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Nootan Ki Yadon Ka Jharokha : बिना संवाद भी दर्शकों को झकझोर देती थीं नूतन, अद्भुत अभिनय क्षमता से जिये कालजयी किरदार...

Nootan Ki Yadon Ka Jharokha : बिना संवाद भी दर्शकों को झकझोर देती थीं नूतन, अद्भुत अभिनय क्षमता से जिये कालजयी किरदार...
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By Divya Singh

दिव्या सिंह

Nootan Ki Yadon ka jharokha : मुंबई I फिल्म बंदिनी का एक दृश्य है... बाहर कहीं लोहा पीटा जा रहा है और उसकी चोट जैसे विचारमग्न कल्याणी (नूतन) के दिलोदिमाग पर पड़ रही है। तभी उसे उसी हाॅस्पिटल में एडमिट एक बीमार स्त्री के लिए चाय बनाकर ले जाने को कहा जाता है। जो कभी उसके ही प्रेमी रह चुके शख्स की पत्नी है। कल्याणी छोटे से स्टोव को तेजी से पंप कर चाय चढ़ाती है। भभकती आग के पार नूतन के चेहरे पर आते-जाते भाव देखने लायक हैं। आखिर वह चाय में ज़हर मिला देने का निर्णय कर ही लेती है... सीन में बिना एक भी शब्द कहे नूतन खामोशी से अंतस में उमड़ते ज्वार को कैमरे पर दिखा जाती हैं। अभिनय की यह संजीदगी नूतन को बाकियों से अलग करती थी। स्थिर आवाज़, चेहरे की सादगी और आँखों से भावों का जीवंत प्रस्तुतिकरण... यही कुछ तो था जो नूतन के साथ उनके निभाए किरदारों को भी कालजयी कर गया।... तो आज बात गुज़रे जमाने की प्रख्यात अभिनेत्री नूतन की।

नूतन अपने ही बीच की एक सामान्य लड़की लगती थीं लेकिन असल में वे एक ख्यातिलब्ध परिवार की बेटी थीं। नूतन का जन्म 4 जून 1936 को एक मराठी परिवार में निर्देशक - लेखक कुमारसेन समर्थ और चर्चित अभिनेत्री शोभना समर्थ के यहाँ हुआ था। नूतन ने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल, पंचगनी से पूरी की। उनकी माँ शोभना आगे चलकर फिल्म निर्माण में सक्रिय हुईं और 'हमारी बेटी' नाम से फिल्म बनाई। इसी फिल्म के साथ नूतन के करियर की शुरुआत मात्र 14 साल की उम्र में हो गई।

० प्रारंभिक फिल्में नहीं कर सकीं कमाल, माँ ने भेजा विदेश

नूतन की शुरुआती फिल्में माँ की उम्मीदों के मुताबिक कमाल न कर सकीं। शोभना को लगा कि अभी नूतन में परिपक्वता की कमी है। उन्हें और मांजने और निखारने की ज़रूरत है। तब उन्होंने नूतन को स्विट्जरलैंड भेज दिया। एक इंटरव्यू में नूतन ने कहा था कि स्विट्जरलैंड में बिताया गया समय उनके जीवन का सबसे सुखद समय था।

माँ की तीक्ष्ण नज़र बेटी में आ रहे बदलावों पर थी। जैसे ही उन्हें लगा कि अब नूतन

फिल्मों में अपनी छाप छोड़ने के लिए तैयार हैं, उन्होंने नूतन के कदम वापस फिल्मों की ओर मोड़ दिए। 1957 में आई फिल्म 'सीमा' से नूतन का असल फिल्मी सफ़र शुरू हुआ जब दर्शक उनके अभिनय के कायल हो गए। इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पहला फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला। आगे का दौर नूतन का था।

० करियर चरम पर था, तभी की नौसेना अफसर से शादी

जिस वक्त नूतन के नाम के डंके बज रहे थे, उसी वक्त उन्होंने साल 1959 में लेफ्टिनेंट कमांडर रजनीश बहल से शादी की और नूतन समर्थ से नूतन बहल बन गईं। उनके पति कभी उनके करियर में आड़े नहीं आए। बल्कि उन्होंने नूतन को अपनी मर्ज़ी से अपना जीवन जीने की आज़ादी दी। 'दिल्ली का ठग' फिल्म में वे स्विम सूट में भी नज़र आईं। जिसपर उनके पति ने आपत्ति नहीं की। फैंस ने उन्हें काफी पसंद भी किया ।रजनीश ने नूतन को गन चलाना भी सिखाया। वे उन्हें अपने साथ शिकार पर ले जाते थे (जिस पर उस समय प्रतिबंध नहीं था)। वे रेस देखने के शौकीन थे और उनकी संगत में नूतन भी रेस देखने की दीवानी हो गई थीं।

० जब महान अभिनेता संजीव कुमार को जड़ा चांटा

एक वक्त ऐसा भी आया जब अपने दौर के माने हुए कलाकार संजीव कुमार के साथ नूतन का नाम जोड़ा जाने लगा। दोनों के बीच कुछ चलने को लेकर बातें बनने लगीं। एक फिल्म की शूटिंग के दौरान अचानक नूतन ने संजीव कुमार को भीड़ से अलग काॅर्नर में बुलाया और एक झन्नाटेदार तमाचा जड़ दिया। खबरें फैलते देर नहीं लगी। बाद में इस बारे में सवाल के जवाब में उन्होंने कहा "दुनिया तो बातें करती है लेकिन संजीव ने अफेयर के बारे में बहुत लापरवाह, गैर-ज़िम्मेदाराना बयान दिया और यही मुझे बर्दाश्त नहीं हुआ।"

पैसा बना विवाद की वजह, किया माँ पर केस

सच ही कहते हैं पैसा बहुत बुरी चीज़ है। पैसा ज़रूरत भी है। उसी से बरकत है और वही रिश्तों का बदसूरत चेहरा भी दिखा देता है। जब नूतन को अहसास हुआ कि उनकी माँ उनके पैसों का गलत इस्तेमाल कर रही हैं और उनके अपने परिवार को भविष्य में इसका नुकसान उठाना पड़ेगा तो वे काफी निराश हुईं। उन्होंने माँ से खुलकर बात की। दोनों के बीच काफी अनबन भी हुई। लाख समझाने पर भी जब उनकी माँ के बर्ताव में फर्क नहीं आया तो नूतन को उनपर केस करना पड़ा। वे काफ़ी शर्मिंदा भी हुईं कि उन्हें उनका जीवन और करियर संवारने वाली माँ के खिलाफ कोर्ट जाना पड़ रहा है, पर अब उनकी भी आँखों में अपने बेटे 'मोहनीश बहल' की ज़िंदगी संवारने का सपना था।

० शानदार रहा फिल्मी करियर, गाने आज भी गुनगुनाए जाते हैं

सीमा, पेइंग गेस्ट, बंदिनी, मिलन, अनाड़ी, सुजाता, छलिया, सरस्वती चंद्र, तेरे घर के सामने, देवी, मैं तुलसी तेरे आंगन की, मंजिल, कर्मा.... और भी न जाने कितनी ही एक से बढ़कर एक फिल्में नूतन के अभिनय से जगमगाईं। 4 दशक से अधिक के करियर में नूतन ने अपार सफलता पाई। देव आनंद के साथ उनकी जोड़ी बहुत पसंद की गई। उन्होंने एक टीवी शो 'मुजरिम हाज़िर' में कालीगंज की बहू का शानदार किरदार भी निभाया।

वहीं उन पर अनेक यादगार गीत फिल्माए गए। मोरा गोरा रंग लई ले, मैं तो भूल चली बाबुल का देस, फूल तुम्हें भेजा है ख़त में, सावन का महीना पवन करे शोर, तुम अगर साथ देने का वादा करो, ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आजा, राम करे ऐसा हो जाए.... कितने ही गाने गिनाएं, पढ़ कर ही स्मृति ताज़ा हो जाती है। दिल में नूतन के यादगार अभिनय से उपजी खुशी की एक लहर दौड़ जाती है।

०... जाने से पहले देखा 'मैंने प्यार किया' से बेटे को सैटल होते

नूतन कैंसर की गिरफ्त में थीं। हर माँ की तरह उनके मन में भी अपनी संतान का करियर संवरते देखने की इच्छा थी और आखिर ऐसा हुआ भी। उनकी मृत्यु से पहले सलमान खान की मुख्य भूमिका वाली 'मैंने प्यार किया' रिलीज़ भी हुई और सुपर डुपर हिट भी। मोहनीश ने फिल्म में सलमान के बड़े भाई का किरदार निभाया था और उनके अभिनय को बहुत सराहा गया था।

सरकार ने जारी किया डाक टिकट,

21 फरवरी 1991 को ब्रेस्ट कैंसर के कारण नूतन की मृत्यु हो गई। उनके यादगार फिल्मी सफ़र के प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हुए भारत सरकार ने 2011 में उनकी तस्वीर वाला एक डाक टिकट जारी किया। प्रसिद्ध मराठी लेखिका ललिता तम्हाणे ने नूतन के जीवन पर एक किताब 'आसन मी नसेन मी' लिखी है। उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए 5 फिल्मफेयर पुरस्कार जीते। पद्म पुरस्कार भी जीता। बेहद प्रतिभाशाली, दिवंगत अभिनेत्री को हमारा नमन...

Divya Singh

दिव्या सिंह। समाजशास्त्र में एमफिल करने के बाद दैनिक भास्कर पत्रकारिता अकादमी, भोपाल से पत्रकारिता की शिक्षा ग्रहण की। दैनिक भास्कर एवं जनसत्ता के साथ विभिन्न प्रकाशन संस्थानों में कार्य का अनुभव। देश के कई समाचार पत्रों में स्वतंत्र लेखन। कहानी और कविताएं लिखने का शौक है। विगत डेढ़ साल से NPG न्यूज में कार्यरत।

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