Waheeda Rehman ki yaadon ka jharokha : 'कागज का फूल' नहीं थीं वहीदा रहमान , भावों की ज़ुबानी बयां करती थी किरदार के भीतर का संसार, जो बन गया यादगार
Waheeda Rehman ki yaadon ka jharokha: मुंबई।
" चौदहवीं का चांद हो या आफ़ताब हो, जो भी हो तुम ख़ुदा की कसम लाजवाब हो..."
बड़ी-बड़ी आँखों में बड़े सलीके से मोहब्बत छुपाए, घनेरी जुल्फों के बादल हटने पर झांकती वो हल्की सी मुस्कान और वो भावों के मार्फ़त बयां होती ज़बान... क्या कहें! इस खूबसूरत गाने की पंक्तियां बेशक नायक को गानी थीं लेकिन एक-एक पंक्ति पर दर्शक टकटकी लगाकर वहीदा रहमान की खामोश अदायगी को देख रहे थे। ब्लैक एंड व्हाइट क्लासिक हिंदी मूवीज़ की लाजवाब अभिनेत्री वहीदा रहमान ने अपने हर किरदार को यादगार बना दिया फिर वो चाहे प्यासा की गुलाबो हो या गाइड की रोज़ी। तो आज वहीदा रहमान की बातें करते हैं।
वहीदा रहमान का जन्म तमिलनाडु राज्य के चेंगलपट्टू में 3 फरवरी 1938 को एक तमिल-मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता जिलाधिकारी थे और परिवार सुशिक्षित-संभ्रांत। लेकिन कहते हैं ना कि जीवन परिस्थितियों के अधीन है। अच्छा खासा हंसता खेलता परिवार 1948 में पिता की आमस्मिक मौत से आर्थिक संकट में आ गया। ऐसे में वहीदा ने फिल्मों की ओर रुख किया। पिता की मृत्यु के एक वर्ष बाद ही वहीदा ने एक तेलुगु फिल्म ‘रोजुलु मरई’ से अपना फिल्मी करियर शुरू कर दिया था।
ज़िद की पक्की थीं, भरतनाट्यम गुरु को भी मनाकर मानीं
वहीदा रहमान बड़ी जिद्दी थीं। उनकी ज़िद के आगे उनकी पहली भरतनाट्यम गुरु को भी झुकना पड़ा था। नन्हीं सी वहीदा भरतनाट्यम सीखना चाहती थीं। बस लग गईं अपनी माँ के पीछे। माँ ने पहले तो बहुत टालने की कोशिश की पर आखिर थक कर ख्यात भरतनाट्यम गुरु जयलक्ष्मी अल्वा के पास ले गईं। गुरु ने नाम पूछा। जैसे ही जाना कि बच्ची मुस्लिम है, उन्होंने तुरंत सिखाने से इंकार कर दिया। बोलीं कि चंद महीने सीखोगी और घर वालों के दबाव में छोड़ छाड़ के अपनी घरेलू ज़िन्दगी में रम जाओगी। मैं नहीं सिखाउंगी। पर वहीदा तो वहीदा थीं। लग गईं पीछे। रोज़ गुरु के दरवाज़े पर पहुंच जातीं। हारकर गुरू बोलीं कि जाओ अपनी कुंडली ले कर आओ। उसे देखने के बाद मैं अपना निर्णय बताऊंगी। अब मुस्लिम परिवार में कुंडली भला कौन बनवाता है। जब वहीदा खाली हाथ फिर पहुंच गईं तो गुरु ने खुद ही उनसे जानकारी ले कर कुंडली बनाई और पढ़ी। और जो कुछ उन्होंने समझा, वे तो खुशी से गदगद हो गईं। उनकी होने वाली छात्रा का फ्यूचर बहुत ब्राइट था। वे अपने नृत्य से देश भर में नाम कमाने वाली थीं। उन्होंने वहीदा को बुलाया, बोलीं तुम यहाँ नृत्य विधा सीखोगी। मेरा नाम रौशन करोगी। नन्ही बालिका खुश हो गई। बहुत छोटी उम्र में वे भरतनाट्यम में प्रवीण हो गईं थीं। बाद में यही नृत्य उन्हें फिल्मों में भूमिकाएं दिलाने में काम आया।
गुरुदत्त के बुलावे पर आईं मुंबई
वहीदा रहमान को हिंदी फिल्मों में पहला मौका दिया महान फिल्मकार और अभिनेता 'गुरुदत्त' साहब ने। वहीदा आंध्र प्रदेश में थीं, जब गुरु दत्त अपनी फिल्म 'मिस्टर एंड मिसेज़ 55' के वितरण के सिलसिले में हैदराबाद पहुंचे हुए थे। तब वहां किसी से उन्होंने तेलुगु फिल्म के एक गाने में बेहतरीन नृत्य करने वाली वहीदा रहमान का नाम पहले - पहल सुना। पता चला कि नृत्य इतनी खूबसूरती से किया गया है कि फिल्म पूरी होने के बाद भी दर्शकों की मांग पर गाना फिर से चलाना पड़ रहा है। गुरुदत्त काफी प्रभावित हुए। वे वहीदा से मिले और हिंदी फिल्मों में अभिनय के लिए उन्हें मुंबई बुलवा लिया। उनके कहने पर बिना ऑडीशन उन्हें ‘सीआईडी’में कास्ट किया गया।
पहली हिंदी फिल्म के निर्देशक के सामने ही रख दी शर्त
राज खोंसला सीआईडी में वहीदा को निर्देशित करने वाले थे। वहीदा ने एक इंटरव्यू में जो बताया वो उनके ही शब्दों में "मुझसे पहली फिल्म साइन करते वक्त कहा गया कि नाम बदलो क्योंकि हमें तुम्हारा नाम पसंद नहीं है'। मैंने पूछा क्यों पसंद नहीं है ? उन्होंने कहा, 'पहली बात क्योंकि यह बहुत लंबा है, और इसे कैची होना चाहिए। कुछ सेक्सी और जूसी।' मैंने कहा सेक्सी और जूसी नाम क्या हैं? उन्होंने कहा यहां ऐसे ही चलता है जैसे मधुबाला, नरगिस, मीना कुमारी... सबने अपने नाम बदले हैं। ‘मैंने कहा, 'अगर आपको मेरा नाम पसंद नहीं आया तो मुझे खेद है क्योंकि मुझे यह नाम बहुत पसंद है, जो मुझे मेरे माता-पिता ने दिया। और मैं इसी नाम से पहचाना जाना पसंद करूंगी।
गुरुदत्त के होम प्रोडक्शन में बन रही इस फिल्म के दौरान वहीदा के साथ तीन साल का कॉन्ट्रेक्ट भी किया गया था। साइन करने से पहले वहीदा ने यह शर्त जुड़वाई कि वे कपड़े अपनी मर्जी के पहनेंगी और उन्हें कोई ड्रेस ऐसी लगती है जो उनके मनमुताबिक नहीं है या रिवीलिंग है तो वे उसे नहीं पहनेंगी। और इसके लिए उन पर प्रेशर नहीं डाला जाएगा। साथ ही वे वे सैट पर अपनी माँ को लेकर आएंगी। न्यूकमर वहीदा के ये तेवर राज खोंसला को कतई बर्दाश्त नहीं थे। तीन हफ्ते तक उन्होंने वहीदा से बात नहीं की। वहीदा भी टस से मस न हुईं। आखिरकार गुरु दत्त के कहने पर राज इस शर्त के लिए भी मान ही गए।
दीं एक से बढ़कर एक फिल्में, देवानंद के साथ खूब जमी जोड़ी
वहीदा नाम का का अर्थ ही होता है 'लाजवाब' और वहीदा ने अपने नाम को बखूबी साबित किया। उन्होंने सीआईडी, गाइड, प्यासा, कागज के फूल, चौदहवी का चांद, साहिब बीवी और गुलाम, तीसरी कसम, नीलकमल, खामोशी, बीस साल बाद,प्रेम पुजारी, काला बाजार, रेशमा और शेरा आदि एक से बढ़कर एक फिल्में दीं और सुनहरे पर्दे पर छा गईं।
देवानंद के साथ वहीदा रहमान की जोड़ी को बहुत पसंद किया गया। अपनी पहली हिंदी फिल्म सीआईडी उन्होंने देवानंद के साथ ही की थी। वहीदा ने एक इंटरव्यू में कहा था "मैं सेट पर जाकर जब उन्हें गुड मॉर्निंग मिस्टर आनंद कहती तो वे इधर उधर देखने लगते और कहते तुम किसे गुड मॉर्निंग कह रही हो? मैं कहती आपको, तो कहते मैं कोई मिस्टर आनंद नहीं हूं।मुझे सिर्फ देव कहो।" उम्र और तजुर्बे में बड़े देव आनंद को देव कहने में मुझे बहुत हिचक हो रही थी। पर वे भी मेरी तरह ही जिद पकड़ कर बैठ गए। उन्होंने कहा-" मेरी फिल्म की लीडिंग लेडी मुझे साहब या मिस्टर आनंद कहेगी तो मुझे उसके साथ रोमांस करने में दिक्कत होगी। " आखिर मुझे उन्हें देव कहकर संबोधित करना ही पड़ा।
'पैक अप' सुनकर बच्ची की तरह भागती हो'- कहकर रहमान ने नहीं दिया मनचाहा रोल
ये किस्सा 'साहब बीवी और गुलाम' फिल्म का है। इस फिल्म में वहीदा' छोटी बहू' ( रहमान की पत्नी) का किरदार निभाना चाहती थीं। उन्हें स्क्रिप्ट सुनकर यही रोल दमदार लगा था। उन्होंने दिग्गज अभिनेता रहमान से जाकर बात की। रहमान हंसने लगे। बोले तुम बहू कहां से लगती हो। 'पैक अप' सुनकर एक स्कूली बच्चे की तरह ऐसे भागती हो, जैसे स्कूल की छुट्टी हो गई हो। बहू के रोल के लिए ऐसी अभिनेत्री की ज़रूरत है तो ठहरी हुई औरत का किरदार निभा सके। ऐसी शादीशुदा औरत जो अपने पति का इंतजार करती रहती है। तुम गुरूदत्त की प्रेमिका के रूप में ही फिट बैठती हो।
उस दौर में लिव-इन में रहने वाली औरत का निभाया किरदार, फिल्म बनी बड़ी हिट
गाइड फिल्म को सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ बॉलीवुड फिल्मों में से एक माना गया है। वहीदा कहती हैं कि उस दौर के नैतिकता पर फोकस रखने वाले समाज में ऐसा रोल करना कठिन था क्योंकि इसमें नायिका अपने पति को छोड़ एक युवा गाइड देवानंद के घर पर रहने लगती है। करीबियों ने कहा कि ऐसा रोल करने पर लोगों के मन में तुम्हारी इमेज खराब हो जाएगी। करियर पर भी बात आ सकती है। क्योंकि 'लिव-इन' उस दौर के हिसाब से बदचलनी का पर्याय था।
वहीदा ने यह भी बताया था कि वे इस फिल्म के लिए निर्माताओं की पसंद नहीं थीं। वहीदा के शब्दों में "उन्होंने मुझे रिजेक्ट कर दिया था। शायद उन्हें मेरा चेहरा पसंद नहीं आया था। उन्होंने यह भी कहा था कि तुम्हारी अंग्रेजी अच्छी नहीं है। " वे सायरा बानो को लेना चाहते थे। वहीदा रहमान ने कहा, “लेकिन देव साहब का कहना था, ‘मुझे फर्क नहीं पड़ता, मेरी रोजी केवल वहीदा ही है।” आखिरकार वहीदा को ही फाइनल किया गया और दोनों की जोड़ी ने पर्दे पर कमाल कर दिखाया। 1965 में रिलीज हुई फिल्म ‘गाइड’ ऑस्कर के लिए भी चुनी गई थी। वहीदा को इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला था।
गुरुदत्त से ही जुड़ गया दिल, एक ने पाया दर्द-एक ने लगाया मौत को गले
वहीदा ने हिंदी फिल्मों के अपने मैंटर गुरुदत्त के साथ बेहतरीन फिल्में दीं। एक वक्त ऐसा आया जब गुरुदत्त वहीदा के अलावा कुछ सोच ही नहीं पाते थे। फिल्म का आइडिया तो उनके बिना पूरा होता ही नहीं था। गुरु दत्त के साथ वहीदा ने प्यासा, कागज के फूल, चौदहवी का चांद, साहिब बीवी और गुलाम जैसी क्लासिक फिल्मों में काम किया।हर फिल्म के साथ दोनों की नजदीकियां भी बढ़ती रहीं।जबकि गुरुदत्त शादीशुदा थे। जब ये बात गुरु की पत्नी, एक्ट्रेस और सिंगर गीता बाली तक पहुंची तो वो बच्चों के साथ घर छोड़कर चली गईं। अपना घर टूटते देख गुरुदत्त अनमने रहने लगे। वहीदा ने सब जाना और उन्होंने गुरू दत्त से दूरियां बना लीं। वहीदा खुद को बहुत अकेला महसूस कर रही थीं।
वहीं पत्नी-बच्चों का दूर चले जाना और वहीदा का भी साथ छूट जाना गुरु दत्त से बर्दाश्त नहीं हो रहा था। बताते हैं कि वे सहयोगियों के सामने वे बार-बार जान देने की बात करते थे। शुभचिंतक उन्हें खूब समझाते लेकिन गुरुदत्त अपनी ढाई साल की बेटी से मिलने के लिए बेचैन हो रहे थे। उन्होंने बार बार पत्नी से रिक्वेस्ट की पर वे वापसी के लिए तैयार नहीं हुईं। उस दिन उन्होंने बेहद शराब पी रखी थी। नशे की हालत में अपनी पत्नी को अल्टीमेटम दिया, बेटी को भेजो वर्ना तुम मेरा मरा हुआ शरीर देखोगी।... आखिर उन्होंने यही किया। बताया गया कि उन्होंने बहुत शराब पी और फिर ढेर सारी नींद की गोलियां एक साथ खा गए, जिसे उनका शरीर नहीं झेल पाया और.... ।
क्या 'कागज़ के फूल' गुरुदत्त और वहीदा की प्रेम कहानी पर बेस्ड थी?
... कहा तो यही जाता है। कहानी ही कुछ ऐसी थी। फिल्म में निर्देशक को अपनी फिल्म की अभिनेत्री से ही प्यार हो जाता है। जबकि वे शादीशुदा हैं। अधूरा प्रेम, टूटी हुई शादी और बेटी से दूरी आखिर निर्देशक को तोड़ डालती है।... और वे आखिर में एकांत में अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे दुनिया को अलविदा कह जाते हैं। कागज के फूल को कल्ट क्लासिक फिल्म, सेल्यूलाइड पर लिखी एक कविता, जैसी अनेक उपमाओं से नवाज़ा गया जिसमें गुरुदत्त और वहीदा ने शानदार अभिनय किया था।
खामोशी में राजेश खन्ना के लिए बनी मददगार
फिल्म खामोशी वहीदा रहमान की अनफाॅरगेटेबल फिल्मों में से एक है। इस नारीप्रधान फिल्म में कोई बड़ा स्टार काम करने को तैयार नहीं था। तब वहीदा ने ही राजेश खन्ना का नाम सुझाया जो उस समय नए अभिनेता थे। वहीदा बताती हैं कि राजेश खन्ना 'वो शाम कुछ अजीब थी' गाने के शूट के दौरान बार बार बोल भूल रहे थे। इसलिए निर्देशक हेमंत उनपर झुंझलाने लगे थे। तब राजेश खन्ना ने वहीदा से कहा कि जब आप मेरे गले लगें तो गाना गुनगुना दीजिएगा। चूंकि कैमरे के सामने वहीदा की पीठ और राजेश खन्ना का चेहरा पड़ना था तो वहीदा ने उनके कहे मुताबिक गाना गुनगुना दिया, और राजेश खन्ना ने सही बोल दोहरा दिए। और राजेश खन्ना का वह शाॅट ओके हो गया। खामोशी फिल्म बहुत सराही गई। यह राजेश खन्ना के लिए फिल्म उद्योग में जमने का ज़रिया भी बनी।
'प्यासा' को टाइम पत्रिका ने दी दुनिया की 100 सर्वकालिक बेहतरीन फ़िल्मों में जगह
1957 की सुपरहिट फिल्म 'प्यासा' में वहीदा रहमान ने वेश्या 'गुलाबो' का किरदार निभाया था। वहीदा इस रोल को करने के लिए सहज नहीं थीं लेकिन गुरुदत्त के काफी इन्सिस्ट करने पर उन्होंने हामी भरी और ऐसा बेजोड़ अभिनय किया जिसे आज भी याद किया जाता है। विदेशों में भी फिल्म की स्क्रीनिंग कराई गई।टाइम पत्रिका ने दुनिया की 100 सर्वकालिक बेहतरीन फ़िल्मों में ' प्यासा' को जगह दी थी।
निजी ज़िंदगी...
गुरुदत्त से अलग होने के बाद वहीदा रहमान ने 1964 में आई फिल्म ‘शगुन’ में अपने सह-कलाकार रहे कमलजीत सिंह ( मूल नाम शशि रेखी) से शादी की थी। वे उनके साथ बंगलौर शिफ्ट हो गई थीं और कुछ समय के लिए फिल्मों से भी दूरी बना ली थी। आपको बता दें कि वहीदा रहमान निजी तौर पर वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी में खासी दिलचस्पी रखती हैं और उन्हें सेवइयां बनाना बहुत पसंद है। वे हर ईद पर सेवइयां ज़रूर बनाती हैं।
बंगलौर में रहने के दौरान उनके बच्चों बेटी काश्वी रेखी और बेटे सोहेल रेखी का जन्म हुआ। बीच में उन्होंने फिल्मों में वापसी भी की। साल 2000 में वे सपरिवार मुंबई लौट आई, जब उनके पति बीमार रहने लगे थे। यहीं पर 21 नवम्बर 2000 को कमलजीत का निधन हुआ और वहीदा अकेली रह गईं। वे रंग दे बसंती, देल्ही 6 जैसी फिल्मों में भी नजर आईं। वहीदा को फिल्म फेयर और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के अलावा पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे सम्मानों से नवाज़ा गया।