समाज सुधार की दृष्टि से भारतेन्दु की कविताओं के महत्व पर प्रकाश डालें।
बंगाल में पश्चिमी सभ्यता के साथ पहले सम्पर्क में आने के कारण, नए विचारों का प्रादुर्भाव हो गया। इस समय, मध्यकालीन भारतीय समाज रुढ़िवादिता, संकीर्णता, और अंधविश्वासी चेतना से ग्रस्त था। परंतु, पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान के आलोक में झकझोर कर जगाने का काम बंगाल में कुछ प्रमुख विद्वानों ने अपने हाथ में लिया।
1828 ई0 में ही बंगाल में ब्रह्म समाज की स्थापना हो चुकी थी। यह समाज बाल-विवाह पर रोक, विधवा विवाह की अनुमति, नारी शिक्षा, और अंधविश्वासों का नकार करता था। इस समाजिक क्रांति के स्वर बंगाल के विभिन्न भागों की अनेकों यात्राओं ने भी यह विचार प्रसारित किया। यात्राओं के दौरान, लोगों ने बंगाल में समाज सुधार की प्रगति को देखकर इसे स्वीकार किया, जिससे बंगाली समाज में सुधार की ज्योति प्रकाशित हुई।
राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद विद्यासागर, केशवचंद्र सेन, देवेन्द्रनाथ ठाकुर, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द जैसे विद्वानों ने उत्कृष्ट भूमिका निभाई। उन्होंने समाज में सुधारों का झंडा उठाया और नवजागरण की ओर मुख्य रूप से ध्यान दिया।
राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की, जो समाज में बाल-विवाह पर रोक, विधवा विवाह की अनुमति, नारी शिक्षा आदि विषयों पर ध्यान केंद्रित करता था। ईश्वरचंद विद्यासागर ने विधवा विवाह के पक्ष में पौराणिक ग्रंथों से सबूत जुटाए और नारी को समाज में उचित स्थान प्रदान किया।
केशवचंद्र सेन, देवेन्द्रनाथ ठाकुर, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द जैसे विचारक ने भारतीय समाज में धार्मिक और सामाजिक बदलाव को प्रोत्साहित किया। उन्होंने संस्कृत शिक्षा, सामाजिक सुधार, और मानवता के मूल्यों को बढ़ावा दिया।
इस प्रकार, बंगाल में नए विचारों का प्रादुर्भाव हो गया और इसने समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाया। यहाँ उपर्युक्त व्यक्तियों द्वारा किए गए सामाजिक सुधारों ने बंगाल को न केवल विचारशीलता की दिशा में अग्रणी बनाया, बल्कि पूरे भारतीय समाज को भी प्रेरित किया। उन्होंने समाज के अंधविश्वासों का खंडन किया, नारी शिक्षा को महत्व दिया, और सामाजिक असमानता के खिलाफ उत्साह दिया। इस प्रकार, उन्होंने भारतीय समाज को नई दिशा दी और उसे एक बेहतर और उत्थानशील समाज की ओर ले जाने में मदद की।
बंगाल के ये विचारक न केवल अपने क्षेत्र में समाजिक परिवर्तन लाने में सफल रहे, बल्कि उनके आदर्शों ने पूरे भारत में समाजिक एवं धार्मिक परिवर्तन की ऊर्जा को जागृत किया। उनका कार्य समाज में साकार परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण रहा और उनकी प्रेरणा ने बहुत से लोगों को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया। इस प्रकार, बंगाल में नए विचारों के प्रादुर्भाव ने पूरे भारत में समाज में सुधार की दिशा में एक नया युग आरंभ किया।
भारतेन्दु के काव्य और नाटकों में समाज सुधार के विचार उनकी कल्पनाओं और दृष्टिकोण के माध्यम से अभिव्यक्त होते हैं। उनकी रचनाओं में सामाजिक विकास और समाज में न्याय के प्रति उनका गहरा आदर्शवाद प्रकट होता है। उनकी लेखनी से बाल-विवाह, वेश्यागमन, और स्त्री शिक्षा जैसे समाजिक मुद्दों पर चिंतन का स्पष्ट प्रतिबिम्ब मिलता है।
भारतेन्दु के काव्य में नारी के समाज में समान अधिकारों की मांग और उनके समूह से निर्मलीकरण की आवश्यकता के प्रति उनकी चिंता का स्पष्ट प्रतिबिम्ब है। उनकी कविता "जो हरि सोई राधिका जो शिव सोई शक्ति" नारी और पुरुष के बीच समानता की भावना को उजागर करती है। इसमें उन्होंने नारी को देवी के रूप में स्थान देने का समर्थन किया है, जिससे नारी की महिमा और समानता के प्रति उनका समर्थन प्रकट होता है।
जो हरि सोई राधिका जो शिव सोई शक्ति।
जो नारी सोई पुरुष यामैं कछु न विभक्ति।।
उनके नाटकों में भी समाजिक मुद्दों को उजागर करने का प्रयास होता है। उनके नाटक "नये जमाने की मुकरी" में समाज में मौजूद धार्मिक और सामाजिक बुराइयों पर उनका विचार प्रकट होता है। इस नाटक में उन्होंने छुआछूत, बाल विवाह, और विधवा विवाह के खिलाफ आवाज उठाई है, जिससे समाज में न्याय और समानता की मांग को समझाया गया है।
भारतेन्दु की रचनाओं में वेश्यागमन के खिलाफ और स्त्री शिक्षा के पक्ष में उनका समर्थन भी देखा जा सकता है। उन्होंने वेश्यागमन के खिलाफ अपने नाटकों और कविताओं में विरोध प्रकट किया है, जिससे इस अनैतिक प्रथा के प्रति उनका दृष्टिकोण स्पष्ट होता है। साथ ही, उन्होंने स्त्रियों के लिए शिक्षा के महत्व को प्रमोट किया है, जो समाज में न्याय और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
भारतेन्दु के लेखन में समाज सुधार के विचार एक प्रमुख धारणा हैं। उन्होंने समाज में न्याय, समानता, और अधिकारों की मांग को उजागर किया और समाज को रुढ़िवादिता और अन्धविश्वासों से मुक्त करने का प्रयास किया। उनके लेखन में नारी के प्रति आदर्शवाद और उनके समूह से निर्मलीकरण की मांग का अभिव्यक्ति होता है। इस तरह, उनकी रचनाएं समाज में सुधार के प्रति उनके संवेदनशील और उत्साही दृष्टिकोण को प्रकट करती हैं।
भारतेंदु ईश्वरचंद विद्यासागर भारतीय समाज के लिए महत्वपूर्ण समाज सुधारक थे, जिन्होंने विधवा विवाह के पक्ष में पौराणिक ग्रंथों से समर्थन जुटाया। वे विधवा विवाह के समर्थक बन गए थे और "वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति" श्लोक से प्रेरित होकर इस मुद्दे पर उनका ध्यान गया था। इस श्लोक में कहा गया है कि जब पति नष्ट हो जाता है, मर जाता है, या अन्य विपत्तियों में फंस जाता है, तो उन्हें उनके पाँच प्रकारों की स्वतंत्रता देने के लिए दूसरे पति का विचार किया जाता है।
नष्टे मृते प्रवजिते क्लीवे च पतिते पतौ। पंच स्वायत्सु नारीणां पतिरुयो विधीयते।। (भारतेंदु समग्र, पृ0 311)
यह वाक्य व्याख्या करता है कि जब पति अलग-अलग प्रकार की विपत्तियों में फंस जाता है, जैसे कि मृत्यु, लापता हो जाना, या नपुंसकता का सामना करना, तो स्त्री के लिए पाँच प्रकार की स्वतंत्रता के लिए दूसरे पति की संभावना होती है।
इस चौपाई में "नये जमाने की मुकरी" नाटक में भारतेंदु विद्यासागर की प्रशंसा की गई है। इस चौपाई में उनके साहित्यिक योगदान की सराहना की गई है जिसमें उनकी सुंदर बानी से समझावा होता है, विधवाओं के प्रति प्यार और सहानुभूति का उज्ज्वल वर्णन होता है, और उनकी दयालुता और नेतृत्व की महत्वपूर्णता को उजागर किया गया है। इस चौपाई में भारतेंदु विद्यासागर को "गुण-आगर" यानी गुणों का खजाना कहकर सम्मानित किया गया है जो उनकी उत्कृष्टता और नैतिकता को दर्शाता है। इसके साथ ही, सज्जन और मित्र कहकर भी विद्यासागर की महत्वपूर्णता को उजागर किया गया है, जिससे उनका साहित्यिक और सामाजिक योगदान का महत्व और उच्चता प्रकट होती है।
सुंदर बानी कहि समुझावै।
बिधवागन सों नेह बढ़ावै।
दयानिधान परम गुन-आगर।
सखि सज्जन नहिं विद्यासागर
(भारतेंदु समग्र, पृ० 256)
"भारत दुर्दशा" नाटक में एक पात्र द्वारा भारतेंदु के समाज पर किये गए आलोचनात्मक टिप्पणियाँ का उल्लेख किया गया है। इस चौपाई में, भारतेंदु विद्यासागर द्वारा उन आधुनिक काल की समाजिक दुर्दशाओं का वर्णन किया गया है।
पात्र इस चौपाई में बताता है कि धर्म ने अनेक विभिन्न मतों को समाज में प्रचारित किया, जिससे समाज में असंतोष, बिखराव, और असमानता उत्पन्न हुई। उन्होंने धार्मिक विविधता को समाज की दुर्दशा का मुख्य कारण माना, जिसने लोगों को बांधकर रखा और सामाजिक असमानता को बढ़ावा दिया।
इसके साथ ही, पात्र ने समाज में विवाह और जाति के मामले पर भी विचार किया। उन्होंने समाज में विवाह की बाधाओं, जातिवाद के बढ़ते प्रभाव, और समाजिक असमानता के विरोध को उजागर किया। इसके अलावा, चौपाई में उन्होंने धार्मिक अनुष्ठानों के बढ़ते प्रभाव और मान्यताओं को भी उजागर किया। यह सभी पारंपरिक धार्मिक अनुष्ठानों के विरोध में भारतेंदु की आलोचना को दर्शाता है जिनसे समाज को प्रगति और उत्थान में अधिक विघ्न उत्पन्न हुए।
रचि बहुविधि के वाक्य पुरानन माँहि घुसाए।
शैव शाक्त वैष्णव अनेक मत प्रगटि चलाए।।
जाति अनेकन करी.नीच अरु ऊंच बनायो।
खान-पान संबंध सबन सों बरजि छुड़ायो।।
जन्मपत्र बिधि मिले. व्याह नहिं होन देत अब।
बालकपन में व्याहि प्रीतिबल नास कियो सब।।
करि कुलान के बहुत ब्याह बल बीरज मारयो।
बिधवा ब्याह निषेध कियो बिभिचार प्रचारयो।।
रोकि बिलायतगमन कूपमंडूक बनायो।
औरन को संसर्ग छुड़ाइ प्रचार घटायो।।
बहु देवी देवता भूत प्रेतादि पुजाई।
ईश्वर सो सब बिमुख किए हिंदू घबराई।।
(भारतेंदु समग्र, पृ0 462)
भारतेंदु के काव्य में समाज के विभिन्न मुद्दों और रुढ़िवादिता के खिलाफ उनकी चिंता का व्यक्तित्व व्यक्त होता है। उन्होंने विविधता, समानता, और न्याय के मामले में समाज के बदलाव की बात की है।
उन्होंने समाज में प्रचलित बुरी प्रथाओं और रुढ़िवादिता के खिलाफ अपनी कविताओं में आवाज उठाई है। उन्होंने छुआछूत, बाल विवाह, जातिवाद, और अंधविश्वासों के खिलाफ विरोध किया। उन्होंने समाज को सशक्त और समानित बनाने के लिए शिक्षा और जागरूकता को महत्वपूर्ण माना।
भारतेंदु ईश्वरचंद विद्यासागर ने अंग्रेज़ी शिक्षा के महत्व को भी स्वीकार किया। वे चाहते थे कि लोग अंग्रेजी सीख कर विश्व के ज्ञान-विज्ञान से परिचित हों। उन्होंने स्कूलों के स्थापना और अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा को बढ़ावा दिया। इससे उनका उद्देश्य था कि समाज में शिक्षित और जागरूक लोग उत्पन्न हों, जो समाज में सुधार के लिए सक्रिय भूमिका निभाएं।
भारतेंदु की कविताओं में भारतीय समाज के विभिन्न मुद्दों पर गहरा विचार किया गया है, और उन्होंने समाज को सुधारने और उन्नति करने के लिए जागरूकता फैलाने की कोशिश की है। उन्होंने समाज में न्याय, समानता, और सामाजिक सुधार की आवश्यकता को स्पष्ट किया है, जो एक उत्तेजना स्रोत के रूप में काम करता है।
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लखहु न अँगरेजन करी उन्नति भाषा मॉहि।
सब विद्या के ग्रंथ अंगरेजिन माँह लखहिं।।
(भारतेंदु समग्र, पृ0 228)
इन पंक्तियों में भारतेंदु ईश्वरचंद विद्यासागर ने अपनी भाषा की महत्वता को उजागर किया है। उन्होंने कहा है कि निजी भाषा का ज्ञान सभी उन्नतियों का मूल है और बिना इसके मनुष्य का मन और हृदय सूज नहीं सकता। इससे स्पष्ट होता है कि उन्होंने अपनी मातृभाषा के प्रति गहरा सम्मान और प्रेम रखा।
निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल।।
(भारतेंदु समग्र, पृ0 228)
वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि हालांकि अंग्रेजी के ज्ञान का महत्व है, लेकिन साथ ही अपनी मातृभाषा का ज्ञान भी उतना ही आवश्यक है। अंग्रेजी का ज्ञान व्यक्ति को विश्व से जोड़ता है, लेकिन निजी भाषा का ज्ञान उसके मूल्यों, संस्कृति, और गहरी समझ को बढ़ाता है।
अंग्रेजी पदि के जदपि सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा ज्ञान बिन रहत हीन के हीन।।
(भारतेंदु समग्र, पृ0 228)
भारतेंदु ईश्वरचंद विद्यासागर के विचार से स्पष्ट होता है कि वे विश्वास रखते थे कि समृद्ध समाज के निर्माण के लिए न केवल अंग्रेजी का ज्ञान, बल्कि अपनी मातृभाषा का ज्ञान भी अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने यह समझाया कि सही समय पर अंग्रेजी के साथ साथ अपनी भाषा के प्रति भी सम्मान और जागरूकता होनी चाहिए।
इस कविता में भारतेंदु ईश्वरचंद विद्यासागर ने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से दर्शाया है कि भाषाओं को सीखना कितना महत्वपूर्ण है। अंग्रेजी भाषा के अध्ययन के अलावा अपनी मातृभाषा का भी ज्ञान होना जरूरी है। उन्होंने इसे अधिक से अधिक लोगों को समझाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के उदाहरण दिए हैं:
नहीं कछु जानत तार में खबर कौन बिधि जात।
रेल चलत केहि भाँति सों कल है काको नाँव ।
तोप चलावत किमि सबै जारि सकल जो गाँव
वस्त्र बनत केहि भांति सों कागज़ केहि बिधि होत।
काहि कबाइद कहत हैं बांधत किमि जल-सोत।।
उतरत फोटोग्राफ किमि छिन मँह छाया रूप।
होय मनुष्यहि क्यों भये हम गुलाम ये भूप।।
1. रेल कार्य - यहाँ विद्यासागर बता रहे हैं कि यदि कोई अंग्रेजी का ज्ञान नहीं रखता है, तो वह रेलवे कार्यों की जानकारी से वंचित रहेगा।
2. हथियार उत्पादन - अंग्रेजी के बिना किसी को विभिन्न हथियारों का उत्पादन करने की जानकारी नहीं होगी, जो उसे निर्भर बना सकती है।
3. वस्त्र उत्पादन - वस्त्र उत्पादन के क्षेत्र में भी अंग्रेजी का ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसे नई तकनीकों का प्रयोग करने की आवश्यकता होती है।
4. फोटोग्राफी - फोटोग्राफी एक ऐसा क्षेत्र है जो अंग्रेजी भाषा के ज्ञान को माँगता है, क्योंकि इसमें तकनीकी शब्दावली का प्रयोग होता है।
उन्होंने यह स्पष्ट किया कि अंग्रेजी के ज्ञान के बिना व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में पीछे रह जाएगा और उसकी स्वतंत्रता और समृद्धि पर प्रतिबंध हो सकता है।