Medical PG Admissions: अंतरिम रोक से सुप्रीम कोर्ट के इंकार के बाद भी रिजल्ट जारी नहीं, मेरिट में आए छात्र भटक रहे, फिर भी रुकी पीजी मेडिकल की काउंसलिंग
Medical PG Admissions: सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत नहीं मिलने के बावजूद राज्य सरकार ने पीजी मेडिकल प्रवेश की काउंसलिंग और रिजल्ट जारी नहीं किया है। इससे मेडिकल स्नातकों का भविष्य अनिश्चित हो गया है। जीरो ईयर की आशंका से चिकित्सक हैरान हैं।

Medical PG Admissions: बिलासपुर। सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत नहीं मिलने के बावजूद राज्य सरकार ने पीजी मेडिकल प्रवेश की काउंसलिंग और रिजल्ट जारी नहीं किया है। इससे मेडिकल स्नातकों का भविष्य अनिश्चित हो गया है। जीरो ईयर की आशंका से चिकित्सक हैरान हैं।
नेशनल मेडिकल काउंसिल के निर्देश पर शुरू हुई प्रवेश प्रक्रिया बीच में रोक दी गई। मेरिट लिस्ट जारी हो चुकी है, कई छात्र चयनित भी हो गाए लेकिन काउंसलिंग आगे नहीं बढ़ई जा रही, जिससे छात्र असमंजस और तनाव में हैं। राज्य के चिकित्सा शिक्षा विभाग ने नेशनल मेडिकल काउंसिल के निर्देशों के तहत पीजी मेडिकल प्रवेश प्रक्रिया शुरू की थी। आनलाइन पंजीयन के बाट मेरिट लिस्ट भी जारी कर दी
मेरिट में नाम, फिर भी प्रवेश नहीं
खास बात यह है कि याचिकाकर्ताओं सहित सभी पात्र छात्रों के नाम मेरिट लिस्ट में आ चुके हैं। चार छात्रों का चयन आल इंडिया कोटे से हो चुका है और वे प्रवेश भी ले चुके हैं। इसके बावजूद राज्य कोटे की काउंसलिंग और रिजल्ट रोके जाने से बाकी छात्रों के साथ असमान स्थिति बन गई है। इसके बाद अचानक काउंसलिंग कमेटी ने प्रक्रिया स्थगित कर दी। इसी बीच हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ डा. समृद्धि दुबे के प्रकरण में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची, लेकिन कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से इन्कार कर दिया गया।
एक दिसंबर को राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए प्रवेश नियमों में संशोधन कर दिया। इसके बावजूद राजस्थान के एक छात्र ने नए नियमों को हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि इस याचिका के तहत होने वाले सभी प्रवेश न्यायालय के अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी कोई नई तारीख या रोक नहीं लगाई, लेकिन राज्य सरकार ने फिर भी पीजी प्रवेश का रिजल्ट जारी नहीं किया।
नहीं मिल पा रहा विकल्प
मामले की अंतिम सुनवाई हाई कोर्ट में मार्च में प्रस्तावित है। तब तक रिजल्ट और काउंसलिंग रोके जाने से छात्र न आगे की तैयारी कर पा रहे है. न वैकल्पिक रास्ता चुन पा रहे हैं। छात्रों का कहना है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने कोई रोक नहीं लगाई, ती सरकार को प्रवेश प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए।
नहीं है भ्रम की स्थिति
हाई कोर्ट में दायर याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि 50 प्रतिशत आल इंडिया कोटा के बाद करे 50 प्रतिशत में से 25 प्रतिशत सीटें राज्य में एमबीबीएस करने वालों के लिए और 25 प्रतिशत ओपन कर दी गई है, जो छत्तीसगढ़ के छात्रों के साथ अन्याय है। वहीं राज्य सरकार और डा. समृद्धि दुबे की ओर से कहा गया है कि संस्थागत और गैर- संस्थागत दोनों वगों में छत्तीसगढ़ के एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस और दिव्यांग छात्रों के लिए आरक्षण बना हुआ है. इसलिए भ्रम की स्थिति नहीं है।
ये है मामला
मेडिकल पीजी में एडमिशन के लिए राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नए नियम को चुनौती देते हुए पांच चिकित्सकों ने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से हाई कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है। डिवीजन बेंच ने नए नियमों के तहत पीजी में प्रवेश को हाई कोर्ट के फैसले से बाधित रखा है। मतलब ये कि इस याचिका पर हाई कोर्ट का जो फैसला आएगा उसे नए एडमिशन प्रक्रिया में लागू किया जाएगा।
मेडिकल पीजी में प्रवेश के लिए राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नए नियमों को चुनौती देते हुए प्रभाकर चंद्रवंशी व पांच अन्य चिकित्सकों ने अधिवक्ता सजल कुमार गुप्ता, मधुनिशा सिंह,आशीष गंगवानी, पंकज सिंह व अदिति जोशी के जरिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता चिकित्सकों ने अपनी याचिका में कहा है कि राज्य सरकार ने मेडिकल पीजी में एडमिशन के लिए पूर्व में जारी नियमों में बदलाव कर छत्तीसगढ़ में अध्ययनरत मेडिकल छात्रों का अहित कर दिया है। पूर्व के नियमों का हवाला देते हुए याचिका में कहा है कि पूर्व में स्टेट और ऑल इंडिया कोटे में बराबर सीटें थी। 50-50 प्रतिशत सीटें ऑल इंडिया और स्टेट कोटे के लिए तय की गई थी। इसमें बदलाव करते हुए राज्य सरकार ने ऑल इंडिया कोटे की सीटें 50 फीसदी से बढ़ाकर 75 फीसदी कर दिया है। स्टेट कोटे की सीटें घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया है। इससे छत्तीसगढ़ के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद पीजी में एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स को नुकसान होगा।
पीजी में हो रहे एडमिशन, हाई कोर्ट ने फैसले से रखा है बाधित
मामलेे की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने मेडिकल पीजी में नए नियमों के तहत हो रहे एडमिशन को वर्तमान याचिका में होने वाले फैसले से बाधित रखा है।
हाई कोर्ट के फैसले के बाद सरकार को बदलना पड़ा था एडमिशन रूल्स
हाई कोर्ट के डीविजन बेंच के फैसले के बाद राज्य सरकार को छत्तीसगढ़ मेडिकल पीजी में एडमिशन को लेकर लागू डोमिसाइल आरक्षण की व्यवस्था में बदलाव करना पड़ा था। डॉ समृद्धि दुबे ने राज्य में लागू डोमिसाइल आरक्षण व्यवस्था को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के ताजा निर्णय के बाद मेडिकल पीजी में प्रवेश नियमों में बदलाव करना पड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 29 जनवरी 2025 को डॉ. तन्वी बहल बनाम स्टेट ऑफ पंजाब मामले में पारित निर्णय में स्पष्ट रूप से यह घोषित किया गया कि पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में निवास-आधारित आरक्षण अस्वीकार्य है। राज्य कोटे की सीटों को, उचित संख्या में संस्थान-आधारित आरक्षण के अलावा, अखिल भारतीय परीक्षा में योग्यता के आधार पर सख्ती से भरा जाना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के परिपालन में छत्तीसगढ़ राज्य में छत्तीसगढ़ चिकित्सा स्नातकोत्तर प्रवेश नियम, 2021 के नियम-11 प्रवेश में वरियता के नियम (क) राज्य कोटे में उपलब्ध सीटों पर सर्वप्रथम उन अभ्यर्थियों को प्रवेश दिया जायेगा, जिन्होंने या तो छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित चिकित्सा महाविद्यालय से एमबीबीएस डिग्री प्राप्त की हो, अथवा जो सेवारत अभ्यर्थी हो। नियम (ख) उपरोक्त उपनियम (क) में उल्लेखित सभी पात्र अभ्यर्थियों को प्रवेश दिये जाने के उपरान्त यदि सीटें रिक्त रह जाती है तो, इन रिक्त सीटों पर, ऐसे अभ्यर्थियों को प्रवेश दिया जायेगा, जिन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य के बाहर स्थित चिकित्सा महाविद्यालय से एमबीबीएस डिग्री की हो, परन्तु वे छत्तीसगढ़ राज्य के मूल निवासी हो, को संशोधित करने की आवश्यकता उत्पन्न हुई।
मॉप-अप राउंड और ओपन मेरिट
राज्य शासन ने यह भी व्यवस्था की है कि यदि संस्थागत वर्ग की सीटें रिक्त रहती है, तो मॉप-अप राउंड में उन्हें ओपन मेरिट श्रेणी में अंतरण किया जाएगा।
