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Research Story: धान के पौधे को पानी की जरूरत पर जल संसाधन विभाग के इंजीनियर ने किया रिसर्च, ये बातें सामने आईं

"ऑप्टिमल इरिगेशन प्लानिंग फॉर कमांड एरिया ऑफ पेंड्रावन टैंक इन छत्तीसगढ़, इंडिया' पर शोध के लिए 62 साल के पुरुषोत्तम अग्रवाल को आईआईटी धनबाद से पीएचडी की उपाधि।

Research Story: धान के पौधे को पानी की जरूरत पर जल संसाधन विभाग के इंजीनियर ने किया रिसर्च, ये बातें सामने आईं
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By NPG News

रायपुर। छत्तीसगढ़ धान का कटोरा है। यहां धान की पैदावार अच्छी होती है। इसके बावजूद किसान कहीं अल्प वर्षा तो कहीं अधिक वर्षा के कारण परेशान होते हैं। पानी नहीं मिलने के डर से खेतों में पानी भरकर रखते हैं। कई बार पानी मिलने की उम्मीद से स्टोर नहीं कर पाते। इन सबका असर उत्पादन पर पड़ता है। जल संसाधन विभाग के 62 साल के इंजीनियर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने इन परिस्थितियों को लेकर ही रिसर्च किया है कि किन परिस्थितियों में पौधे को कितना पानी मिलना चाहिए। कब पानी की जरूरत है और कितनी मात्रा में पानी देने से उत्पादन अच्छा होगा। इसके लिए उन्हें आईआईटी धनबाद से पीएचडी की उपाधि मिली है।

वर्तमान में प्रभारी अधीक्षण अभियंता पुरुषोत्तम अग्रवाल को आईआईटी धनबाद ने "ऑप्टिमल इरिगेशन प्लानिंग फॉर कमांड एरिया ऑफ पेंड्रावन टैंक इन छत्तीसगढ़, इंडिया' विषय पर शोध के लिए पीएचडी की उपाधि दी है। इस शोध से खेती में पानी का अपव्यय, मृदा की पोषकता एयर संतुलन, फसलों के उत्पादन में वृद्धि, खेती के दौरान विभिन्न मृदा, क्लाइमेटिक कंडीशन के आधार पर पानी की उपयोगिता तय करने में बड़ी मदद मिलेगी।

इस शोध के महत्व के बारे में बात करते हुए डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने बताया कि पौधों की बुआई से लेकर कटाई तक चार स्टेज इनिशियल, डेवलपमेंट, मिड सीजन स्टेज, लेट सीजन (हार्वेस्टिंग स्टेज) शामिल हैं। इन चारों स्टेज में यह जरूरी है कि पौधों को आवश्यकता अनुसार ही मिट्टी, क्लाइमेटिक कंडीशन व वर्षा जल के अनुसार पानी उचित मात्रा में मिले ताकि फसल अच्छी हो। अलग-अलग मिट्टियों के अनुकूल फसलों में जल की उपयोगिता को जानने के लिए कुछ मानकों जैसे- मिट्टी के प्रकार, ग्राउंड वाटर की मात्रा, बारिश की मात्रा, मौसम परिवर्तन का सॉफ्टवेयर के माध्यम से अध्ययन किया गया, यह जानने के लिए कि धान के फसल को कब और कितनी मात्रा में पानी की जरूरत होती है।

इस शोध से पता चला कि वर्तमान में फसल को जो पानी मिल रहा है, कहीं कहीं पर वो पर्याप्त नहीं है या कहीं जरूरत से अधिक है। इस कारण असमय बारिश और ग्राउंड लेवल पर ज्यादा पानी का इकठ्ठा होना है। डॉ. अग्रवाल ने बताया कि इसका कारण जानने के लिए विभिन्न प्रकार की मिट्टियों का जिसमें मुख्यत: काली मिट्टी के जल धारण क्षमता की जांच कृषि विश्वविद्यालय के उन्नत मृदा प्रयोगशाला में करवाया। उल्लेखनीय है कि डॉ. अग्रवाल के रिसर्च से किसानों को कृषि के दौरान अलग अलग मिट्टियों में जल की उपयोगिता को समझने में बड़ी मदद मिलेगी।

पेंड्रावन जलाशय के कमांड एरिया में सॉफ्टवेयर के माध्यम से शोध

डॉ. अग्रवाल ने 2015-16 में आईआईटी धनबाद में शोध के लिए पीएचडी का रजिस्ट्रेशन कराया। इसके बाद उन्होंने रायपुर जिले के पेंड्रावन जलाशय के कमांड एरिया में सॉफ्टवेयर के माध्यम से शोध के तहत उपयुक्त समय में उपयुक्त मात्रा में पौधों को खेतों में उपयुक्त वाटर सप्लाई करने से कमांड एरिया में जल का संवर्धन कर दोगुनी मात्रा में फसल उत्पादन से कृषकों की आय में बढ़ोतरी के संबंध में "ऑप्टिमल इरिगेशन प्लानिंग फॉर कमांड एरिया आफ पेंड्रावन टैंक इन छत्तीसगढ़, इंडिया" शीर्षक के तहत उन्हें आईआईटी धनबाद से 62 वर्ष की उम्र में पीएचडी की उपाधि मिली।

लगातार कोशिशों से हासिल की उपलब्धियां

डॉ. अग्रवाल ने जल संसाधन विभाग में वर्ष 1980 में उप अभियंता के पद पर नौकरी ज्वाइन की। उन्होंने 1987 में शासकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय रायपुर से बी.ई इन सिविल इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त की। जिसके बाद उन्हें विभाग में सहायक अभियंता के पद पर पदोन्नति प्राप्त हुई। डॉ अग्रवाल ने वर्ष 2007 में जनहित में एक स्लूस गेट का आविष्कार किया। जिसे विभिन्न नहरों,बांधों एवं नदियों में बनने वाले स्टाप डेम योजनाओं में उपयोग के लिए किफायती पाए जाने पर उनके नाम पर "पी टाइप स्लूस गेट' के रूप में नामकरण करते हुए छत्तीसगढ़ शासन ने मान्यता देकर उन्हें सम्मानित किया। शासन द्वारा स्पॉन्सरशिप के तहत 53 वर्ष की उम्र में वर्ष 2013 में एनआईटी रायपुर से रेगुलर कोर्स से एमटेक की उपाधि उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। सेवानिवृत्ति के पश्चात डॉ. अग्रवाल विभिन्न संस्थानों आईआईटी, एनआईटी में ऑनरेरी शिक्षा सेवाएं देना चाहते हैं। एवं कृषकों को धान की फसल में उचित समय में उचित मात्रा में सिंचाई कर उनकी आर्थिक आय व उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में मदद करना चाहते हैं।

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