Begin typing your search above and press return to search.

अनाचार के हर बरस सैकड़ा पार मामले दर्ज, लेकिन क्षतिपूर्ति का आँकड़ा पचास पार भी नहीं.. क्षतिपूर्ति के प्रकरण और थानों में दर्ज रिपोर्ट के आँकड़ों का अंतर चौंकाने वाला

अनाचार के हर बरस सैकड़ा पार मामले दर्ज, लेकिन क्षतिपूर्ति का आँकड़ा पचास पार भी नहीं.. क्षतिपूर्ति के प्रकरण और थानों में दर्ज रिपोर्ट के आँकड़ों का अंतर चौंकाने वाला
X
By NPG News

रायपुर,7 दिसंबर 2020। धारा 376 याने बलात्कार के जितने मामले थानों में दर्ज होते हैं, क्या वे उतनी ही संख्या में अदालत में टिकते नहीं है। कम से कम न्यायिक सेवा प्राधिकरण से मिलने वाले वे आंकड़े जिनमें अनाचार को लेकर क्षतिपूर्ति के प्रावधान है वे तो कुछ वैसे ही संकेत देते हैं।
वर्ष 2018 में राजधानी रायपुर में अनाचार के 199 प्रकरण दर्ज किए गए थे,2019 में यह आँकड़ा 231 पहुंचा जबकि 2020 के नवंबर तक यह आँकड़ा 176 है। ठीक इन्हीं तीन बरसों के न्यायिक सेवा प्राधिकरण के अनाचार मामलों में वर्ष 2018 में 24 प्रकरणों में क्षतिपूर्ति,2019 में 44 प्रकरणों में क्षतिपूर्ति और वर्ष 2020 के अक्टूबर तक 47 प्रकरणों में क्षतिपूर्ति दी गई है।
लंबित न्यायिक प्रणाली से निश्चित तौर पर यह लिखना पूरी तरह सही नही होगा कि, यह वर्ष के उन्हीं मामलों के नतीजे हैं जो कि थानों में क़ायम हुए, लेकिन फिर भी यह आँकड़े बताते हैं कि अनाचार के मामलों का अदालतों में हश्र क्या होता है।
अंबिकापुर के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय अंबस्ट दर्ज किए जा रहे मामलों को लेकर कहते हैं –
“जिस भयावह तरीक़े से बलात्कार के मामले दर्ज हो रहे हैं वैसा क़ानून नही है.. तो मामला टिकेगा कैसे.. अनैतिक उद्देश्य से अपराध क़ायम हो गया.. तो अदालत में टिक ही नही सकता.. “
प्रदेश के वरिष्ठ अधिवक्ताओं में एक और बेहतरीन क्रिमिनल लॉयर के रुप में पहचाने जाने वाले अधिवक्ता एस के फरहान कहते हैं
“पुलिस अधिकांश मसलों में जितनी फुर्ती धारा जोड़ने में लगाती है, उतनी फुर्ती जाँच में नहीं लगाती, फिर दूषित उद्देश्य से भी मामले क़ायम होते हैं,कई मामलों का निस्तारण कोर्ट के बाहर भी होता है, ऐसे में मामले टिकेंगे कैसे.. “
जिस क्षतिपूर्ति के आँकड़े अनाचार के मामलों को लेकर कुछ ईशारा कर रहे हैं वह CRPC की धारा 357 है, जिसका 2009 में संशोधन हुआ जिसे कि अब अधिनियम संख्या पाँच की धारा 28 के तहत अंत:स्थापित किया गया,और यह CRPC की धारा 357 A के रुप में अस्तित्व में आया,इसे पीड़ित प्रतिकर योजना कहते हैं।इसके तहत पीडि़त या उसके आश्रितों को पुनर्वास के लिए राशि का निर्धारण होता है जिसे न्यायिक सेवा प्राधिकरण के तहत दिया जाता है।

Next Story