Movie Review-सलाम वेंकी: मौत की मनमानी के बीच छोटी-सी अर्थपूर्ण ज़िन्दगी को जी लेने की नायाब कहानी
सलाम वैंकी
कलाकार
काजोल , विशाल जेठवा , राहुल बोस , अहाना कुमरा , प्रकाश राज , राजीव खंडेलवाल और आमिर खान
लेखक
समीर अरोड़ा और कौसर मुनीर
निर्देशक
रेवती
निर्माता
सूरज सिंह , श्रद्धा अग्रवाल और वर्षा कुकरेजा
रिलीज डेट
9 दिसंबर 2022
मुंबई। आप काजोल की फिल्म देखने जा रहे हैं तो ही स्पष्ट है कि आप उम्दा अदाकारी देखना चाहते हैं, सिर्फ पैसा वसूल मसाला मूवी नहीं। और सच मानिए, वे आपकी उम्मीद पर सौ फीसदी खरी उतरने वाली हैं क्योंकि वे आपको प्रभावित तो करेंगी ही, रुला भी देंगी। और उनका पूरा साथ दिया है युवा कलाकार विशाल जेठवा ने। कोर्ट में वीडियो काॅल के एक दृश्य में तो वे आपको स्पीच लैस कर जाते हैं। फिल्म देखकर क्या कहियेगा... "बस कमाल"
बात हो रही है फिल्म "सलाम वैंकी" की। जिसमें मौत एक जवान बेटे को उसकी माँ से छीने ले जा रही है। पर माँ याचना की मुद्रा में नहीं है। भीतर से टूटती माँ को संबल दे रही है बाहर की स्ट्रांग माँ, जो नहीं चाहती कि उसका बेटा जंग में हारे हुए खिलाड़ी की तरह दुनिया से रुखसत हो। मौत पर वश नहीं, न सही, आत्मबल कमज़ोर नहीं पड़ना चाहिए।
कहानी
मांसपेशियों की एक जटिल बीमारी 'डीएमडी' से काजोल का बेटा वैंकटेश यानी वैंकी जूझ रहा है। जीवन से लंबे संघर्ष के बाद बेटा माँ से इच्छा मृत्यु के लिए अर्जी दाखिल करवाता है। वेंकी चाहता है कि उसकी मौत के बाद बॉडी के सारे ऑर्गेन जरूरतमंदों को डोनेट कर दिए जाएं लेकिन हमारे देश का कानून इसकी इजाजत नहीं देता है। वैंकी की मां उसकी अंतिम इच्छा पूरी कर पाएगी या नहीं और इस प्रयास में उसकी मां को किन - किन मुश्किलों से गुजरना पड़ता है , यह आपको पिक्चर देखने पर पता चलेगा।
एक्टिंग
काजोल और विशाल जेठवा... माँ-बेटे की इस जोड़ी ने कमाल का अभिनय किया है। काजोल तो पहले ही अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाती आईं हैं लेकिन विशाल ने करियर के शुरुआती दौर में अपने अभिनय से दर्शकों को हैरान कर दिया है। एकाध सीन में कुछ कमी रह जाती है लेकिन उसके लिए शिकायत करना ज़्यादती ही कहा जाएगा। अपने किरदार में काजोल ने जान फूंक दी है। कभी टूटती-कभी संभलती माँ, बेटे की शक्ति माँ, बेटे की आखिरी ख्वाहिश पूरी करने कोर्ट कचहरी, नियमों से जूझती माँ, हर फ्रेम में वे परफैक्ट हैं। डाॅक्टर के रोल में राजीव खंडेलवाल, पत्रकार के किरदार में आहना, वकील के रोल में राहुल बोस ने शानदार काम किया है। प्रकाश राज भी खूब जमे हैं और आमिर खान का कैमियो तो आप को एक बार फिर आपको उनका कायल कर देगा।
निर्देशन
फिल्म 2005 में पब्लिश हुई श्रीकांत मूर्ति की नॉवेल 'द लास्ट हुर्रे' पर आधारित है। रेवती ने निर्देशन में कमाल की वापसी की है। करीब 14 साल बाद उन्होंने ऐसे इमोशनल टाॅपिक पर फिल्म का ऐसा कमाल का निर्देशन किया है जिसमेंआँसू रोकने की गुंजाइश ही नहीं है। उत्तर भारत के दर्शक के नेचर को समझने की कमी कहीं खटक सकती है लेकिन फिल्म के लाजवाब फ्लो में आप उसे भूल जाते हैं।
टेक्निकल पक्ष
सिनेमैटोग्राफर रवि वर्मन ने हर लोकेशन को कैमरे पर शानदार तरीके से दिखाया है। मनन सागर की एडिटिंग अच्छी है। गीत-संगीत ऐवरेज़ हैं।
माँ-बेटे की ज़बरदस्त बाॅन्डिंग, भावनाओं का ज्वार, मौत की मनमानी के बीच छोटी सी अर्थपूर्ण ज़िंदगी को जी लेने की नायाब कहानी 'सलाम वैंकी' एक बार आपको ज़रूर देखनी चाहिए। मन को संतुष्ट करने वाला ऐसा जानदार अभिनय आपको लंबे समय तक याद रहेगा।