CG School education: निलंबन बहाली और संशोधन की आड़ में लगने लगा सरकार के युक्तियुक्तकरण में सेंध, DEO हो रहे मालामाल
CG School education: युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया के दौरान शिक्षा विभाग को अपने ही शिक्षकों और शिक्षक संगठनों का विराेध झेलना पड़ा था। हजारों की संख्या में शिक्षकों ने इस प्रक्रिया के विरोध में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कुछ को राहत भी मिली। अधिकांश यााचिकाकर्ता शिक्षकों को समिति के समक्ष अभ्यावेदन पेश करने का निर्देश देते हुए याचिका को निराकृत किया गया था। इस बीच काउंसलिंग में उपस्थित ना होने वाले शिक्षकों को निलंबन की सजा भी सुनाई गई थी। अब निलंबन बहाली के बाद एक बार फिर नजदीक के स्कूलों में पदस्थापना का खेल खेला जा रहा है। जाहिर सी बात है कि इस खेला में डीईओ मालामाल भी हो रहे हैं।

CG School education: रायपुर। युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया के दौरान शिक्षा विभाग को अपने ही शिक्षकों और शिक्षक संगठनों का विराेध झेलना पड़ा था। हजारों की संख्या में शिक्षकों ने इस प्रक्रिया के विरोध में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कुछ को राहत भी मिली। अधिकांश यााचिकाकर्ता शिक्षकों को समिति के समक्ष अभ्यावेदन पेश करने का निर्देश देते हुए याचिका को निराकृत किया गया था। इस बीच काउंसलिंग में उपस्थित ना होने वाले शिक्षकों को निलंबन की सजा भी सुनाई गई थी। अब निलंबन बहाली के बाद एक बार फिर नजदीक के स्कूलों में पदस्थापना का खेल खेला जा रहा है। जाहिर सी बात है कि इस खेला में डीईओ मालामाल भी हो रहे हैं।
राज्य सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने और शिक्षा के नींव को सुदृढ़ करने के लिए शिक्षकों की नाराजगी मोल लेकर भी युक्तियुक्तकरण जैसा साहसिक कदम उठाया था जिसमें हजारों शिक्षक प्रभावित हुए। अब जब युक्तियुक्तकरण का मुद्दा तकरीबन खत्म हो गया है तो अंदरखाने जिला शिक्षा अधिकारी युक्तियुक्तकरण में संशोधन का खेल खेलने में मस्त है। छत्तीसगढ़ के कई जिलों में तो निलंबन के बाद शिक्षकों को मनचाही जगह में पदस्थापना देने का काम किया जा रहा है । विभाग के अधिकारी या मंत्री केवल जिलेवार इस बात की जानकारी जुटा लें कि प्रत्येक जिले में कुल कितने प्रकरणों में संशोधन हुआ है तो कई जिलों की स्थिति सामने आ जाएगी। डीईओ क्या खेल खेल रहे हैं यह भी साफ हो जाएगा।
कोरबा डीईओ ने शिक्षक को यूं लाया शहर के अंदर
कोरबा जिले के इस मामले को ही देख लीजिए, जिसमें शासकीय प्राथमिक शाला कदमडीह विकासखंड कोरबा में पदस्थ सहायक शिक्षक डाकेश कुमार साहू को युक्तियुक्तकरण के तहत प्राथमिक शाला बागबहार संकुल नकिया में पदस्थ किया गया था, जो कि शहर से बाहर का इलाका था। जुलाई 2025 में उन्होंने कार्यभार ग्रहण किया था। ज्वाइनिंग के महज एक महीने के अंदर स्थानीय सरपंच और ग्रामीणों की लिखित शिकायत जिला शिक्षा अधिकारी को मिल गई, जिसमें शिक्षक पर अध्यापन कार्य न कराकर मोबाइल पर व्यस्त रहना , छात्र-छात्राओं से सफाई का कार्य करवाना , कभी-कभी नशे में रहना , स्कूल देर से आना व जल्दी चले जाना , दैनंदिनी संधारित न करना जैसे गंभीर आरोप लगे थे। इसके बाद 1 सितंबर को जिला शिक्षा अधिकारी ने शिक्षक को निलंबित कर दिया था।
3 महीने के भीतर हो गई शहर के अंदर बहाली
27 नवंबर को जिला शिक्षा अधिकारी ने पत्र जारी कर शिक्षक के निलंबन अवधि को कार्य अवधि मानते हुए उन्हें शहर के भीतर शासकीय प्राथमिक शाला रिसदा में बहाल कर दिया। जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि संबंधित शिक्षक ने शारीरिक और मानसिक परेशानी के कारण मलेरिया, पीलिया और दस्त होने से डॉ नीलिमा महापात्रो मनोरोग विशेषज्ञ से इलाज कराया और भविष्य में इस प्रकार की गलती दोबारा न होने की बात कहते हुए क्षमा याचना की है।
जिला शिक्षा अधिकारी का पत्र ही खोल रहा पूरे मामले की पोल
इस पूरे मामले को ध्यान से देखें तो साफ पता चलता है कि यह पूरा खेल ही शिक्षक को शहर के अंदर लाने के लिए खेला गया था । शिक्षक को यदि पीलिया मलेरिया और दस्त एक साथ हो गया था तो इसका संबंध स्कूल में बैठकर लगातार मोबाइल चलाने और अध्यापन कार्य न कराने , नशा करके आने , छात्र छात्राओं से सफाई करने से हो ही नहीं सकता और फिर मनोरोग विशेषज्ञ इन बीमारियों का इलाज करते ही नहीं है। इन सब गलतियां का कारण यह बीमारी है तो कोई शिक्षक यह कैसे कह सकता है कि इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी, क्योंकि तबीयत तो फिर कभी भी खराब हो सकती है और सबसे बड़ी बात जिला शिक्षा अधिकारी को यदि शिक्षक को बहाल ही करना था तो फिर शहर के अंदर के स्कूल में बहाल करने की क्या जरूरत थी।
बताया जा रहा है कि यह इकलौता मामला नहीं है न्यायालय के नाम पर ऐसे और कई मामलों में बिना न्यायालय के निर्णय के ही संशोधन का खेल खेला गया है । और यह केवल कोरबा जिले का मामला नहीं है बल्कि अन्य जिलों में भी इसी प्रकार का खेल खेला गया है । स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों और शिक्षा मंत्री को ऐसे मामलों को गंभीरता से लेना चाहिए खास तौर पर तब जब आगे विधानसभा की कार्रवाई होनी है। यदि स्कूल शिक्षा विभाग सभी जिलों से जारी हुए संशोधन आदेशों और संशोधन किए गए आदेशों के पीछे के कारणों की जानकारी ही मंगा ले तो बहुत बड़ा घोटाला निकल कर सामने आएगा। बहुत से प्रकरणों में तो विभाग से गलती ही हुई थी जिसे सुधर गया है लेकिन बहुत से प्रकरण ऐसे भी हैं जिसमें इस प्रकार का खेल खेला गया है।
देखें आदेश
