आखिर क्या है हड़ताल का भविष्य, क्या डीए में और वृद्धि होगी, क्या झुकेगी सरकार या फिर कर्मचारियों पर होगा विभागीय कार्यवाही का प्रहार !
रायपुर। ये किसी विडंबना से कम नहीं है कि साढ़े तीन महीने में 11 फीसदी डीए बढ़ाने के बाद भी डीए वृद्धि के लिए हड़ताल की नौबत आ गई है। कर्मचारी-अधिकारी फेडरेशन के आव्हान पर कल से समूचा सरकारी दफ्तरों में तालेबंदी की स्थिति बन जाएगी। यहां तक कि कोर्ट भी, जो कभी हड़ताल का हिस्सा नहीं रहा, वहां भी कल से कामकाज ठप्प हो जाएगा। तहसील कार्यालयों में भी काम नहीं होगा। फेडरेशन की मांग है, केंद्र के बराबर डीए मिलना चाहिए। याने छह फीसदी और। पहले 17 प्रतिशत था। मई में सरकार ने पांच फीसदी बढ़ाया और फिर अभी हफ्ते भर पहले कर्मचारी अधिकारी महासंघ से बातचीत में पांच फीसदी बढ़ाया गया। यानी अब 34 फीसदी से छह प्रतिशत डीए कम मिल रहा छत्तीसगढ़ में। फेडरेशन की यही मांग है कि उसे बराबर किया जाए। सवाल यह है कि अब अंतर काफी कम रह गया है...फिर हडताल पर जाने के लिए फेडरेशन विवश क्यों हुआ...? तो इसका एकमात्र जवाब है मिसहैंडलिंग। अधिकारियों ने अगर महासंघ के साथ ही बातचीत में फेडरेशन को भी शामिल कर लिया होता तो आज बात दूसरी बात होती।
बहरहाल, हड़ताल की बागडोर छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन के हाथों में है, जो 85 से भी अधिक संगठनों से मिलकर बना है और उसे सभी संगठनों का भरपूर समर्थन भी मिला है। सही मायने में कहें तो छत्तीसगढ़ प्रदेश बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब सरकार और कर्मचारियों की सीधे तौर पर आमने-सामने की स्थिति होगी। दरअसल, यह हड़ताल कोई तीन दिवसीय या पांच दिवसीय हड़ताल नहीं है बल्कि अनिश्चितकालीन है। निश्चित दिनों के लिए होने वाले आंदोलन पर सरकार अपनी भौहें इसलिए भी टेढ़ी नहीं करती। क्योंकि उन्हें यह पता होता है की 3 या 5 दिन बाद वह आंदोलन अपने आप खत्म हो जाएगा और इससे पहले के अधिकांश अनिश्चितकालीन आंदोलन केवल और केवल किसी एक कर्मचारी समुदाय द्वारा किए जाते थे। ऐसा पहली बार होगा जब प्रदेश के सभी विभाग के कर्मचारी हड़ताल में कूदेंगे। हालांकि, कागजों पर दिख रहे आंकड़े और समर्थन पत्र क्या जमीनी हकीकत में भी नजर आएंगे यह कल ही पता चलेगा। क्योंकि, किसी संगठन ने लिखकर दे दिया है इसका मतलब यह नहीं है कि प्रदेश के सभी कर्मचारी हड़ताल में चले जाएं ऐसे में कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन का इकबाल भी खतरे में है यदि जैसा उन्होंने दावा किया है वैसा हो गया तो फिर कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन और उसके प्रदेश अध्यक्ष कमल वर्मा का वजन और बढ़ जाएगा।
सोशल मीडिया को करीब से देखें तो सीधे तौर पर दो धड़ा नजर आता है। एक आंदोलन के समर्थन में और दूसरा आंदोलन के विरोध में और दोनों तरफ से ही आक्रमक वार जारी है। आलम यह है कि जयचंद से लेकर शिखंडी तक की उपमाओं से कर्मचारी नेताओं को नवाजा जा रहा है। दोनों ही पक्षों की अपनी दलील है। दरअसल, जिस प्रकार अचानक से हड़ताल से दूरी बनाने और बातचीत का रास्ता अपनाने वाले अनिल शुक्ला के महासंघ ने मुख्यमंत्री से मुलाकात करके 6 फीसदी डीए की घोषणा का श्रेय लिया है, वह फेडरेशन के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। वहीं, दूसरी तरफ फेडरेशन के लिए अपनी ताकत को बढ़ाने का एक नया मौका दे दिया है।
हड़ताल के संदर्भ में प्रश्न यह भी है कि मुख्यमंत्री से बातचीत के बाद फेडरशन हड़ताल पर जा रहा है। ऐसे में, हड़ताल खतम किस तरह होगा? क्या सरकार झुक कर फेडरेशन को वार्ता के लिए आमंत्रित करेगी। सरकार के अभी जो तेवर है, उससे लगता नहीं। संकेत हैं, एस्मा लगाया जाएगा। जीएडी ने कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों को जो कर्मचारी काम पर आना चाहते हैं, उनकी सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराने कहा है। ऐसे में, हड़ताल का भविष्य क्या होगा, जवाब देने की स्थिति में कोई नहीं है।