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CG Teacher News: कोर्ट में नियमित शिक्षकों से हारा स्कूल शिक्षा विभाग.... रिव्यू याचिका करने के बजाय करते रहे टाइम पास, और अब नियमित शिक्षकों को पदोन्नति से कर दिया बाहर

CG Teacher News: स्कूल शिक्षा विभाग का भगवान ही मालिक है। सच्चाई यह है कि विभाग के अधिकारी जानबूझकर बखेड़ा खड़ा करवाते नजर आ रहे हैं। विभागीय दस्तावेज और न्यायालय के आदेश से यह साफ हो रहा है कि डीपीआई और स्कूल शिक्षा में तैनात अफसरों ने नियमित शिक्षकों को प्रमोशन से दरकिनार कर एक बार फिर अदालती झंझट को जानबुझकर न्यौता दे दिया है...

CG Teacher News: कोर्ट में नियमित शिक्षकों से हारा स्कूल शिक्षा विभाग.... रिव्यू याचिका करने के बजाय करते रहे टाइम पास, और अब नियमित शिक्षकों को पदोन्नति से कर दिया बाहर
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By Radhakishan Sharma

CG Teacher News: रायपुर। स्कूल शिक्षा विभाग का भगवान ही मालिक है। सच्चाई यह है कि विभाग के अधिकारी जानबूझकर बखेड़ा खड़ा करवाते नजर आ रहे हैं। विभागीय दस्तावेज और न्यायालय के आदेश से यह साफ हो रहा है कि डीपीआई और स्कूल शिक्षा में तैनात अफसरों ने नियमित शिक्षकों को प्रमोशन से दरकिनार कर एक बार फिर अदालती झंझट को जानबुझकर न्यौता दे दिया है।

विभागीय अधिकारी न केवल स्कूल शिक्षा विभाग में अपनी मनमानी कर रहे हैं साथ ही राज्य सरकार को भी गुमराह करने से बाज नहीं आ रहे हैं। इसका खामियाजा शिक्षकों व कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है।

रिव्यू याचिका नहीं की दायर, और अब नियमित शिक्षकों को पदोन्नति से दिखाया बाहर का रास्ता

यह एक सामान्य प्रक्रिया है कि जब कभी किसी बड़े मामले में राज्य सरकार की हार होती है तो वह इसके विरुद्ध डिवीजन बेंच या सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख करता है। कमोबेश याचिकाकर्ता कर्मचारी भी यही करते हैं। व्याख्याता प्रमोशन मामले में नियमित शिक्षकों से हारने के बाद डीपीआई ने महाधिवक्ता को महज एक पत्र लिखकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। यह पत्र बताता है कि कैसे नियमित शिक्षकों का केस व्याख्याता प्रमोशन मामले में अड़ंगा बन कर खड़ा हुआ था।

दरअसल रायपुर के ओंकार प्रसाद वर्मा और अन्य शिक्षकों ने हाई कोर्ट में खुद की वरिष्ठता प्रभावित किए जाने वाले मामले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। जिसका मूल तथ्य यह था कि रायपुर से बलौदा बाजार जिला जब अलग हुआ तो उन्होंने अपने पुराने जिले रायपुर में रहने के नाम पर अपना स्थानांतरण रायपुर जिले के शालाओं में ले लिया। इसी बात को लेकर उनकी वरिष्ठता जो की 2010 की थी, को 2018 से गिना गया। इसके खिलाफ ओंकार प्रसाद वर्मा और अन्य शिक्षकों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इसके विरुद्ध कुछ अन्य शिक्षकों ने हस्तक्षेप याचिका भी दायर की थी। 2021 में दायर केस का अंतिम निर्णय फरवरी 2025 में आया। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में निर्णय दिया और कहा कि उनकी वरिष्ठता उनके प्रधान पाठक पद पर नियुक्ति दिनांक से ही गिनी जाए और समस्त लाभ उन्हें उसी तिथि से दिया जाए। साथ ही कोर्ट ने वरिष्ठता सूची को गलत मानते हुए उसमें सुधार करने के संबंध में राज्य सरकार को निर्देश जारी किया था। हाई कोर्ट के निर्णय के बाद विभाग ने इस याचिका को डिवीजन बेंच में चुनौती देने का निर्णय लिया लेकिन यह निर्णय केवल कागज तक सीमित रहा। विभाग ने महाधिवक्ता को एक पत्र लिखकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। मार्च में लिखे इस पत्र के बाद दिसंबर तक विभाग ने किसी प्रकार की कोई याचिका दायर ही नहीं की।

आनन फानन में प्रमोशन का फैसला, समझ से परे

हाई कोर्ट से मामला हारने के बाद जिस याचिका को चुनौती देनी थी उसे विभाग ने चुनौती नहीं दी, गई बल्कि अचानक से नियमित शिक्षकों को पदोन्नति से बाहर कर, शिक्षक एलबी के प्रमोशन की सूची जारी करने का निर्णय लिया। तमाम विरोधों के बावजूद आदेश भी जारी कर दिया है। सरकार का दावा जीरो टॉलरेंस का है, लेकिन स्कूल शिक्षा विभाग की कहानी कुछ और ही है । विभाग के ही पत्र, विभाग के खेल का भंडाफोड़ कर रहे हैं । बताते हैं कि विभाग के अधिकारी ने ही प्रमोशन का खेला कर दिया है। आला अफसरों को यह विश्वास दिलाया कि इस तरीके से प्रमोशन किया जा सकता है और इससे किसी भी प्रकार की कोई रुकावट नहीं आएगी।

न्यायालयीन आदेश की अवहेलना तो नहीं, अवमानना के दायरे में तो नहीं आएंगे अफसर

स्वाभाविक बात है कि इस आदेश से नियमित शिक्षकों को नुकसान होना तय है। जानकारों का कहना है कि स्कूल शिक्षा विभाग ने ऐसा कर न्यायालयीन आदेश की अवहेलना कर दी है। विभागीय अफसरों के खिलाफ अवमानना का मामला बनता है। नियमित शिक्षकों का कहना है कि जल्द ही रिटायर होने वाले एक अधिकारी इस पूरे खेल को अंजाम दे रहे हैं और समय-समय पर जानबूझकर ऐसा खेल खेलते हैं जिससे शिक्षक एलबी और नियमित शिक्षकों के बीच तलवार खींच जाती है । यही नहीं प्रमोशन करते समय बहुत से शिक्षकों का नाम जानबूझकर गायब कर दिया जाता है और फिर धीरे से उनकी सुनवाई करते हुए उनका नाम जोड़ा जाता है और उन्हें प्रमोशन भी दिया जाता है।

जिस प्रकार प्राचार्य प्रमोशन में सैकड़ो की संख्या में शिक्षकों को गायब कर दिया गया था और बाद में प्रमोशन दिया गया ठीक वैसा ही खेल सुनियोजित रूप से शिक्षक एलबी की सूची जारी करते समय भी खेला गया है यानी एक तरफ जहां नियमित शिक्षकों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है वहीं शिक्षक एलबी की सूची में भी जानबूझकर गड़बड़ी की गई है।

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