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CG News: हड़ताल में जाने से सबसे अधिक आर्थिक नुकसान शिक्षक एल बी संवर्ग को..! क्या इसी वजह से नहीं है इस बार हड़ताल को लेकर शिक्षकों में उत्साह?

CG News: हड़ताल में जाने से सबसे अधिक आर्थिक नुकसान शिक्षक एल बी संवर्ग को..! क्या इसी वजह से नहीं है इस बार हड़ताल को लेकर शिक्षकों में उत्साह?
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By NPG News

CG News: रायपुर। प्रदेश में शासकीय कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन द्वारा 22 अगस्त से हड़ताल की घोषणा की गई है, जिसे लेकर इस बार शिक्षकों में उत्साह नजर नहीं आ रहा है। जबकि इससे पहले हुए पांच दिवसीय हड़ताल को लेकर सबसे अधिक उत्साह में शिक्षक ही था।शिक्षकों ने पूरे आंदोलन के दौरान सक्रिय भूमिका निभाई थी। आलम यह था कि प्रदेश के अधिकांश स्कूलों में तालाबंदी हो गई थी। लेकिन इस बार ऐसा नजारा देखने को नहीं मिल रहा है। न तो सोशल मीडिया में उनके द्वारा दिए जा रहे आवेदनों का ढेर है और न ही हड़ताल को लेकर कोई खास प्रतिक्रिया। एक अजीब सी खामोशी हड़ताल को लेकर बनी हुई है जिसे देखते हुए हमने शिक्षकीय मामलों के जानकारों से बात की तो पता चला, प्रदेश में सबसे अधिक आक्रमक और हड़ताल को लेकर अनुभवी यदि कोई संवर्ग है तो वह शिक्षाकर्मी से शिक्षक तक की उपलब्धि तय करने वाला एल बी संवर्ग है। और उनकी खामोशी की कुछ प्रमुख वजह यह है ।

अर्जित अवकाश कटना सीधे तौर पर आर्थिक नुकसान

शिक्षाकर्मियों का शिक्षक पद पर संविलियन 2018 में हुआ है और उनके पूर्व सेवा अवधि की गणना नहीं की गई है ऐसे में उनकी सेवाएं 2018 के बाद यानी जिसका जब संविलियन हुआ है तब से माना जा रहा है और समस्त प्रकार के देय लाभ के लिए यह गणना हो रही है । इसका सीधा मतलब है कि जिन शिक्षकों की सेवाएं 2018 के बाद 24 साल से कम बची हुई है। उनका यदि हड़ताल के कारण अर्जित अवकाश करता है तो सीधे तौर पर भविष्य में उन्हें आर्थिक नुकसान होगा जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती। दरअसल, अर्जित अवकाश का शासन द्वारा नकदीकरण सेवा समाप्ति के बाद किया जाता है और इसके लिए 240 दिन तक की पात्रता है। यानी कर्मचारी रिटायर होने के बाद अपने 240 दिन को नकदीकरण करा सकता है यानी रिटायरमेंट के समय सीधे तौर पर इन 240 दिनों के बदले उसे लगभग 8 महीनों का वेतन उस समय प्राप्त हो रहे वेतन के मुताबिक मिलता है। यह एक बड़ी धनराशि होती है। अब जिन कर्मचारियों के पास उनके संविलियन के बाद 27, 28 साल की नौकरी बची है उसके लिए तो समस्या कम है क्योंकि यदि उसके 15-20 दिन अर्जित अवकाश से कम हो भी गए तो भी कम से कम 240 दिन खाते में रहेंगे और उन्हें अंत में 240 दिनों का नकदीकरण कराते बन जाएगा। लेकिन जिन की सेवाएं 24 साल या 24 साल से कम बची है, यदि उनके अर्जित अवकाश में से जितने दिनों की कटौती होगी वह सीधे तौर पर उन्हें आर्थिक नुकसान पहुंचाएगा। क्योंकि, भविष्य में उनके पास 240 से कम अर्जित अवकाश रहेंगे और जितने अर्जित अवकाश रहेंगे केवल उतने का नकदीकरण होगा यानी यदि किसी कर्मचारी का अभी 30 दिन हड़ताल के कारण अर्जित अवकाश कट जाता है तो भविष्य में उसे 1 माह के वेतन का नुकसान होना तय है। एलबी संवर्ग के अलावा अन्य जितने भी कर्मचारी हैं वह अपने सेवाकाल में 30- 32 साल नौकरी करते हैं। ऐसे में उनके पास पर्याप्त अर्जित अवकाश होता है और क्योंकि केवल 240 दिनों का ही नकदीकरण होना है ऐसे में वह अपने अर्जित अवकाश का छुट्टी के तौर पर भी उपयोग करते हैं। यही वजह है कि हड़ताल को लेकर उन्हें चिंता नहीं है ।

सेवा गणना समेत कई अन्य एल बी संवर्ग की प्राथमिकता

दरअसल, शिक्षाकर्मियों का शिक्षक पद पर संविलियन तो हो गया है किंतु अभी भी ऐसे कई मुद्दे हैं जिसका सुलझाना उनके लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। जिसमें पूर्व सेवा अवधि की गणना , क्रमोन्नति, पदोन्नति, वेतन विसंगति का दूर होना इत्यादि प्रमुख है। इसके लिए उन्हें भविष्य में हड़ताल करना ही होगा ऐसे में उन्हें इसके लिए भी अपने अर्जित अवकाश बचाकर रखने होंगे। अधिकांश शिक्षक एल बी संवर्ग का कहना यह है कि हम एक ऐसे मुद्दे के लिए अपनी पूरी ऊर्जा समाप्त कर रहे हैं जो हमारे लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना अन्य मुद्दे। अन्य संगठनों के लिए यही एक मुद्दा है लेकिन शिक्षक एलबी संवर्ग के लिए उनके अन्य मुद्दे ज्यादा महत्वपूर्ण है यह भी एक प्रमुख वजह है कि आंदोलन से दूरी बनाई जा रही है ।

नेतृत्वकर्ताओं की चुप्पी ने तोड़ा दिल

जो शासकीय आंकड़े उपलब्ध हुए हैं उसके मुताबिक प्रदेश के अधिकांश शिक्षकों ने शासकीय कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन के पांच दिवसीय हड़ताल में ही भाग लिया है और लगभग 95 प्रतिशत शिक्षकों ने पांच दिवसीय हड़ताल खत्म करके स्कूल जॉइन कर लिया था ऐसे में उनकी उम्मीदें शासकीय अधिकारी कर्मचारी फेडरेशन से अधिक थी। लेकिन फेडरेशन के नेता न तो 14 दिनों में मुख्यमंत्री से मिलने की जुगत भिड़ा पाए और न ही हड़ताल अवधि के अवकाश समायोजन का आदेश निकलवा पाए जबकि उनके द्वारा खूब ढिंढोरा पीटा गया था की मंत्रालय के बड़े-बड़े कर्मचारी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। ऐसे में इस प्रकार का आदेश निकलवाना बाएं हाथ का काम है। लेकिन सच्चाई कुछ और निकली। यहां तक कि जिन जिलों में वेतन की कटौती हुई वहां भी हड़ताल कराने वाले दोनों गुटों ने चुप्पी साध ली और सीधे तौर पर वेतन कट गया यही नहीं इस माह भी अधिकांश जगह पर वेतन की कटौती होनी है और हड़ताल का नेतृत्व करने वाले दोनों गुट इसे लेकर कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं तो शिक्षक एल बी संवर्ग को भी अब अपने वेतन कटौती की चिंता सता रही है। शिक्षक एक ऐसा संवर्ग है जो विशुद्ध वेतन पर पलता है ऐसे में यदि 5 दिनों के भी वेतन की कटौती हो जाए तो उनके घर का बजट बिगड़ जाता है यही वजह है कि अधिकांश शिक्षकों ने अब इस आंदोलन से दूरी बनाने की सोच ली है खास तौर पर नेतृत्व को लेकर उनका अब वह विश्वास नजर नहीं आ रहा है जो पिछली बार नजर आया था साथ ही जिस प्रकार से अचानक नेता हड़ताल तोड़ देते हैं और समझौता कर लेते हैं वह भी निचले क्रम के कर्मचारियों की समस्या पर है। कई ग्रुप में यह बात लिखा गया कि हड़ताल केवल चंदा चकोरी के लिए किया जाता है, इस हड़ताल में भी खूब चंदा वसूली की गई और इसे लेकर भी शिक्षकों में नाराजगी है। क्योंकि उनके पास आवक का अन्य कोई जुगाड़ नहीं होता है ऐसे में यह सब भी वेतन के हिस्से से ही देना होता है।

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