच्चे भी इन भयावह खबरों को सुन-पढ़ रहे है। क्यों लोग इस कदर आपा खो रहे हैं, मनोवैज्ञानिक क्या कहते हैं इन सब पर, आइए जानते हैं ।

पहले हाल ही में सामने आए कुछ केसों पर नजर डालते हैं

दिल्ली के पांडव नगर इलाके में अंजन दास हत्याकांड

अभी लोग श्रृद्धा हत्याकांड से उबरे भी नहीं थे कि दिल्ली के पांडव नगर इलाके से बिल्कुल वैसा ही दूसरा केस सामने आ गया।यहां एक मां ने अपने बेटे के साथ मिलकर पति को मौत के घाट उतार दिया।आरोपियों का नाम पूनम और दीपक है। कहा जा रहा है कि अंजन दास के कई महिलाओं से अवैध संबंध थे और वह समझाने पर भी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहा था। माँ-बेटे ने मिलकर पहले उसे मौत के घाट उतारा और फिर बेहरमी से उसके शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और उन्हें फ्रिज में रख दिया। इसके बाद आरोपी अगले तीन-चार दिन तक टुकड़ों को फेंकते रहे।

पिता ने मार कर सूटकेस में डाली बेटी की लाश

मथुरा का आयुषी मर्डर केस भी रिश्तों के कत्ल का सबसे ताजा मामला है। 22 साल की आयुषी को उसके पिता ने ही मौत के घाट उतार दिया और फिर उसकी लाश को ट्रॉली बैग में भरकर मथुरा के ही दूसरे इलाके में फेंक दिया। आयुषी की मां ने भी अपनी बेटी कत्ल में पति का साथ दिया। आयुषी किसी लड़के से प्यार करती थी और परिवार इसके खिलाफ था।

माता-पिता, बहन, दादी का कत्ल

दिल्ली के पालम में केशव नाम के एक लड़के ने अपने माता-पिता, दादी और आखिर में अपनी छोटी बहन को मौत के घाट उतार डाला। पड़ोसियों ने बताया कि उस रात केशव के घर से चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें आ रहीं थी। पड़ोसियों ने पुलिस को खबर दी, लेकिन जब पुलिस उस घर में पहुंची तब तक आरोपी चारों को मारा चुका था। घर में हर तरफ खून ही खून फैला हुआ था। केशव को नशे की आदत थी। वो अक्सर अपने घरवालों से पैसा मांगता था। उस दिन भी उसने सबसे पैसे मांगे, लेकिन पैसे न मिलने पर उसने एक एक कर सबको मार डाला।

लिव-इन पार्टनर के किए 35 टुकड़े

आफताब और श्रद्धा दोनों मुंबई में रहते थे। दोनों के बीच प्यार हुआ। श्रद्धा ने अपने परिवार को दोनों के रिश्ते के बारे में बताया, लेकिन परिवार ने रिश्ते के लिए रजामंदी नहीं दी। श्रृद्धा अपने परिवार को छोड़कर आफताब के साथ दिल्ली आ गई। दोनों महरौली में लिव-इन में रहने लगे, लेकिन फिर एक दिन आफताब ने श्रद्धा का कत्ल कर दिया। इसके बाद श्रद्धा की लाश को छुपाने के लिए उसने लाश के 35 टुकड़े किए। बाज़ार के फ्रिज लाकर कई दिनों तक लाश के टुकड़ों में उसमें रखा और फिर महरौली के जंगल में जाकर डाल दिया।

इन केस को पढ़कर तो ऐसा लगता है किम प्रेम, लगाव, सहानुभूति, अपनापन सब कुछ मानो बीते कल की बात हो गई है। एक धुन है बस, अपने मन की करने की और फिर उसके आगे रिश्तों का कोई मोल नहीं। मनोवैज्ञानिक और विशेषज्ञ इस पर क्या कहते हैं, जानते हैं

इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज, नई दिल्ली में एडल्ट एंड जेरियाट्रिक साइकियाट्री के वरिष्ठ सलाहकार डॉ ओम प्रकाश कहते हैं, 'हम दिन-प्रतिदिन और अधिक असहिष्णु होते जा रहे हैं। अधिकार की भावना ऐसी समस्याएं पैदा कर सकती है। लोगों को दूसरों के बारे में सोचने,सहिष्णु होने की जरूरत है।क्रोध की ये आदतें मानसिक बीमारी में बदल रही हैं, और लोग इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।

वहीं टिप्पणीकार संतोष देसाई कहते हैं कि ये मेटेरियल सक्सेस और सोशल मीडिया के एडिक्शन से भी जुड़ा है जिसकी वजह से लोगों को लगता है कि जो भी वो कहते हैं और करते हैं, वही सही है और वैसा ही होना चाहिए। जब उनके आसपास के लोग उनकी बात नहीं मानते तो वे उग्र हो जाते हैं।

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि लोग वर्चुअल दुनिया को हकीकत मानने लगे हैं। वर्चुअल दुनिया में जो कुछ होता है, उसे असल जिंदगी में करने की कोशिश करते हैं। उन्हें इन सबकी आदत पड़ जाती है। फिर उस तरह की हरकत करने में उन्हें कोई संकोच और डर नहीं रह जाता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इंटरनेट पर हर तरह के ज्ञान की सहज उपलब्धता समाज के लिए खतरा बन गई है। एक क्लिक पर मर्डर से लेकर बम ब्लास्ट करने तक की जानकारी उपलब्ध है। इसलिए लोगों के लिए बड़ी घटनाओं को अंजाम देना भी बाएं हाथ का खेल हो गया है।

लोग खुद को, खुद के स्वार्थ को प्राथमिकता देना बंद कर कम से कम अपनों के बारे में सोचें, इसके लिए वर्चुअल दुनिया से बाहर निकलकर सामाजिक दायरे में शामिल होना होगा। लोगों को दिमाग शांत रखना सीखने की जरूरत है। इससे स्वास्थ्य तो सही होगा ही, वे दूसरों के लिए भी खतरा नहीं बनेंगे।



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