CG Textbook: लालफीताशाही के चलते अबकी 40 हजार सरकारी स्कूलों में टाईम पर पुस्तकें नहीं, छत्तीसगढ़ का पुस्तक निगम चल रहा 7 महीने लेट
CG Textbook: छत्तीसगढ़ के 40 हजार से अधिक सरकारी स्कूलों के बच्चों को इस बार पुस्तकें टाईम पर नहीं मिल पाएगी। इस बार पेपर खरीदी और प्रिंटिंग का टेंडर सात महीने लेट हो चुका है। अप्रैल में स्कूल खुल जाते हैं मगर अभी स्थिति यह है कि पुस्तकों के लिए अभी पेपर खरीदी फायनल नहीं हुआ है। ये काम आमतौर पर सितंबर में कर लिया जाता है।

CG Textbook: रायपुर। छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में पहली से लेकर 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को मुफ्त में पुस्तकें वितरित की जाती है। सूबे में करीब 40 हजार सरकारी स्कूल हैं, इनमें पढ़ने वाले बच्चों के लिए हर साल औसतन 50 लाख पुस्तकें छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम से छपवाई जाती है।
मगर पाठ्य पुस्तक निगम की गाड़ी इस बार सात महीने लेट चल रही है। आमतौर पर पाठ्य पुस्तक निगम सितंबर में पेपर खरीदी का प्रॉसेज प्रारंभ कर देता था। दिसंबर तक प्रिंटिंग का टेंडर हो जाता था।
पाठ्य पुस्तक निगम के सूत्रों का कहना है कि इस समय पेपर खरीदी का टेंडर फायनल करने की कार्रवाई अंतिम चरण में है। दो-एक दिन में टेंडर आर्डर जारी कर दिया जाएगा। फिर सप्लायरों को पेपर सप्लाई में 15 दिन लगता है। याने अप्रैल निकल जाएगा। उधर, अभी प्रिंटिंग का टेंडर भी फायनल नहीं हुआ है। अप्रैल अंत तक अगर पेपर आया तो मई के प्रथम सप्ताह के पुस्तकें छपने के लिए जाएंगी। पुस्तकों को प्रकाशित करने में भी एक से डेढ़ महीने लग जाते हैं। याने गरमी की छुट्टी के बाद 20 जून से स्कूल खुलेंगे, तब तक किताबें बंटने की स्थिति में होंगी, इसकी संभावना नहीं के बराबर दिख रही हैं।
राज्य बनने के बाद हमेशा ऐसा हुआ है कि सरकारी स्कूलों में फ्री में बंटने वाली पुस्तकें फरवरी मध्य तक छपकर आ जाती थी। फरवरी में इसलिए क्योंकि उसके बाद पापुनि के संभागीय डीपो तक पुस्तकों को भिजवाना, फिर वहां से ब्लॉकों और स्कूलों तक पहुंचवाना पड़ता है। इस सरकार में भी पिछले साल अप्रैल में पुस्तकें छापकर जिलों में भेजना प्रारंभ कर दिया गया था।
स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है, अप्रैल में नया सेशन प्रारंभ हो जाता है। सरकार की कोशिश रहती है कि अप्रैल से पहले पुस्तकें स्कूलों में पहुंच जाए। ताकि, स्कूल खुलते ही उन्हें किताबें मिल जाएं।
मगर इस बार जून तक भी किताबें छप जाए, ऐसा प्रतीत नहीं होता। क्योंकि अभी पाठ्य पुस्तक निगम के अधिकारियों ने पेपर का टेंडर करने में सात महीने से अधिक विलंब कर दिया। इसका खामियाजा अब सरकारी स्कूलों में पढ़न वापले नौनिहालों को उठाना पड़ेगा। स्कूलों में क्लासेज प्रारंभ हो गई है, मगर किताबों का पता नहीं। सवाल उठता है कि जब सरकार के खजाने से पैसा खर्च होता ही है कि तो उसका सदुपयोग होना चाहिए। बहानेबाजी कर बच्चों का नुकसान क्यों करना।
क्यों हुआ विलंब
पेपर के टेंडर में विलंब इसलिए हुआ क्योंकि, पापुनि पुस्तक घोटाले के जद में आ गया है। जाहिर है, पापुनि के अफसरों ने फर्जीवाड़ा करते हुए आवश्यकता से अधिक किताबें छाप दी। गोदामों में अभी भी 12 लाख किताबें पड़ी धूल खा रही हैं। इसका खुलासा तब हुआ जब रायपुर के सिलयारी इलाके में रद्दी में पड़ी हुई सरकारी किताबों का जखीरा मिला। इससे सिस्टम हिल गया। सीएम विष्णुदेव साय ने जांच का आदेश दिया। जांच में लीपापोती करने के लिए उपर के अफसरों ने पापुनि के एमडी और जीएम को जांच समिति का मेम्बर बना दिया। बाद में सरकार ने जीएम को निलंबित कर दिया। फिर मुख्यमंत्री ने एसीएस रेणु पिल्ले को जांच सौंपा। उसके बाद पापुनि के एमडी चेंज हो गए। एमडी राजेंद्र कटारा को सरकार ने कलेक्टर बनाकर भेज दिया।
जोगी सरकार में भी संकट
एक बार अजीत जोगी सरकार के दौरान भी पेपर का टेंडर टाईम पर न हो पाने की वजह से संकट आया था। तब कोर्ट के मामले में टेंडर उलझ गया था। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने फैसला लिया था कि पेपर का टेंडर करने की बजाए प्रिंटरों को पेपर के साथ प्रिंटंग का आर्डर दे दिया जाए। इससे समय पर किताबें बंट गई थी। मगर इसका भी उस समय विरोध हुआ था। मगर इसके अलावा सरकार के पास कोई चारा भी नहीं था।