Chhattisgarh Transfer: ट्रांसफर से हटेगा बैन: छत्तीसगढ़ में कर्मचारियों, अधिकारियों और शिक्षकों के ट्रांसफर से बैन हटाएगी सरकार!...
Chhattisgarh Transfer: छत्तीसगढ़ में कर्मचारियों, अधिकारियों और शिक्षकों के ट्रांसफर पर प्रतिबंध लगा हुआ है। विशेष परिस्थितियों में समन्वया याने मुख्यमंत्री के अनुमोदन से ट्रांसफर किए जाते हैं। मगर इनकी संख्या नगण्य होती हैं। यही वजह है कि नई सरकार के गठन के बाद अब छत्तीसगढ़ में कर्मचारियों के ट्रांसफर की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। मगर वास्तविकता क्या है? सवाल यह है, क्या सरकार बैन हटाएगी...?
Chhattisgarh Transfer: रायपुर। छत्तीसगढ़ में पिछले दो दशक से ट्रांसफर पर बैन लगा हुआ है। राज्य सरकारें समय-समय पर निश्चित समय के लिए प्रतिबंध हटाती है, उसमें ट्रांसफर किए जाते हैं। उसके बाद फिर बैन लागू कर दिया जाता है। इसके अलावा सरकार ने ट्रांसफर के लिए दूसरा रास्ता निकाला है समन्वय के जरिये। मगर समन्वय के जरिये बेहत रिसोर्सफुल याने पहुंच वाले लोगों के ही ट्रांसफर हो पाते हैं।
समन्वय का रास्ता क्यों और क्या हैं इसके प्रॉसेज
ट्रांसफर पर बैन के दौरान कोई कर्मचारी अस्वस्थ हो गया या उसके साथ विशेष परिस्थिति निर्मित हो गई, उसके लिए समन्वय का रास्ता निकाला गया। मगर आमतौर पर जरूरतमंदों को इसका लाभ कम ही मिलता है। पहुंच या पैसे के बल पर मंत्रियों, विधायकों से नाम आगे बढ़वाकर ट्रांसफर करा लिए जाते हैं। अब बात समन्वय के प्रॉसेज का। विशेष स्थिति का हवाला देते हुए विभाग में आवेदन जमा किया जाता है। विभाग अगर उपयुक्त केस पाएगा या फिर कोई एप्रोच हो तो फिर मंत्री से अनुमोदन लेकर फाइल चीफ सिकरेट्री को भेजा जाता है। चीफ सिकरेट्री समन्वय के प्रस्तुतकर्ता अधिकारी होते हैं। चीफ सिकरेट्री फाइल को मुख्यमंत्री को भेजते हैं। क्योंकि, समन्वय के प्रमुख मुख्यमंत्री होते हैं। मुख्यमंत्री से अनुमोदन के बाद फिर ट्रांसफर का आदेश निकालने के लिए फाइल मुख्य सचिव से होते हुए संबंधित विभाग में पहुंच जाता है।
2022 में खुला था बैन
छत्तीसगढ़ में दो साल पहले 2022 में भूपेश बघेल सरकार ने एक महीने के लिए ट्रांसफर से बैन हटाया था। उसके बाद पिछले साल विधानसभा चुनाव था, सो बदनामी से बचने राज्य सरकार ने बैन नहीं हटाया। दरअसल, सरकारे ंइसलिए बैन हटाने से हिचकिचाती है कि ट्रांसफर में बड़े पैमाने पर गड़बड़झाले होते हैं। चूकि मंत्रियों के पास ट्रांसफर के अधिकार आ जाते हैं, सो मंत्रियों पर भी कार्यकर्ताओं के दबाव होते हैं। ट्रांफसर के दलाल भी इसमें कूद पड़ते हैं। इतिहास गवाह है कि जब भी बैन खुला सरकारों को आरोपों का सामना करना पड़ा। जाहिर है, तब ट्रांसफर उद्योग बन जाता है। इससे सरकार कटघरे में आती है। इसलिए, सरकारें बैन हटाना नहीं चाहती।
बैन हटाने सरकार पर दबाव
ट्रांसफर पर बैन से जरूरतमंद कर्मचारियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। बड़ी संख्या में ऐसे कर्मचारी और अधिकारी होते हैं, जो कई-कई साल से एक ही जगह पर जमे हुए हैं। बैन खुलने पर ट्रांसफर का रास्ता खुलता है। छत्तीसगढ़ में चूकि दो साल से ट्रांसफर से बैन नहीं खुला है, लिहाजा, पार्टी के साथ कर्मचारी संगठनों से भी बैन खोलने की डिमांड आ रही है। विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के बाद लोकसभा चुनाव के आचार संहिता प्रभावशील होने के दौरान समन्वय के जरिये कुछ तबादले हुए थे। मगर उसमें काफी बड़ा वर्ग छूट गया। सो, मंत्रियों और नेताओं का भी सरकार पर प्रेशर है कि बैन खोला जाए।
क्या ट्रांसफर से बैन हटेगा?
छत्तीसगढ़ में कर्मचारियों के ट्रांसफर से बैन हटाने पर सरकार ने कोई फैसला नहीं किया है। मगर विश्वस्त अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि जरूतर महसूस होने पर लिमिटेड समय के लिए बैन हटाया जा सकता है। ताकि, लंबे समय से एक ही जगह पर पोस्टेड कर्मचारियों और अधिकारियों को तबादले का लाभ मिल सकें। सूत्रों का कहना है कि एक जुलाई से 31 जुलाई तक के लिए ट्रांसफर से बैन खोला जा सकता है। मगर अभी फायनल नहीं हुआ है। सरकार इसके नफे-नुकसान का आंकलन कर कोई कदम उठाएगी। सरकार परखेगी कि ट्रांसफर से बैन हटाना इस समय कितना उपयुक्त होगा। हालांकि, यह सही है कि जुलाई में बैन नहीं हटा तो इसके बाद फिर संभव नहीं। क्योंकि, फिर बच्चों के स्कूल का सेशन प्रारंभ हो जाता है। जुलाई में नहीं हुआ तो फिर अगले साल तक के लिए शिक्षकों, कर्मचारियों, अधिकारियों को इंतजार करना होगा।