20वें कांग्रेस अध्यक्ष का कौन पहनेगा ताज...अशोक गहलोत या शशि थरूर, जानिए 19 अध्यक्षों में कितने गांधी परिवार से रहे हैं...पढ़िए NPG की खास स्टोरी
दिव्या सिंह
कांग्रेस पार्टी में लंबे अर्से के बाद अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने जा रहा है। आज नोटिफिकेशन जारी होने के साथ ही अध्यक्ष चुने जाने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी। कांग्रेस ने आजादी के बाद से कुल 19 नेताओं को अध्यक्ष पद पर बिठाया है। कहा जाता है कि कांग्रेस अध्यक्ष कौन होगा, यह तय करने में नेहरू-गांधी परिवार की ही चलती है लेकिन इन 19 नामों को देखने पर पता चलता है कि इसमें नेहरू-गांधी खानदान के पांच लोग हैं। आजादी के बाद 73 सालों में करीब 38 साल इस पार्टी का अध्यक्ष नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य रहा है। 2017 में जब राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपी गई थी तो वे इस परिवार के पांचवें ऐसे व्यक्ति बन गए थे जो कांग्रेस अध्यक्ष बने। राहुल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद पद छोड़ा तो फिर सोनिया गांधी को ही कमान सौंपी गई। अब एक बार फिर चुनाव होने जा रहा है जिसमें अशोक गहलोत और शशि थरूर के आमने -सामने होने की संभावना है। कांग्रेस में जब भी चुनाव हुए हैं, वे बड़े रोचक रहे हैं। इस बार नज़ारा कैसा होगा, इस पर सबकी नज़र है। एक नजर डालते हैं आज़ादी के बाद अब तक कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहे नेताओं पर।
आचार्य कृपलानी थे पहले अध्यक्ष
जिस समय भारत आजाद हुआ, उस वक्त आचार्य कृपलानी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। प्रधानमंत्री पद के लिए वोटिंग में सरदार वल्लभ पटेल के बाद सबसे ज्यादा वोट कृपलानी के लिए ही पड़े थे लेकिन महात्मा गांधी के कहने पर दोनों ने अपना नाम वापस ले लिया था।
सीतारमैया ने दूसरी बार में जीता चुनाव
पट्टाभि सीतारमैया पक्के गांधीवादी थे। 1939 में भी सीतारमैया कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में खड़े हुए थे मगर सुभाषचंद्र बोस से हार गए। 1948 के अधिवेशन में पट्टाभि सीतारमैया को कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया। वह 1950 तक पार्टी अध्यक्ष रहे।
महज सालभर अध्यक्ष रहे पुरुषोत्तम दास टंडन
पुरुषोत्तम दास टंडन ने 1950 में आचार्य कृपलानी को हराकर कांग्रेस अध्यक्ष का पद हासिल किया था। मगर 1951 में इस्तीफा दे दिया।
नेहरू ने 5 साल तक संभाली पार्टी की कमान
जवाहरलाल नेहरू ने प्रधानमंत्री रहते समय पांच वर्ष तक कांग्रेस की कमान संभाली। वह आजादी के बाद नेहरू-गांधी परिवार के पहले कांग्रेस अध्यक्ष थे।
कांग्रेस के टॉप नेताओं को साथ लाए ढेबर
उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर कांग्रेस के पांचवें अध्यक्ष थे। बतौर पार्टी प्रमुख, उनका पहला काम था बड़े नेताओं को देश सेवा के लिए साथ लाना। वह एसएसटी आयोग के चेयरमैन भी रहे।
पीएम रहते पार्टी चीफ थीं इंदिरा
पिता की तरह इंदिरा गांधी भी प्रधानमंत्री रहते हुए करीब पांच साल तक कांग्रेस अध्यक्ष रहीं। वह पहली बार 1959 में अध्यक्ष बनीं और दूसरी बार आपातकाल के बाद 1978 में।
इंदिरा के बाद नीलम संजीव रेड्डी बने अध्यक्ष
आगे चलकर देश के राष्ट्रपति बनने वाले नीलम संजीव रेड्डी 1960 से 1964 तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे। इसके बाद उन्हें, लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में मंत्री बनया गया। वह इंदिरा की कैबिनेट में भी शामिल थे।
के. कामराज कहलाते थे किंगमेकर
आजाद भारत में कांग्रेस के शायद प्रमुख गैर गांधी अध्यक्ष रहे के कामराज को 1960 के दशक में 'किंगमेकर' कहा जाता था। वह दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। 1964 से 1967 के बीच अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने नेहरू के निधन के बाद शास्त्री और फिर इंदिरा को प्रधानमंत्री बनते देखा।
अटूट कांग्रेस के आखिरी अध्यक्ष थे निजलिंगप्पा
एस निजलिंगप्पा कांग्रेस के नौंवे अध्यक्ष थे। साल 1968-69 के बीच जब कांग्रेस 1967 की हार से उबर रही थी, तब निजलिंगप्पा ने कमान संभाली। उनके नेतृत्व में पार्टी पहले एकजुट हुई लेकिन खेमेबाजी हो चुकी थी। 1969 में कांग्रेस टूट गई। इस तरह वह अभिवाजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आखिरी अध्यक्ष रहे।
पी. मेहुल भी बने अध्यक्ष
पी. मेहुल 1969 से 1970 के बीच कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे।
कांग्रेस के 11वें अध्यक्ष थे जगजीवन राम
'बाबू' जगजीवन राम 1970 के 1972 के बीच कांग्रेस के अध्यक्ष पद आसीन थे।
कांग्रेस अध्यक्ष से राष्ट्रपति भवन तक पहुंचे शंकर दयाल शर्मा
भारत का नौंवा राष्ट्रपति बनने से पहले शंकर दयाल शर्मा कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रह चुके थे। वह कई केंद्रीय मंत्रालयों का जिम्मा संभालते आए थे।
देवकांत बरुआ ने देखा आपातकाल
असम से आने वाले देवकांत बरुआ उस वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष थे जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया।
राजीव थे नेहरू-गांधी परिवार से तीसरे अध्यक्ष
मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, राजीव गांधी ने पार्टी की कमान संभाली। वह 1991 तक इस पद पर रहे।
यूपी से थे कमलापति त्रिपाठी
दो बार रेल मंत्री रहने के बाद कांग्रेस के 15वें अध्यक्ष बने थे कमलापति त्रिपाठी। वह 1992 तक पद पर रहे।
पीएम रहते ही पार्टी चीफ थे राव
पी वी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री रहते हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद पर थे। वह बतौर प्रधानमंत्री देश की आर्थिक स्थिति बदलने के लिए जाने जाते हैं।
सीताराम केसरी का रहा विवादों से नाता
राव के इस्तीफा देने के बाद सीताराम केसरी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। 1997 में उन्होंने एचडी देवेगौड़ा की सरकार गिरा दी जो सबसे विवादित फैसला समझा जाता है। फिर आईके गुजराल की सरकार से भी कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया। केसरी को कांग्रेस से निकालना भी भारतीय राजनीति की सबसे विवादित घटनाओं में से एक है।
सबसे लंबे वक्त तक अध्यक्ष रहीं सोनिया
1998 में कांग्रेस को राजनीतिक संकट से उबारने के लिए कांग्रेसियों ने गांधी परिवार का रुख किया। सोनिया आगे आईं और पार्टी की कमान संभाली। वह अगले 17 साल तक पार्टी अध्यक्ष बनी रहीं।उनके मार्गदर्शन में कांग्रेस सत्ता में भी आई। 2014 में बीजेपी के हाथों करारी हार के बाद नेतृत्व परिवर्तन की बात चली थी मगर राहुल को परिपक्व नहीं समझा गया।
राहुल गांधी ने दिया इस्तीफा
राहुल गांधी 2017 में पार्टी के अध्यक्ष बने। उनके कांग्रेस अध्यक्ष रहते पार्टी 2019 का लोकसभा चुनाव बेहद बुरी तरह हारी। जब राहुल ने अध्यक्ष पद छोड़ने का ऐलान किया तब कई कांग्रेसियों ने कहा कि कोई विकल्प नहीं है, वे पद पर बने रहें। लेकिन हार की जिम्मेदारी अपने सिर पर लेकर राहुल ने अध्यक्ष पद छोड़ दिया। आखिर में सोनिया को अंतरिम अध्यक्ष चुन लिया गया।
73 में से करीब 38 साल गांधी परिवार का राज
सोनिया गांधी को कांग्रेस की कमान संभाले अब 20 साल हो चुके हैं। पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष हैं। कुल मिलाकर आजादी के बाद 73 साल में करीब 38 साल कांग्रेस का अध्यक्ष नेहरू-गांधी परिवार से रहा है।
अब कौन पहनेगा ताज... गहलोत या थरूर
हालांकि अब भी राहुल गांधी से लगभग पूरे देश की प्रदेश कांग्रेस कमेटियों की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष पद स्वीकार करने का आग्रह हो रहा है लेकिन राहुल लगातार इनकार कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में चुनाव के लिए ज़मीन तैयार हो गई लगती है। फिलहाल अशोक गहलोत और शशि थरूर के रूप में दो खिलाड़ियों के मैदान में आने की संभावना है। अशोक गहलोत गांधी परिवार की पसंद बताए जा रहे हैं लेकिन शशि थरूर ने भी चुनाव में खड़े होने में दिलचस्पी दिखाई है। वे " एलीट क्लास" की पसंद माने जाते हैं। बुद्धिमान, स्पष्ट वक्ता और उत्साही हैं वहीं अशोक गहलोत "सादगी से जादूगरी" करने में माहिर हैं। ऐसा माना जा रहा है कि गांधी परिवार गहलोत को जिताने में पूरी ताकत लगाएगा। कुल मिलाकर चुनाव रोचक बन पड़ा है। देखते हैं ताज किसकी किस्मत में लिखा है।