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Amjad Khan Death Anniversary: कितने नहीं सिर्फ एक ही आदमी था जो 'गब्बर' हो सकता था,वो थे अमज़द खान, किस्मत से मिली शोले से कैसे चमकी किस्मत, पढ़िए खास किस्से और अनोखी लव स्टोरी...

Amjad Khan Death Anniversary: कितने नहीं सिर्फ एक ही आदमी था जो 'गब्बर' हो सकता था,वो थे अमज़द खान, किस्मत से मिली शोले से कैसे चमकी किस्मत, पढ़िए खास किस्से और अनोखी लव स्टोरी

Amjad Khan Death Anniversary: कितने नहीं सिर्फ एक ही आदमी था जो गब्बर हो सकता था,वो थे अमज़द खान, किस्मत से मिली शोले से कैसे चमकी किस्मत, पढ़िए खास किस्से और अनोखी लव स्टोरी...
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Amjad Khan Death

By Divya Singh

Amjad Khan Death Anniversary: मुंबई। आज बाॅलीवुड तीन खान सितारों की बात करते नहीं थकता लेकिन एक खान कलाकार ऐसा भी था जिसकी आवाज़ सुन कर 'पचास-पचास कोस दूर गांवों के रोते हुए बच्चे दहशत में चुप हो जाते थे कि गब्बर आ जाएगा'... जी हां गब्बर यानि 'अमज़द खान साहब'। अमज़द खान ने शोले को ही नहीं, खलनायकी को भी अमर कर दिया। उन्होंने जिस अंदाज़ में अपने डायलॉग बोले, वो तरीका एकदम हटकर था इसलिये डट कर हिट हुआ था। उनकी दिली तमन्ना थी कि उनके पिता यह फिल्म देखते, अलबत्ता यह ख्वाहिश अधूरी ही रही। इस ज़िदादिल अभिनेता अमज़द खान की पुण्यतिथि 27 जुलाई को है। हम उनसे जुड़ी कुछ खास बातें आपके साथ शेयर कर रहे हैं।

प्रख्यात अभिनेता के पुत्र थे अमज़द

आम तौर पर लोग नहीं जानते कि अमज़द खान एक फिल्मी परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनका जन्म 12 नवंबर 1940 को पेशावर (वर्तमान पाकिस्तान ) में हुआ था। अमज़द खान के पिता जयंत एक मंजे हुए कलाकार थे। और उन्हीं की देखा देखी अमज़द खान भी घर में अभिनय किया करते थे और इतना कुछ सीख गए थे कि उन्हें अभिनय की शिक्षा की ज़रूरत ही नहीं रही थी। अमज़द खान ने एक बाल कलाकार के रूप में 'नाज़नीन' (1951) फिल्म से अपनी अभिनय पारी की शुरुआत की। महज 17 साल की उम्र में ही उन्होंने राज कपूर द्वारा बनाई गई फिल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं' (1957) में काम किया था। अमज़द रंगमंच पर लगातार सक्रिय थे और वहीं एक नाटक के दौरान वे शोले फिल्म के लेखक सलीम खान की नज़र में आए थे।

डैनी की 'ना' से झोली में आई शोले

अमज़द खान स्ट्रगलिंग एक्टर थे, अपना नाम बनाने का प्रयास कर रहे थे। इस दौरान वे रंगमंच पर भी बराबर से सक्रिय थे। जहां सलीम खान ने उन्हें देखा और उनके ज़ेहन में गब्बर का किरदार तैर गया। आपको बताएं कि गब्बर के रोल के लिए निर्माता की पहली पसंद डैनी डेंजोनगपा थे। जो उस दौर के नामचीन खलनायक थे। लेकिन वे फिरोज खान की फिल्म 'धर्मात्मा' में व्यस्त थे। शोले और धर्मात्मा की शूटिंग की डेट्स क्लैश कर रही थी। जिसकी वजह से डैनी को गब्बर के रोल को ठुकराना पड़ा था। और इस तरह यह फिल्म आखिर अमज़द के हिस्से आई।

... तो सलीम खान साहब अमज़द खान को रमेश सिप्पी के पास लेकर गए और ऑडीशन दिलवाया। रमेश को भी अमज़द जम गए। और अमज़द को गब्बर का रोल मिल गया।

'... कितने आदमी थे' के लिए लगे 40 से ज्यादा टेक

बड़े सितारों से सजी बड़ी फिल्म मिल तो गई लेकिन पहले ही दिन डायलॉग बोलना था... 'कितने आदमी थे'... यह एक डायलाॅग बोलने में गब्बर के पसीने छूट गए। जैसा निर्देशक चाहते थे,वो बात आ ही नहीं रही थी। 40 से ज्यादा रीटेक दिए पर बात नहीं बनी। आखिर निर्देशक ने उन्हें रेस्ट करने भेज दिया और अगले दिन आने को कहा। अगले दिन अमजद सेट पर लौटे और एक दो रीटेक के बाद ही उन्होंने 'कितने आदमी थे' डायलॉग को अच्छे से बोल दिया। और बाद तक हालात यूं बदले कि पूरी फिल्म पर उनके ही किरदार का कब्ज़ा सा हो गया।

पिता देखें फिल्म, इच्छा रही अधूरी

अमजद खान चाहते थे कि उनके पिता जयंत फिल्म ‘शोले’ में उनका काम देखें, लेकिन फिल्म की रिलीज से पहले उनके पिता का दो जून 1975 को निधन हो गया। बता दें कि ‘शोले’ 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई थी।

बहुत हटकर थी लव स्टोरी

अमज़द को शहला से दिलो जान से मोहब्बत थी, बस दुविधा ये कि पड़ोसी की यह बेटी उनसे उम्र में काफी छोटी थी। अमज़द काॅलेज स्टुडेंट और शहला महज़ 14 की। शहला बेधड़क उन्हें भैया-भैया बोल उनके साथ घर के सामने बैडमिंटन खेला करती थीं। ये 'भैया' शब्द सुन अमज़द अंदर ही अंदर बहुत कुढ़ते थे। फिर एक दिन उनसे रहा न गया और उन्होंने शहला से कह दिया कि " सुनो, शहला, तुम मुझे भैया न कहा करो।"

धीरे-धीरे शहला भी इस मोहब्बत को समझने लगीं। एक दिन जब शहला जब स्कूल से लौट रही थीं, तब अमजद खान ने उन्हें रास्ते में रोक लिया और बोले " शहला, जल्दी से बड़ी हो जाओ... मैं तुमसे शादी करूंगा"। और वाकई कुछ ही दिन बाद अमजद ने शहला के घर पर शादी के लिए रिश्ता भिजवा भी दिया था। हालांकि उम्र के अंतर का हवाला देकर शहला के घरवालों ने रिश्ता ठुकरा दिया और शहला को आगे की पढ़ाई के लिए बाहर भेज दिया। हालांकि आगे चलकर अमज़द ने कुछ साल बाद फिर रिश्ता भिजवाया और इस दफ़ा शहला के घरवालों ने हामी भर दी और 1972 में शहला अमज़द की हो गईं। अमजद और शहला के तीन बच्चे हुए।

शोले में थे महज 9 सीन, पर अमर हो गया किरदार

क्या आप यकीन करेंगे कि जिस फिल्म शोले से अमज़द खान के नाम की गूंज देश भर में फैल गई, उस फिल्म में उनके हिस्से में महज़ 9 सीन थे। काफी हैरान करने वाली बात है न! संजीव कुमार,धर्मेंद्र,अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी और हेमा मालिनी जैसे एक से बढ़कर एक कलाकारों के बीच एक संघर्षरत एक्टर सारी लाइमलाइट चुरा ले गया। ये सच है कि इनमें से हर एक ने अपने - अपने किरदार में अपनी जान झौंक दी थी। निर्देशन, गाने, डांस, काॅमेडी सब कुछ ए वन था लेकिन खलनायक का किरदार एकदम अपरंपरागत अंदाज में निभा अमज़द फिल्म की यूएसपी बन गए थे।

खासकर उनका वो डाॅयलाग.... " अरे ओ सांबा... गज़ब था। इस डायलाॅग की एक अलग स्टोरी है जो हम आपको आगे बताएंगे पर एक बार शोले में उनके ज़बरदस्त डायलाॅग्स को फिर याद कर लेते हैं... “अब तेरा क्या होगा कालिया ?"... “होली कब है, कब है होली ?"... “जो डर गया, समझो मर गया".... “ये हाथ हम को दे दे, ठाकुर".... क्या शानदार तरीके से की गई थी इन डायलॉग की अदायगी, सच कहियेगा, घूम गई न ज़ेहन में अमज़द खान की आवाज़।

गांव के धोबी का था ये 'अरे ओ... ' वाला अंदाज

हमने जिस डायलाॅग 'अरे ओ सांबा' के पीछे की कहानी का जिक्र किया वह कुछ यूं थी कि अमजद खान के गांव में एक धोबी था। वह रोज सुबह सुबह जब काम पर निकलता तो मिलने वालों से 'अरे ओ' बोलकर इसी अंदाज में बात करता था। अमज़द के ज़ेहन में वह आवाज़ दर्ज थी। उन्होंने धोबी के अंदाज़ में डायलाॅग बोला जो निर्देशक को बहुत जंच गया। और इस तरह शोले फिल्म का यह डायलॉग अमर हो गया।

अमज़द खान की यादगार फिल्में

अमज़द खान ने “कुर्बानी” “लव स्टोरी” “चरस” “हम किसी से कम नहीं ” “इनकार” “परवरिश” “शतरंज के खिलाड़ी” “देस-परदेस” “दादा" “कसमे-वादे” “मुक्कदर का सिकन्दर” “लावारिस” “मिस्टर नटवरलाल” “कालिया” “सत्ते पे सत्ता” जैसी फिल्मो में यादगार भूमिकाएं की |

एक एक्सीडेंट ने छीन लिया जीवन

एक एक्सीडेंट अमजद खान और उनके परिवार को जीवन भर का दर्द दे गया। 1976 में, फिल्म “द ग्रेट गैंबलर” फिल्म की शूटिंग के दौरान, अमजद के साथ मुंबई-गोवा मार्ग पर एक गंभीर सड़क दुर्घटना हो गई।एक्सीडेंट से उनकी 13 पसलियां टूट गई थीं। उनके फेफड़े में भी चोटें आई थीं। इन गंभीर चोटों के कारण वे कोमा में चले गए। हालांकि वे कोमा से तो बाहर आए लेकिन ऑपरेशन के दौरान उनको दी जाने वाली दवाईयों ने उन्हें बहुत मोटा कर दिया था। वे लंबे समय तक वहील चेयर पर रहे। इससे भी उनका वजन काफी बढ़ गया था। इससे उनके स्वस्थ होने में जटिलताएं भी बढ़ गई थीं। और एक दिन सुबह वे सोकर उठे ही नहीं। दिल का दौरा पड़ने से 27 जुलाई 1992 को अमज़द खान की मौत हो गई।

Divya Singh

दिव्या सिंह। समाजशास्त्र में एमफिल करने के बाद दैनिक भास्कर पत्रकारिता अकादमी, भोपाल से पत्रकारिता की शिक्षा ग्रहण की। दैनिक भास्कर एवं जनसत्ता के साथ विभिन्न प्रकाशन संस्थानों में कार्य का अनुभव। देश के कई समाचार पत्रों में स्वतंत्र लेखन। कहानी और कविताएं लिखने का शौक है। विगत डेढ़ साल से NPG न्यूज में कार्यरत।

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