सद्दाम हुसैन को फांसी होने के बाद इस फ़िल्म डायरेक्टर को ईरान से भागना पड़ा था
Saddam Hussain Documentry: सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित तीसरे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के मुख्य प्रतियोगिता खंड में सद्दाम हुसैन पर एक डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई...
Saddam Hussain Documentry: सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित तीसरे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के मुख्य प्रतियोगिता खंड में सद्दाम हुसैन पर एक डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई। इराकी-कुर्दिश मूल के नार्वेजियन फिल्मकार हलकावत मुस्तफा की यह डॉक्यूमेंट्री 'हाइडिंग सद्दाम हुसैन' (2023) अला नामिक, नाम के एक साधारण किसान के बारे में हैं जिसने 235 दिनों तक इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन (28 अप्रैल 1937-30 दिसंबर 2006) को अमेरिकी फौज से छुपाए रखा। जब 20 मार्च 2003 को अमेरिकी फौज ने इराक के राष्ट्रपति निवास पर कब्जा किया तब तक सद्दाम हुसैन गायब हो चुके थे। उसके एक दिन बाद सलादीर प्रांत के तिरकिट शहर के अद दावर गांव में अला नामिक के घर उसका भाई एक मेहमान को लेकर आया और कहा कि यह यहीं रहेंगे। वह मेहमान और कोई नहीं इराक के अपदस्थ राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन थे।
अला नामिक ने तिरकिट शहर से नौ मील दूर अपने छोटे से फार्म हाउस में उनके रहने का इंतजाम किया। यह भी संयोग ही था कि सद्दाम हुसैन का जन्म भी तिरकिट शहर के पास अल अवजा गांव में हुआ था। बाद में 13 दिसंबर 2003 को अमेरिकी फौज ने अला नामिक के बगीचे के छोटे से बंकर से सद्दाम हुसैन को ढूंढ निकाला और तीन साल बाद 30 दिसंबर 2006 को उन्हें सरेआम फांसी दे दी गई।
अला नामिक को भी इसके लिए ख़तरनाक अबू गरेब जेल में सात महीने बिताने पड़े और बिना किसी आरोप के उन्हें बरी कर दिया गया। उधर सद्दाम हुसैन को फांसी दिए जाने के बाद फिल्म के निर्देशक हलकावत मुस्तफा को इराक छोड़कर भागना पड़ा। एक लाख अस्सी हज़ार दूसरे कुर्दिश लोगों को देश निकाला दे दिया गया, या मार डाला गया या वे गायब कर दिए गए।
हलकावत मुस्तफा ने कैमरे के सामने अला नामिक की सीधी आत्म स्वीकृतियों, टेलीविजन की आरकाइवल फुटेज और डाक्यू ड्रामा के सहारे दस साल की कठिन मेहनत से यह दुर्लभ फिल्म बनाई है।
पहले दृश्य में ही हम देखते हैं कि पारंपरिक अरब पोशाक में अला नामिक फर्श पर बिछे मखमली कालीन पर पालथी मारे बैठे हैं और बता रहे हैं कि उन्होंने कैसे और क्यों सद्दाम हुसैन को अमेरिकी फौज से बचाए रखा। अमेरिका ने सद्दाम हुसैन की सूचना देनेवाले को 25 मिलियन डॉलर और उनके दोनों बेटों उदय और कुसय की सूचना पर 15 मिलियन डॉलर का ईनाम घोषित कर रखा था। चार बच्चों के पिता अला नामिक कहते हैं कि उनके जैसे एक गरीब किसान के लिए 25 मिलियन डॉलर का ईनाम बहुत मायने रखता था और किसी का भी ईमान डोल सकता था, पर वे ईनाम के लालच में नहीं फंसे।
वे तब तक सद्दाम हुसैन की तानाशाही और कारनामों के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे क्योंकि उनके पास सरकारी रेडियो और टेलीविजन के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। वे सद्दाम हुसैन को मालिक कहते थे। जब जुलाई में अमेरिकी सेना के एक अभियान में उनके दोनों बेटे उदय और कुसय मार डाले गए तो उन्होंने बत्तीस साल के अला नामिक को अपना बेटा बना लिया।
इस घटना के कुछ ही दिनों पहले अमेरिकी फौज से छुपकर उनके दोनों बेटे रात में सद्दाम हुसैन से मिलने आए थे। यह उनकी आखिरी मुलाकात साबित हुई।
अला नामिक ने अपने छोटे से बागीचे में एक छोटा सा गड्ढा खोदकर बंकर बनाया और उसका मुंह फूलों के एक बड़े गमले से ढंक दिया। जब अमेरिकी फौज की आवाजाही बढ़ गई तो सद्दाम हुसैन दिन भर उसी गड्ढे नुमा बंकर में छिपे रहते थे। एक दो बार उनके घर अमेरिकी फौज का छापा भी पड़ा, पर सद्दाम हुसैन बंकर में छिपे होने के कारण बच गए। पूरी फिल्म अला नामिक की वायस ओवर कमेंटरी और उससे मेल खाती वीडियो फुटेज में चलती है। अला नामिक नौ महीने तक अपने परिवार को भी समय नहीं दे पाए।
फिल्म में अला नामिख बताते हैं कि कैसे देखते ही देखते वे सद्दाम हुसैन के सबसे खास बन गए क्योंकि उन्हें नाई और रसोईए से लेकर अर्दली और सलाहकार का भी काम करना पड़ता था। सद्दाम हुसैन फिर से अपनी खोई हुई सत्ता पाने के लिए अपने वफादार अफसरों के साथ भूमिगत बैठकें करते थे और रणनीति बनाने में लगे रहते थे। अपने इन्हीं खास लोगों के कारण वे पकड़े भी गए। फिल्म में अला नामिक ने सबकुछ सच सच स्वीकार किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने सद्दाम हुसैन के महल में नर संहार करने वाले रासायनिक हथियार होने का आरोप लगाया था और ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने इस बारे में संसद में जार्ज बुश के समर्थन में झूठा बयान दिया था। वे रासायनिक हथियार आज तक नहीं मिले।
फिल्म दिखाती है कि कैसे एक अराजक तानाशाह जान पर बन आने पर साधारण इंसान में बदल जाता है। अला नामिक के लिए सद्दाम हुसैन किसी मिथकीय चरित्र की तरह थे। वे सोच भी नहीं सकते थे कि वे कभी उनसे मिल पाएंगे। यह नियति का खेल था कि उन्हें उनके साथ नौ महीने गुजारने पड़े।
हलकावत मुस्तफा ने रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में इस फिल्म को बनाने की दास्तान सुनाई। उन्होंने कहा कि इसे बनाने में 12 साल लग गए पर पहली बार यह सच्ची कहानी दुनिया के सामने आई कि जिस सद्दाम हुसैन को करीब डेढ़ लाख अमेरिकी फौजी पागलों की तरह ढूंढ रहे थे, उसे एक किसान ने 235 दिनों तक कैसे छुपाए रखा।
वे बताते हैं कि उन्होंने 2011 में अला नामिक को खोजना शुरू किया। एक साल बाद 2012 में उन्होंने द वाशिंगटन पोस्ट में उनके बारे में एक लेख पढ़ा। बड़ी मुश्किल से दो साल की खोज के बाद एक इराकी शेख की मदद से वे उन्हें खोज पाए और फिल्म के लिए राजी किया। उसी समय इराक में इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) का उभार शुरू हुआ और मुस्तफा का काम आसान होता चला गया।
रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह जेद्दा में अला नामिक भी आए थे। उन्होंने कहा कि शुरू में मैंने सोचा कि मुझे चुप रहना चाहिए और बीस साल तक मैं चुप भी रहा क्योंकि मैं अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंतित था। जब प्रेस और सोशल मीडिया में तरह तरह की खबरें आने लगी तो मैंने निर्णय लिया कि मुझे अब सच्ची कहानी फिल्म के माध्यम से बता देनी चाहिए। इस काम में मेरे सबसे करीबी शेख ने मुस्तफा के साथ मध्यस्थता की। अला नामिक ने कहा कि जब अमेरिकी फौज ने सद्दाम हुसैन के साथ उन्हें गिरफ्तार किया तो उन्हें सात महीने तक बगदाद के पश्चिम में स्थित कुख्यात अबू गरेब जेल में रहना पड़ा। यह जेल अमेरिकी फौज और सीआईए द्वारा कैदियों के अपमान और अमानुषिक उत्पीड़न के लिए कुख्यात है। उन्हें और उनके परिवार को सद्दाम हुसैन को छुपाने की भारी कीमत चुकानी पड़ी। इस दुख से उनके पिता की मृत्यु हो गई।
फिल्म के निर्देशक हलकावत मुस्तफा ने कहा कि फिल्म बनाते समय उनका फोकस सद्दाम हुसैन द्वारा कुर्दिश लोगों पर किया गया अत्याचार नहीं है खासतौर से 1988 का हलाब्जा हमला जब रासायनिक हथियारों से हजारों कुर्दिश मार डाले गए थे। उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य सद्दाम हुसैन पर नहीं उस इंसान पर फिल्म बनाना था जिसने उन्हें 235 दिनों तक छुपाए रखा। उन्होंने कहा कि वे एक खोजी पत्रकार के रूप में इस विषय पर सूचनाएं इकट्ठी कर रहे थे, पर असल समस्या उन सूचनाओं को सत्यापित करने की थी।