स्थानांतरण समिति की अनुशंसा सवालों के घेरे में...समान प्रकरण में किसी के पक्ष में फैसला तो किसी के खिलाफ...ऐसा क्यों ???
रायपुर। कहते हैं कानून अंधा होता है उसे केवल सबूत नजर आते हैं और जब कोई समिति किसी प्रकार के प्रकरण की सुनवाई करने के लिए बनाई जाती है तो उसके मामले में भी यही माना जाता है कि वह न्याय संगत निर्णय लेगा लेकिन बात शिक्षा विभाग की हो तो ऐसा जरूरी नहीं है । शिक्षकों के तबादले पर न्यायालय में ढेरों मामले पहुंचे थे और न्यायालय के निर्णय के आधार पर शिक्षकों ने अभ्यावेदन समिति को भेजा था जिस पर आज निर्णय सामने आया है लेकिन कई निर्णय सोशल मीडिया में सुर्खियां बन रहे हैं जिसमें प्रकरण तो एक समान है लेकिन निर्णय शायद चेहरा देख देख कर किया गया है । अब विकास खंड शिक्षा अधिकारियों को हटाने के इस प्रकरण ही ले लीजिए , बी एस बंजारे विकास खंड शिक्षा अधिकारी डबरा जिला सक्ति स्थानांतरण के विरुद्ध समिति को अभ्यावेदन प्रस्तुत किया था जिसमें उन्होंने तर्क दिया था कि उनसे कनिष्ठ व्याख्याता एलबी को उनके पद पर आसीन कर दिया गया है जबकि वह वरिष्ठ प्राचार्य है इस मामले में बीएस बंजारे को लाभ नहीं मिला और उनके अभ्यावेदन को अमान्य कर दिया गया है । जबकि इसी प्रकार के प्रकरण में जी पी बनर्जी विकास खंड शिक्षा अधिकारी पंडरिया जिला कबीरधाम ने भी अभ्यावेदन सौंपा था उनके स्थान पर व्याख्याता एलबी मोहम्मद फिरोज खान को विकास खंड शिक्षा अधिकारी नियुक्त किया गया है जो कि वरिष्ठता में उनसे काफी कनिष्ठ है । इस मामले में जीपी बनर्जी के अभ्यावेदन को मान्य किया गया है इसका सीधा मतलब है कि जहां बीएस बंजारे को अपना पद छोड़ना पड़ेगा वहीं जी पी बैनर्जी पद पर बने रहेंगे जबकि दोनों का प्रकरण एक समान है और यह समझ से परे है कि आखिर दोनों मामले एक समान होने के बाद भी निर्णय अलग अलग क्यों है ???