CG शिक्षक पोस्टिंग गड़बड़ी: सरकार के निर्देश के बाद भी कमिश्नर जांच में नहीं दिखा रहे तेजी, बिना नियम 2000 से अधिक पोस्टिंग संशोधन
रायपुर। स्कूल शिक्षा विभाग में संशोधन का खेल इतनी दमदारी से क्यों खेला गया इसे यदि समझना हो तो इस मामले की जांच की तेजी को देख लीजिए। मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले जनप्रतिनिधि डॉक्टर नरेंद्र राय समेत बिलासपुर के एक कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री के करीबी जनप्रतिनिधि ने भी सीएम हाउस से लेकर अधिकारियों तक इस बात की शिकायत करते हुए खुलासा किया है की पदोन्नति के संशोधन में जमकर लेनदेन किया जा रहा है...
इससे सरकार की छवि खराब हो रही है। डॉक्टर नरेंद्र राय ने 10 जून को पत्र लिखा और 11 दिनों बाद 21 जून को सीएम हाउस से स्कूल शिक्षा विभाग को इस मामले की जांच और कार्यवाही हेतु पत्र जारी हो गया। इसके बाद 27 जून को विभाग ने पांचों संभाग के कमिश्नर को इस मामले की जांच के लिए लिख दिया और अपने पत्र के सेकंड पैराग्राफ में उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि " कतिपय संभागों से शिकायत मिली है कि काउंसलिंग पश्चात भी कुछ शिक्षकों की पदस्थापना में पुनः संशोधन करते हुए उन्हें मनमाने तरीके से पदस्थ करने के आदेश जारी किए गए हैं। इससे राज्य शासन की मंशानुसार पूर्ण पारदर्शिता के साथ शिक्षकों की पदस्थापना के निर्देशों की अवहेलना हुई है।"
यह पैराग्राफ भी यह स्पष्ट करता है कि ओपन काउंसलिंग के बाद पदोन्नति में संशोधन का कोई नियम ही नहीं है और जो संशोधन हुए हैं वह नियम विरुद्ध है तो फिर बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि इस मामले में 27 जून के बाद सन्नाटा क्यों छा गया है और जांच और उसके बाद होने वाली कार्रवाई को लेकर अधिकारियों ने चुप्पी क्यों साध ली है जबकि स्वयं कर्मचारी संगठन लिखित रूप में सारे दस्तावेज और तथ्य प्रस्तुत कर चुके हैं की किस प्रकार खेल हुआ है ।
यही नहीं हाईकोर्ट से स्टे हटने के बाद 29 मार्च 2023 को स्कूल शिक्षा विभाग अवर सचिव द्वारा भी सभी जेडी को पदोन्नति के संबंध में जो निर्देश जारी किए गए हैं उसमें भी यह स्पष्ट है कि संशोधन का कोई प्रावधान नहीं था तो फिर एक दो नहीं बल्कि 2000 से भी अधिक संशोधन हुए तो हुए कैसे। बिलासपुर जेडी ने तो अनुमोदन की प्रत्याशा तक में आदेश जारी कर दिए जिसका लिखित प्रमाण भी है जिसमें उन्होंने खुद इस बात को स्वीकारा है । यही नहीं, विधानसभा में जो क्वेश्चन लगे हैं उसमें भी लिखित में जवाब भेजे जा चुके हैं जो पटल पर 21 जुलाई को रखे जाएंगे तो अधिकारी आखिर किस जवाब का इंतजार कर रहे हैं और जांच में टालमटोल क्यों और किसे लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा है ।
बताया जा रहा है कि विधानसभा में जैसे ही जवाब प्रस्तुत होगा यह आंकड़ा और अधिक बढ़ेगा और सिस्टम की किरकिरी होना तय है क्योंकि इससे यह प्रमाणित हो जाएगा कि पूरा खेल पैसे के लिए खेला गया है । जनप्रतिनिधियों के अनुशंसा पत्र पर यदि संशोधन होते भी हैं तो 10-20 की ही गुंजाइश होती है लेकिन यहां तो संशोधन की दुकान सजा दी गई थी जहां जिसने भी बोली लगाई वह मनचाहा जगह पाते गया और उसके बाद जिन जगहों में शिक्षक नहीं थे वह आज भी वीरान है और जहां शिक्षक पहले से पदस्थ थे वहां अतिशेष शिक्षकों की भरमार हो गई है ।
शिक्षक संगठनों का कहना है कि ऐसे ही मामले में जब शिकायत कोरबा कलेक्टर के पास पहुंची थी तो उन्होंने निरस्तीकरण का आर्डर निकाल दिया था। जब इस मामले में पूरे तथ्यों के साथ स्कूल शिक्षा विभाग के सभी अधिकारियों को अवगत करा दिया गया है तो उनकी चुप्पी समझ से परे है। एक वरिष्ठ शिक्षक नेता ने बताया है कि यह पूरा मामला शासन प्रशासन को गुमराह करने वाला भी है क्योंकि प्रतिलिपि में तो सभी कार्यालयों के नाम लिखे गए हैं लेकिन वह आदेश वहां भेजे ही नहीं गए हैं और यदि भेजे गए हैं तो फिर यह अधिकारियों की मिलीभगत वाला मामला है। ऐसे में जांच का फिर दिखावा करना ही क्यों और यदि संशोधित आदेश की जानकारी ऊपर नहीं भेजी गई है तो सीधे तौर पर यह उच्च कार्यालय को गुमराह करने का मामला है ऐसे में तो तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन अब दोषी अधिकारियों और लिपिकों को मामला सेट करने का टाइम दिया जा रहा है जिससे ऐसा लगता है कि इस मामले में दोषी अधिकारी और कर्मचारियों पर कोई कार्यवाही नहीं होगी। सरकार ने कमिश्नरों को जांच का निर्देश दिया गया है मगर इसमें वे रुचि नहीं दिखा रहे। बहरहाल देखना होगा कि स्कूल शिक्षा विभाग इस मामले में कार्रवाई सदन में जानकारी प्रस्तुत होने के बाद करेगा या पहले।