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सवाल जायज़ है: अपनी बेटी की उम्र की सबा के साथ घूमने के लिए ऋतिक रौशन "आज़ाद" फिर अर्सलान को सराहने पर सुज़ैन "पागल औरत" क्यों?

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सवाल जायज़ है: अपनी बेटी की उम्र की सबा के साथ घूमने के लिए ऋतिक रौशन आज़ाद फिर अर्सलान को सराहने पर सुज़ैन पागल औरत क्यों?
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By NPG News

मुंबई I कल 19 दिसंबर को अपने नए पार्टनर अर्सलान गोनी के बर्थडे पर ऋतिक की 'एक्स वाइफ' सुज़ैन ने एक प्यार भरा मैसेज क्या कर दिया, लोगों की पेट में मरोड़ होने लगी। एक ट्रोलर ने तो उन्हें ऐसी 'पागल औरत' तक कह दिया जो 'ऋतिक सर' जैसी शख्सियत को छोड़कर अर्सलान जैसे 'नल्ले' के साथ इश्क फरमा रही है। बताइए भला,हमें तो पता ही नहीं है कि इनलोगों ने ऋतिक के घर में हिडन कैमरा लगा रखे हैं, आखिर तभी तो इन्हें पता चला होगा कि महान अभिनेता,हैंडसम हंक, तथाकथित ग्रीक गाॅड कितने अच्छे पति थे और इस अहसान फ़रामोश, कमअक्ल, पागल औरत ने यू हीं उन्हें छोड़ दिया। उसे तो ऋतिक को 'वर' के रूप में पाकर धन्य-धन्य होना चाहिए था। पर नहीं ! उन्हें छोड़ वह तो उस अर्सलान के साथ हंसते-खिलखिलाते, फोटो शेयर करने लगी जो ऋतिक 'सर' की तरफ सिर उठाकर देखने लायक भी नहीं है। हाय री पागल औरत!

असल में सुज़ैन पढ़-लिख गई,कमाने-खाने लगी तो भूल गई कि ये भारत है। यहाँ डोली में आना और अर्थी में पति के घर से विदा लेना ही औरत का सौभाग्य है। यहाँ औरत तलाक लेने की हिमाकत करे,ये लोगों को ना - काबिले बर्दाश्त है। और तलाक भी किस से! ऋतिक सर से!... पागल औरत!

हमारे पुरुष प्रधान समाज ने हर औरत के लिए मानदंडों का एक घेरा बना कर रखा है। उस घेरे में ही स्वर्ग ढूंढना उनके जीवन का मकसद होना चाहिए। वे पति - बच्चों,परिवार की ज़रूरतें पूरी करें,अपने सद्कर्मों से उनका मान बढाएं, यही उनकी ज़िम्मेदारी है। इससे बाहर उन्हें सोचना ही नहीं चाहिए। आखिर क्या होते हैं ये अपने सपने? अपनी खुशियां? शादीशुदा औरत को तो इन फालतू चीज़ों के बारे में सोचना ही नहीं चाहिए। उन्हें बस संतुष्ट नज़र आना चाहिए। उन्हें जो भी मिला, जैसा भी मिला, वही उनकी नियति थी। अब उसके आगे अपने लिए कुछ अधिक चाहने की उन्हें ज़रूरत ही नहीं है।

एक ट्रोलर ने लिखा है - "ऐसा इसने कभी ऋतिक के लिए भी फील किया था? अभी कभी किसी तीसरे को भी 'हाँ.' बोलेगी ।"

हाँ जी, बोलेगी, तीसरे. चौथे, पांचवें, छंठवें... जितनों को चाहेगी, हाँ बोलेगी। ये उसकी ज़िंदगी है। उसके निर्णय हैं। खुशी मिलेगी तो ठीक, दुख मिले तो उसकी किस्मत। तुम्हारा कांधा मांगने कम से कम तुम्हारे दरवाज़े पर तो नहीं ही आएगी।

यही होता है हमारे यहाँ। एक तलाकशुदा औरत दोबारा अपनी ज़िन्दगी में रंग भरने की कोशिश करे तो लोगों को कब्ज़ होने लगती है। उनके हिसाब से तो तलाकशुदा औरत का चेहरा निस्तेज होना चाहिए। एकदम दुखी, जीवन से निराश, पति से अलग होने की महाभूल करने के बाद ज़िंदगी को ढोती हुई, सिर पीटती हुई औरत ही उन्हें पचती, आखिर तब वे कह पाते कि पुरुष को छोड़ने का नतीजा देखो, ऐसा होता है।

आखिर ये क्या बात हुई कि चार दिन हुए नहीं और सुज़ैन दूसरे के साथ गलबैया करने लगी। हाँ ऋतिक सर अगर अपनी बेटी की उम्र की गर्लफ्रेंड के साथ घूमें तो कोई हर्ज नहीं... आखिर पुरुष कब तक अकेला रह सकता है! सारी माॅरल पुलिसिंग औरत के लिए ही तो है। पुरुष के विशेषाधिकार तो स्वयं ईश्वर ने उनके जन्म के समय ही लिखित में उसके साथ भेजे हैं।

अर्सलान और सुज़ैन अगर शादी करते हैं तब अर्सलान कैसे पति साबित होंगे, ये बाद की बात है। फिलहाल जो हैप्पी बर्थडे नोट सुज़ैन ने अर्सलान के लिए लिखा है, एक बार उसे पढ़ कर देखिए-

"मेरे प्यार को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं। मैं जानती हूं तुम एक बहुत ज्यादा अविश्वसनीय इंसान हो। तुम मुझे एक बेहतर इंसान बनाना चाहते हो, उन सब में जो मैं करती हूं। तुम मेरे प्यार की परिभाषा हो। अभी से लेकर अंत तक और उससे भी आगे हम इसे अपनी लाइफ बनाने जा रहे हैं।"

...." तुम मुझे एक बेहतर इंसान बनाना चाहते हो, उन सब में जो मैं करती हूं। " इसका आशय...? अर्सलान ने निश्चय ही सुज़ैन को प्रोत्साहित किया है, उन्हें उनकी खूबियों से परिचित कराया है,और साथ ही और प्रोग्रेस करने के लिए मानसिक रूप से हौसला दिया है। शायद उन्होंने सुज़ैन को खुद के लिए बेहतर महसूस कराया है।

एक औरत अपने पति का स्वाभाविक रूप से सम्मान करती है, लेकिन वह अपने पति की आँखों में भी अपने लिए सम्मान देखना चाहती है। फिर चाहे वह लाखों-करोड़ों कमाती हो या एक गृहणी हो और दिन-रात अपनों की सेवा में लगी रहती हो। उसे अपने हिस्से की कद्र, अपने हिस्से का सम्मान चाहिए। हो सकता है सुज़ैन को ये अहसास देने में ऋतिक चूक गए हों।

तलाक असल में कोई भी पति-पत्नी यूं ही नहीं लेते। ये एक बहुत ही दर्दभरा अनुभव है। रिश्ते के अंतिम बिंदु पर पहुंच उस रेखा को पार करने के लिए बहुत कठोर होना पड़ता है। दो इंसान अलग हो सकते हैं लेकिन स्मृतियां नहीं मिटतीं। वे कचोटती रहती हैं। स्त्री हो या पुरुष, दोनों के लिए इस प्रक्रिया से गुज़रना तकलीफ़देह है। फिर भी जब ज़िंदगी उन्हें इस मुकाम पर ले ही आई है तो जितनी आज़ादी पुरुष को दोबारा सैटल होने के लिए मिलती है उतनी ही औरत को भी मिलनी चाहिए।

साथी से अलग होने पर महिलाएं किस तरह का जीवन जीना चाहती हैं, यह महिलाओं को ही तय करने दें। अपने कमेंट्स से उन्हें तोड़ने की कोशिश न करें। और जान लीजिए कि आप ये भद्दी कोशिशें करके उन्हें तोड़ भी नहीं सकते क्योंकि आखिर वे टूटते-टूटते ही तो मजबूत होने के लिए मजबूर हुई हैं।

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