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Sharmila Tagore Ki Kahani: बेखौफ-बिंदास शर्मिला टैगोर की यादगाग फिल्मी और असल जीवन की कहानी, पढ़िए बाॅलीवुड की पहली बिकनी गर्ल भी कैसे डर गईं सास से...

Sharmila Tagore Ki Kahani: बेखौफ-बिंदास शर्मिला टैगोर की यादगाग फिल्मी और असल जीवन की कहानी, पढ़िए बाॅलीवुड की पहली बिकनी गर्ल भी कैसे डर गईं सास से...
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By Divya Singh

Sharmila Tagore Ki Kahani : पहली दफ़ा जब वे बाॅलीवुड के सुनहरे पर्दे पर उतरीं तो ऐसा लगा कि वाकई कश्मीर की कोई ताज़ा अधकुली कली डल झील के शिकारे पर सजी हुई है। वो नज़ाकत और वो नायाब सौंदर्य, दूध सी रंगत, मृगनयनी सी बड़ी -बड़ी बोलती आँखें और गालों के गहरे गड्ढे... दर्शक मंत्रमुग्ध हो उस ताज़गी को निहारते ही रह गए। 70-80 के दशक में शर्मिला ने एक से एक फिल्में दीं और छा गईं।शर्मिला बहुत बिंदास भी थीं। बिकनी पहन पर्दे पर आने वाली बाॅलीवुड की पहली अभिनेत्री भी वहीं थी लेकिन इसी बिंदास बाला ने भावी सास से पहली मुलाकात से पहले मुंबई की सड़कों से छोटे कपड़ों वाले अपने सारे पोस्टर रातों-रात हटवा दिए थे। क्योंकि नवाब पटौदी को गंवाना उन्हें कुबूल न था और सास को ख़फ़ा कर देने का रिस्क भी वे नहीं ले सकती थीं। आगे चलकर नवाब खानदान की इस बहू ने जिस ग्रेस और परिपक्वता का परिचय दिया,वह रिमार्केबल है,सम्मान पैदा करता है।

पढ़ाई से कतराती थीं,माँ ने दिलवाई नई राह चुनने की आज़ादी

शर्मिला टैगोर का जन्म एक हिंदू बंगाली परिवार में 8 दिसम्बर 1944 को कानपुर में हुआ। वे दूर के रिश्ते में रविंद्र नाथ टैगोर की परपोती लगती हैं। बचपन के कुछेक साल उन्होंने कोलकाता में बिताए भी। निजी तौर पर किताबें, पढ़ाई और स्कूल, इनसे शर्मिला को दो गज की दूरी ही भली लगती थी। उम्र के उस दौर में उन्हें तो बस सजना-संवरना, बाहर घूमना और गाने सुनते रहना ही पसंद था। माँ इरा बरुआ उनके तौर तरीकों से घबरा जाती थीं और सोचती थीं कि बेटी का क्या होगा। सिर्फ चूल्हे-चौके में लगकर बाकी की उम्र काटनी न पड़ जाए। पर शर्मिला की किस्मत में तो बहुत ऊंची उड़ान लिखी थी। बस ज़िंदगी की किताब के वे पन्ने खुलने बाकी थे।

शर्मिला ने जब उम्र के तेरहवें पायदान पर कदम रखा तब सितारों की दिशा अचानक से बदल गई। महान फिल्मकार सत्यजीत रे, जो उनके पिता गितिन्द्रनाथ टैगोर के परिचित थे, को शर्मिला के व्यवहार, हाव-भाव और सौंदर्य में छुपी अभिनेत्री की झलक मिल गई। और मात्र 13 साल की उम्र में उन्हें पहली फिल्म का ऑफर भी मिल गया। यह अरूप संसार नाम की एक बंगाली फिल्म थी।

शर्मिला के पिता को तो यह ऑफर बिल्कुल भी नहीं रुचा। क्योंकि उस दौर में यह ग्लैमर वर्ल्ड आम भारतीय परिवारों को, खासकर लड़कियों के लिए बिल्कुल भी मुफ़ीद नहीं लगता था। सुनते हैं कि वे इस मुद्दे पर बात भी नहीं करना चाहते थे। पर अपनी बेटी के भविष्य को लेकर परेशान माँ को लगा कि उनकी बेटी के लिए एक नई राह खुद चलकर उनके घर तक आई है। माँ ने बार- बार, कई तरीके से शर्मिला के पिताजी को समझाया और आखिर उन्होंने 'हाँ' कह ही दिया। बस फिर क्या था, शायद पहला कदम बढ़ाने भर का ही इंतज़ार नियति को था, आगे का सफ़र बहुत रोमांचक होगा, ये पहले से तय था।

बंगाली बाला शर्मिला बन गईं 'कश्मीर की कली'

बाॅलीवुड में शर्मिला ने शक्ति सामंत की फिल्म 'कश्मीर की कली' के साथ एंट्री की। इस फिल्म में उन्होंने शम्मी कपूर के साथ काम किया। फिल्म बहुत हिट हुई। बड़े-बड़े प्रोड्यूसर-डायरेक्टर भी इस नई-नवेली अदाकारा के अभिनय और सौंदर्य के कायल हो गए। उनके ताज़गी भरे सौंदर्य के साथ हिंदी भाषियों के लिए उनका थोड़ा अलग सा बंगाली लहजा भी नया अनुभव था जो उनपर बहुत सूट भी करता था। अभिनय भी दिन पर दिन मंजता जा रहा था और शर्मिला का स्टारडम मजबूत होता जा रहा था।

बाॅलीवुड के पर्दे की पहली बिकिनी बाला बनीं शर्मिला

शर्मिला तो जैसे हीरोइन बनने के लिए ही जन्मी थीं। संकोच-डर-बातें बनाए जाना, इन सबका उनपर ज़रा भी प्रभाव नहीं पड़ता था। उनको जो करना था, वे करती थीं। वे पहली भारतीय अभिनेत्री थीं तो बिकिनी पहनकर बड़े पर्दे पर आईं। 1967 की फिल्म ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ में पहली बार उनका बिकिनी अवतार नज़र आया और इस दौरान उनका काॅन्फिडेंस, उनका एटीट्यूड शानदार था। उन्होंने फिल्म फेयर मैग्ज़ीन के लिए बिकिनी में फोटो शूट भी कराया जो उन्हें रातोंरात सुर्खियों में ले आया। हिंदी सिनेमा, समाज और सत्ताधारियों में खलबली मच गई। संस्कृति को विकृत करने के आरोप लगे। संसद तक मामला गया। पर शर्मिला बेफिक्र और बेखौफ थीं। उनका माइंड सैट अलग ही था।

नवाब पटौदी को उन्हें पाने के लिए लगाना पड़ा एड़ी-चोटी का ज़ोर

मंसूर अली खान पटौदी जिन्हें नवाब पटौदी के नाम से जाना जाता था, शर्मिला को देखते ही उन्हें दिल दे बैठे थे। वे उस दौर में क्रिकेट जगत की विराट शख्सियत थे। साथ ही उनके नाम के साथ नवाब खानदान का रुआब भी जुड़ा था। इसके बावजूद शर्मिला का प्यार पाना उनके लिए आसान नहीं रहा। शर्मिला को आकर्षित करने के लिए उन्होंने एड़ी-चोटी का जोर लगाया। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो वे रोज़ शर्मिला के घर तोहफ़ा पहुंचवाते थे। यहां तक कि उन्होंने शर्मिला को रेफ्रिजरेटर भी गिफ्ट किया। जो उस दौर में खासा महंगा आइटम हुआ करता था। तब भी शर्मिला नहीं पिघलीं। संभव है कि सिमी ग्रेवाल के साथ नवाब पटौदी के इश्क के रह चुके चर्चे उन्हें रोक रहे हों लेकिन आखिर में नवाब पटौदी की कोशिशें रंग लाईं। दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगीं। आखिर उन्होंने शर्मिला को पेरिस के एक होटल में सरेआम प्रपोज़ किया और शर्मिला मान गयीं।

बेखौफ शर्मिला भी सास से खा रही थीं खौफ

नवाब और शर्मिला की रिश्ता दिन पर दिन प्रगाढ़ हो रहा था। बात शादी तक पहुंच चुकी थी। मंसूर अली की मां रिश्ते पर आखिरी मुहर लगाने से पहले शर्मिला से मिलना चाहती थीं। उनसे मिलने के लिए वे मुंबई आ रही थीं। जब शर्मिला को यह बात पता चली तो उनके होश उड़ गए। वजह भी जायज़ थी। कम कपड़ों में शर्मिला के फिल्मी पोस्टर शहर भर में लगे हुए थे। शर्मिला अब तक नवाब से बेहद मोहब्बत करने लगी थीं। वे डर गईं कि उनकी माँ ने कहीं ये पोस्टर देख लिए तो वे शादी के लिए हामी नहीं भरेंगी। उन्होंने प्रोड्यूसर से कहा कि शहर में लगे सभी पोस्टर को हटवा दिया जाए। और सच ही रातों-रात सारे पोस्टर हटा दिए गए । शर्मिला और उनकी भावी सास की मुलाकात काफी अच्छी रही। और आखिरकार शर्मिला और मंसूर अली 28 दिसंबर 1968 को शादी के बंधन में बंध गए। शादी के लिए उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन भी किया। उन्हें आयशा सुल्तान नाम दिया गया। लेकिन परिवार और बाहर उन्हें शर्मिला के नाम से ही पुकारा जाता रहा।

फिल्मी सफर भी रहा शानदार,

शर्मिला का फिल्मी सफर भी उनकी ज़िन्दगी की ही तरह शानदार रहा। उन्होंने कश्मीर की कली, सत्यकाम, अराधना, वक्त, अनुपमा, दाग, सफ़र, एन ईवनिंग इन पेरिस, अविष्कार, चुपके-चुपके, मौसम जैसी यादगार फिल्में की। अपनी हर फिल्म और हर किरदार में जान फूंकने के लिए उन्होंने बेहद मेहनत की। उनकी मेहनत रंग भी लाई और आजतक उनके द्वारा अभिनीत भूमिकाओं को याद किया जाता है।

राजेश खन्ना के साथ दीं एक के बाद एक हिट, फिर अचानक छोड़ा साथ काम करना

उस दौर के सुपर स्टार राजेश खन्ना के साथ उनकी जोड़ी बहुत ज्यादा पसंद की गई। दोनों ने साथ में एक से बढ़कर एक हिट फिल्में दीं। अराधना, दाग, सफर, अमर प्रेम जैसी उन दोनों की फिल्में वाकई अमर हो गईं। लेकिन अपने बेखौफ चरित्र के अनुरूप शर्मिला ने फिर एक बार चौंकाया। जब दोनों की फिल्में बाॅक्स ऑफिस पर तहलका मचा रही थीं, तभी उन्होंने राजेश खन्ना के साथ काम करना छोड़ दिया। वे राजेश खन्ना के सैट पर लेट पहुंचने की आदत से इस हद तक परेशान हो चुकी थीं कि उन्हें यह कठिन फैसला लेने में ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं हुई। लोगों ने जब यह बात सुनी तो उनके लिए इसे पचा पाना बेहद मुश्किल था। कई नज़दीकी लोगों ने उन्हें समझाया भी, पर वे टस में मस न हुईं।

आज भी नहीं तोड़ा है फिल्मों से नाता

अपनी शादीशुदा ज़िंदगी,सैफ, सबा और सोहा अली खान जैसे तीन प्यारे बच्चों की परवरिश के बीच भी शर्मिला ने एक्टिंग नहीं छोड़ी। शर्मिला के पति मंसूर अली खान पटौदी की सितंबर 2011 में मृत्यु हो गई और वे अकेली हो गईं। लेकिन उन्होंने जिस गांभीर्य के साथ अपने परिवार को संभाला, वह उदाहरण योग्य है। उन्होंने भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। अनेक फिल्म फेयर, नेशनल अवॉर्ड समेत पद्म भूषण पुरस्कार से भी वे नवाज़ी गईं। इसी साल ओटीटी पर मनोज बाजपेयी के साथ उनकी फिल्म गुलमोहर भी रिलीज़ हुई है, जिसमें एक बार फिर उन्होंने अपने अभिनय से गहरी छाप छोड़ी है।

Divya Singh

दिव्या सिंह। समाजशास्त्र में एमफिल करने के बाद दैनिक भास्कर पत्रकारिता अकादमी, भोपाल से पत्रकारिता की शिक्षा ग्रहण की। दैनिक भास्कर एवं जनसत्ता के साथ विभिन्न प्रकाशन संस्थानों में कार्य का अनुभव। देश के कई समाचार पत्रों में स्वतंत्र लेखन। कहानी और कविताएं लिखने का शौक है। विगत डेढ़ साल से NPG न्यूज में कार्यरत।

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