CG School Education: स्कूल शिक्षा को माफियाओं से मुक्त करने प्रशासनिक अधिकारियों को बिठाने की तैयारी! डिप्टी कलेक्टर बन सकते हैं DEO और JD...
CG School Education: स्कूल शिक्षा विभाग में ऐसी भर्राशाही मची है कि हालत दयनीय हो गई है। डीपीआई से लेकर जेडी, डीईटो, बीईओ स्तर पर संगठित भ्रष्टाचार का रैकेट चल रहा है। स्कूलों के प्राचार्य और हेड मास्टरों की भी गंभीर शिकायतें आ रही हैं। राजधानी रायपुर के डीपीआई ऑफिस में बरसों से ऐसा कॉकस बैठा है, जो किसी और को वहां टिकने नहीं देता। इसे यूं कहें कि डीपीआई ऑफिस से ही पूरे प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग में करप्शन का संचालन हो रहा है। पिछली सरकार में पांचों संभागों में जेडी ने सहायक शिक्षकों के प्रमोशन में लाखों रुपए लेकर करोड़ों का जो खेल किया, उसमें बताते हैं डीपीआई ऑफिस को भी हिस्सा पहुंचा था। ऐसे में, स्कूल शिक्षा विभाग के अफसरांं को अब यह बात समझ में आ गई है कि जब तक डीपीआई ऑफिस में ठीकठाक अधिकारियों को नहीं बिठाया जाएगा, तब तक इसी तरह प्रमोशन, अतिशेष और काउंसलिंग के नाम पर शिक्षकों को लूटा जाता रहेगा।

Shiksha Vibhag
CG School Education: रायपुर। डीपीआई ऑफिस की भर्राशाही और अराजकता की समझ पिछली कांग्रेस सरकार को आ गई थी। इसलिए वहां अपर कलेक्टर लेवल के दो अधिकारियों को अतिरिक्त संचालक बनाकर बिठाया गया। मगर डीपीआई ऑफिस में जमे अधिकारियों को यह रास नहीं आया। इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर करा दी गई। इसके अलावा दोनों तीन-से-चार महीने डीपीआई में रहे, उन्हें एक काम नहीं दिया गया। उधर, हाई कोर्ट से भी सरकार के खिलाफ फैसला आया। लिहाजा, दोनों अपर कलेक्टरों को डीपीआई आफिस से हटा दिया गया।
हालांकि, सरकार की मंशा सही थी, मगर बिना सोचे-समझे आनन-फानन में दोनों अपर कलेक्टरों की डीपीआई में पोस्टिंग कर दी गई थी। लोचा यह हो गया कि इसके लिए कोई पोस्ट नहीं क्रियेट की गई। कोर्ट में यही आधार बन गया। जानकारों का मानना है कि स्कूल शिक्षा विभाग को पहले पद क्रियेट करा लेना था। वित्त विभाग से वेतन निकालने की मंजूरी ले ली गई होती, तब भी हाई कोर्ट में केस सरकार के फेवर में जाता। मगर ऐसा किया नहीं गया। इस सरकार में सुनने में आ रहा कि सबसे पहले डीपीआई में कुछ प्रशासनिक अधिकारियों को बिठाने पर चर्चाएं चल रही हैं।
शिक्षक संगठनों की भी मांग
स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मनमानी का शिकार प्रदेश के सभी 2.10 लाख शिक्षक हो रहे हैं। ट्रांसफर, पोस्टिंग तो अलग है, मेडिकल लीव, मेडिकल क्लेम भी बिना पैसे दिए स्वीकृत नहीं होते। कुछ जगहों से ये भी शिकायतें आ रही कि बीईओ और डीईओ उनसे भी पैसे ले रहे, जो लंबे समय से स्कूल से गायब रहते हैं और स्कूल में उनकी नियमित हाजिरी डलकर उनका वेतन निकल जाता है। तभी शिक्षक नेताओं ने सवाल उठाया है कि शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण की तरह अधिकारियों का युक्तियुक्तकरण क्यों नहीं किया जाता? जाहिर है, बीईओ, और डीईओ का एक ग्रुप बन गया है, वही लोग घूमफिरकर डीईओ बनते हैं और वे डीपीआई ऑफिस के खटराल अधिकारियों के संरक्षण में काम करते हैं।
डीईओ और जेडी भी प्रशासनिक अधिकारी
शिक्षक नेता भी मानते हैं कि डीईओ और जेडी शिक्षक कैडर के लोग बनते हैं, सो उनकी प्रशासनिक क्षमता रहती नहीं। इसलिए अधिकांश डीईओ और जेडी पोस्टिंग का मतलब सिर्फ वसूली समझते हैं...किस तरह शिक्षकों के जेब से पैसा निकाल लिया जाए। बिलासपुर के बेलतरा स्कूल में एक प्राचार्य ने 77 लाख रुपए हजम कर गया। मगर किसी अफसर ने इस पर ध्यान नहीं दिया। ऐसे ढेरा उदाहरण है, जब अपनी कारस्तानियों की वजह से शिक्षक से बीईओ, डीईओ और जेडी बने अधिकारियों को विभिन्न जांचों का सामना करना पड़ा, कुछ को जेल भी जाना पड़ा। इसको देखते सरकार में बैठे लोग इस बात से सहमत दिख रहे कि कुछ बड़े संभागों में जेडी और डीईओ के पदों पर डिप्टी कलेक्टरों को पोस्ट किया जाए।
स्कूल शिक्षा विभाग के जानकारों का कहना है कि 2.10 लाख शिक्षक वाला यह सबसे बड़ा विभाग है। गुरूजी लोगों का काम पढ़ाना है, वे प्रशासनिक कामों में उलझकर फंस जाते हैं या खटराल बाबुओं और डीपीआई ऑफिस के लोगों द्वारा उन्हें उलझा दिया जाता है। छत्तीसगढ़ में डिप्टी कलेक्टरों की कमी भी नहीं है। अब तो नगर निगमों में जोन कमिश्नर भी राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर बनाए जा रहे हैं। पिछले महीने रायपुर नगर निगम के जोन कमिश्नर के तौर पर ऐसी नियुक्ति हुई है। अगर मुठ्ठी भर खटराल अधिकारियों को छोड़ दें तो 90 परसेंट शिक्षक चाहेंगे कि प्रशासनिक सिस्टम ठीक हो, ताकि छोटे-छोटे कार्यों के लिए उन्हें बीईओ, डीईओ और जेडी ऑफिस का चक्कर न लगाना पड़े।