Professor Chakrawal: दिल्ली क़े विश्व पुस्तक मेले में कुलपति प्रोफेसर चक्रवाल की दो पुस्तकों का विमोचन...
Professor Chakrawal: दिल्ली क़े विश्व पुस्तक मेले में कुलपति प्रोफेसर चक्रवाल की दो पुस्तकों का विमोचन...

Professor Chakrawal: बिलासपुर। गुरू घासीदास विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल की दो पुस्तकों का विमोचन दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में 4 फरवरी को हुआ। पुस्तक का विमोचन डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय, संगठन सचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना द्वारा किया गया।
इस अवसर पर मंचस्थ अतिथियों में प्रो. के.के. अग्रवाल, अध्यक्ष, साउथ एशियन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली, प्रो. डी.सी. राय, कुलपति, बी.आर.ए. विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर बिहार, प्रो. अजय प्रताप सिंह, निदेशक, राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी, कोलकाता एवं प्रो. डी.सी. चौबे, आईजीएनसीए, नई दिल्ली उपस्थित रहे।
पररंपरागत भारतीय कला एवं संस्कृति के संरक्षण में स्त्रियों की भूमिका विषय पर प्रकाशित पुस्तक के विमोचन अवसर पर बोलते हुए कुलपति प्रोफेसर चक्रवाल ने कहा कि व्यक्ति की श्रेष्ठतम अभिव्यक्ति अगर कला है तो समाज की उच्चतम और कलात्मक अभिव्यक्ति ही उसकी संस्कृति है। अगर कला व्यक्ति की प्रतिभा का स्वरूप है तो संस्कृति समाज की सामूहिक स्मृति और समाहित लोक परंपरा का प्रकाश है। यह प्राचीन और परंपरागत भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र रहा है। सभ्यता के विकासक्रम को देखते हुए कहा जा सकता है कि स्त्री न सिर्फ कला की श्रेष्ठतम संवाहिका है तथा सजृनकर्ता है। ये सभी महत्वपूर्ण परिकल्पनाएं इस पुस्तक में मौजूद हैं। भारतीय कला और संस्कृति को समझने के लिए यह एक बेहतरीन पुस्तक साबित हो सकती है। इस पुस्तक के संपादक प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल एवं प्रो. गौरी त्रिपाठी हैं।
शक्तिपीठ नाम की पुस्तक के विमोचन पर बोलते हुए कुलपति प्रोफेसर चक्रवाल ने कहा कि 51 शक्तिपीठों की महत्ता एवं विशेषताओँ के साथ उनके समग्र स्वरूप को प्रदर्शित करने का प्रयास है। शक्तिपीठ शक्ति की आराधना, सृष्टि के आदिकाल से मातृशक्ति की पूजा का विधान, चिन्तन शक्ति, सिद्धांतों एवं विचारों का संग्रह है। यह पुस्तक शक्तिपीठ माँ आदिशक्ति के लिए श्रद्धा का एक पुष्प है। शक्तिपीठ न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि यह ऐसे स्थल है जहां आकर भक्त अपने जीवन में नई ऊर्जा और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करते हैं। इन दिव्य स्थलों की यात्रा हर हिंदू श्रद्धालु स्वयं के लियें अपरिहार्य मानता है। इस पुस्तक के संपादक प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल एवं प्रो. प्रवीण मिश्र हैं।
पुस्तक के विमोचन अवसर पर डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय, संगठन सचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना ने कहा कि इतिहास लेखन के लिए यह उपयुक्त समय है। उन्होंने कहा कि हमें लेखन के माध्यम से भारत की छवि को मजबूत बनाना है। ऐसी पुस्तकें समाज को प्रेरित करती हैं। दोनों पुस्तकों का प्रकाशन किताबबाले प्रशांत जैन द्वारा किया गया है।